खेतों में पर्याप्त नमी ! अब फसल की सेहत पर फोकस

चना की बुआई को 40 दिन पूरे, बगैर सिंचाईं लहलहा रही फसल

 इस साल रबी सीजन में चने का रकबा उम्मीद से कई ज्यादा है। जिसकी वजह, न्यूनतम सिंचाईं वाली चना फसल जहां एक-दो सिंचाईं में पककर तैयार हो जाती है, वहीं समय पर खेत खाली हो जाने के बाद किसान ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई में जुट जाएंगे। यही कारण है कि विगत कुछ सालों से चना का रकबा साल दर साल बढ़ रहा है, जो इस बार गेहूॅ के रकबे को पछाड़ चुका है। हालांकि, इस बीच बेमौसम बारिश के चलते चना की फसल एक झटका मौसम की मार झेल चुका है। ऐसे में किसानों के मध्य कहीं चिंता तो कहीं फसल को सेहतमंद बनाए रखने पर फोकस है।  

अनोखा तीर, हरदा। ग्रीष्मकालीन मूंग की तरफ किसानों के बढ़ते रूझान के चलते साल दर साल चने का रकबा बढ़ता जा रहा है। दो साल पहले जहां 50 से 55 हजार हेक्टेयर तक चना की बुआई सिमट जाती थी, जो अब बढ़कर ९0 हजार हेक्टेयर के पार हो गया है। हालांकि, इस बीच मौसम की बेरूखी के चलते किसानों के माथे चिंता की लकीर भी देखने को मिली। क्योंकि, चने के जिन खेतों में पहली सिंचाईं के तुरंत बाद पानी बरस गया, उन खेतों में खासा नुकसान सामने आया है। वहीं दूसरी ओर जिन किसानों ने सिंचाईं पर अपना हाथ खींच रखा था, उन खेतों में चना की फसल स्वस्थ व सेहतमंद दिख रही है। बावजूद ऐसे किसानों के बीच असमंजस्य बरकरार हैं। वह यह कि ऊपरी पानी मिलने के बाद अब फसल में पानी छोड़े या ना छोड़े ? यह सवाल उनके गले नही उतर रहा है। इसकी मुख्य वजह यह कि खेतों में फिलहाल पर्याप्त नमी है। वहीं मौसम के फिर पलटने के आसार को लेकर किसान अलर्ट हैं। जानकारी के अनुसार क्षेत्र में वैकल्पिक या यूं कहें कि तीसरी ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल किसानों का लक्ष्य बना हुआ है, जो महज 60 दिवसीय फसल होकर आर्थिक फायदे की दृष्टि से लाभदायक है। यही वजह है कि चने के रकबे ने आखिरकार गेहूॅ के रकबे को पछाड़ दिया है। बता दें कि रकबे की बढ़त एवं घटत को भांपकर जानकारों ने पूर्व में ही यह आशंका जता चुके थे कि यही क्रम रहा तो रबी सीजन में चने का रकबा गेहूॅ को पछाड़ देगा और ऐसा ही कुछ देखने को मिला है।

लगातार घट रहा गेहूं का रकबा  

यहां बताना होगा कि बीतें तीन साल से गेहूॅ का रकबा लगातार पिछड़ता चला जा रहा है। जबकि पूर्व में गेहूॅ का रकबा अन्य रबी फसलों की तुलना में हर बार अव्वल रहा है। लेकिन, ग्रीष्मकालीन मूंग की तरफ किसानों के बढ़ते रूझान के कारण यह हालात निर्मित हुए हैं। जिसके चलते गेहूॅ का रकबा लगातार घट रहा है। जिसका असर गेहूॅ की सरकारी खरीदी पर तय माना जा रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले साल गेहूॅ खरीदी का लक्ष्य पूरा करने के लिए अंतिम समय तक प्रयास जारी रखे थे।

तो भूसे के लिए जद्दोजहद तय

उधर, गेहूॅ का रकबा कम होने के कारण उसका असर भूसे पर पड़ने के आसार हैं। डेयरी संचालक नीरज पांडे ने बताया कि जब पिछले साल भूसे की किल्लत रही तो इस बार गेहूॅ का रकबा ओर कम हो गया है। वहीं कुछ क्षेत्रों में दूर-दूर तक केवल चना की फसल दिखाई दे रही है, वहां गेहूॅ ना के बराबर है। ऐसी स्थिति में दुध उत्पादक किसान सबसे पहले अपने लिए भूसे की प्रतिपूर्ति करेंगे। जिसके चलते अन्य गौपालक समेत डेयरी के कर्ता धर्ताओं को अच्छी खासी कसरत करनी पड़ सकती है।

फेक्ट फाइल….

फसल — रकबा

गेहूॅ — ८५२८५ हेक्टेयर

चना — ९८१९० हेक्टेयर

सरसों — ४५०० हेक्टेयर

मक्का — १७०० हेक्टेयर

मटर — ५५ हेक्टेयर

मसूर — २५ हेक्टेयर

इनका कहना….

इस साल अधिकतम रकबे में चना की बुआई की है। गनीमत रही कि पहली सिंचाई नही की। क्योंकि, ऊपरी पानी ने उस जरूरत को पूरा कर दिया। फिलहाल जमीन से 3 इंच नीचे नमी बरकरार है। जिससे सिंचाईं को लेकर बेफिक्र हैं। आगे फसल की सेहत पर पूरा ध्यान है।

कुलदीप पांडे, किसान

इस बार चने पर दांव लगाना महंगा पड़ गया। क्योंकि चने की फसल में पहला पानी देने के तुरंत बाद पानी बरस गया। उसी रकबे में बतर आते ही फसल में उमाला दिखने लगा। जो कि धीरे-धीरे पीले टांकों में तब्दील हो गया। अंत में ९ एकड़ में चने की फसल को बखरकर गेहूॅ बोना पड़ा।

रत्नेश शर्मा, किसान

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