गणेश पांडे, भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने टिकट वितरण के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़के से लेकर स्क्रीन कमेटी के सदस्यों चाहे वह भंवर जितेंद्र सिंह हो या फिर रणदीप सिंह सुरजेवाला सभी को अपनी ताकत का अहसास कर दिया। जिस उम्मीदवार के नाम पर नाथ ऐसे अड़े कि नेता- प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के तर्क धरे रह गए। उम्मीदवारों के चयन बैठक में कमलनाथ अपनी बात मनवाने के लिए बार-बार उठकर जाने लगे। अंतत: कई टिकट कमलनाथ के कहने पर ऐसे दिए गए जिनकी हार अभी से संभावित है। मसलन 2013 विधानसभा के चुनाव में मुरैना विधानसभा में जमानत जप्त करने वाले दिनेश गुर्जर को कमलनाथ के अड़ियल रवैया के कारण उम्मीदवार बनाना पड़ा। दूसरी सूची के लिए नई दिल्ली में मची टिकटों की जद्दोजहद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के व्यवहार को देखकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़के भी हाथप्रभ रह गए। स्क्रीन कमेटी के सदस्य तो कमलनाथ के आगे बौने नजर आए। टिकट वितरण में अधिकांश उन नेताओं को टिकट दिया गया, जो कई सालों से कमलनाथ का जयकारा लगाते आ रहे हैं। उनमें से दिनेश गुर्जर, सुरेंद्र चौधरी, नीरज बघेल, सुनील शर्मा, निधि जैन, राजेंद्र शर्मा, गिरजा शंकर शर्मा, एमपी प्रजापति, प्रदीप चौधरी, कुंदन मालवीय, सुखराम साल्वे, सतनारायण पटेल रमाशंकर प्यासी, पद्मेश गौतम और मोंटू सोलंकी प्रमुख है। ढीली कमान के चलते आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सामने संगठन में कार्यकर्ताओं की आस्था की रक्षा नहीं कर सके। कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूचियां ही संकेत दे रही हैं कि हर सीट के लिए अलग-अलग मापदंड और प्रक्रिया को अपनाया गया है। सर्वे के नाम पर केवल एक तरफा निजी पसंद को महत्व दिया गया है।
टिकट जद्दोजहद में नाथ-दिग्विजय और नाथ- गोविन्द में हुई बहस
टिकट वितरण के लिए नई दिल्ली में हुई तमाम बैठकों में उम्मीदवारों के चयन को लेकर कभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह और कभी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच जमकर बहस हुई। इस बहस के बावजूद भी कमलनाथ टिकट वितरण में अपनी मनमानी करने में सफल रहे। यही कारण है कि कांग्रेस में बगावत-विद्रोह और पार्टी छोड़ने का दौर जो पहली सूची के साथ चालू हुआ था, वह दूसरी सूची के साथ कम होने की बजाय बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है। प्रत्याशियों की सूची के बाद नाराजगी और बयानबाजी तो स्वाभाविक प्रक्रिया है। एक अनार सौ बीमार की तर्ज पर प्रत्याशी तो एक ही चुना जाएगा। जो चयन में हार जाएंगे क्रंदन मचाना तो उनका हक है लेकिन अगर चयन में पारदर्शिता न हो, कोई मान्य मापदंड ना हो, नेताओं के बीच कोई सहमति न हो, पात्रता का ईमान न हो तो फिर पनपने वाला विद्रोह स्वाभाविक ना होकर पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो जाता है।
जब प_ावाद चलना था फिर मापदंड क्यों…?
स्क्रीन कमेटी की पहली बैठक में टिकट वितरण के लिए तमाम सारे मापदंड तैयार किए गए। दो बार के हारे या फिर 15000 से अधिक मतों से पराजित नेताओं को टिकट नहीं दिए जाएंगे। ऐसे ही कई और मापदंड तय किए गए थे। लेकिन सारे मापदंड प_ावाद की संस्कृति में ढह गए। मापदंड के आधार पर टिकट दिए जाते हैं तो मुकेश नायक से लेकर यादवेंद्र सिंह जैसे नेता टिकट की दौड़ से बाहर हो जाते। लेकिन मुकेश नायक कमलनाथ की पसंद थे तो यादवेंद्र सिंह दिग्विजय सिंह के झंडाबरदार रहे। पहली सूची में घोषित तीन प्रत्याशी बदले गए हैं। प्रत्याशी बदलने से यह संदेश जाता है कि संगठन में प्रत्याशियों के चयन में कहीं ना कहीं तदर्थ सोच पर निर्णय लिया गया है। जो प्रत्याशी पहले घोषित कर दिए गए थे उन्हें बदलने के पीछे कोई तार्किक आधार पार्टी नहीं दे सकती है। जिनको टिकट दिए गए थे उनका टिकट काटने से उनका जो सार्वजनिक अपमान हुआ है क्या इसे कोई बर्दाश्त कर पाएगा? यही कारण है कि एनपी प्रजापति का पहले टिकट कटा और फिर बाद में उन्हें फिर उम्मीदवार बनाया गया। ऐसा करके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने शेखर चौधरी के समर्थकों द्वारा सेवोटेज किए जाने का रास्ता खोल दिया। सवाल यह भी उठ रहा है कि कांग्रेस की प्रत्याशियों की सूची पर सबसे पहले तो यही कहा जाना चाहिए कि जब यही टिकट दिए जाने थे तो फिर इतनी देर क्यों लगाई गई? भोपाल में पीसी शर्मा का टिकट क्यों रोका गया था और क्यों दे दिया गया है? जो नाम पहले से चर्चा में आ गए थे कमोबेश सूचियों में भी उसी तरह के नाम दिखाई पड़ रहे हैं। चुनाव के छह महीने पहले टिकट देने की घोषणा क्यों की गई थी?
पर्यवेक्षकों ने फीडबैक भी सही नहीं दिया
सूत्रों पर भरोसा किया जाए तो पिछोर सीट पर कांग्रेस द्वारा जिस कार्यकर्ता को पहले टिकट दिया गया था वह सिंधिया खेमे के मंत्री महेंद्र सिसोदिया का करीबी रिश्तेदार है। अगर इस कारण टिकट बदला गया है तो इसका मतलब है कि पार्टी द्वारा जमीनी स्तर से कोई भी तथ्यात्मक पुष्टि पहले नहीं की गई थी। ‘जोड़ी नंबर वनÓ द्वारा बार-बार यही कहा जा रहा था कि संगठन की स्थानीय इकाई से जो भी फीडबैक आएगा उसी को प्राथमिकता दी जाएगी। अगर फीडबैक लिया गया होता तो फिर पहले टिकट देना और फिर टिकट बदलने के हालात कैसे पैदा हुए?
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