12 घंटे बाढ़ के पानी में डूबी रही फसलें

अनोखा तीर, भैरूंदा। मौसम विभाग की चेतावनी के बाद उत्तर पश्चिम व दक्षित पश्चिम मानसून के आपस में जुड़ जाने से प्रदेश के कई जिलों में हुई तेज बरसात के बाद तवा व बरगी बांध के गेट खोले जाने से नर्मदा नदी में अचानक पानी बढ़ने से बाढ़ जैसे हालात निर्मित हो गए। नर्मदा का थोप लगने से सहायक नदियां भी ऊफान पर आ गई। बाढ़ का पानी गांवों में तो प्रवेश नहीं कर सका, लेकिन नर्मदा तटीय खेतों तक पहुंच गया। 12 घंटे से भी अधिक समय तक फसलें बाढ़ के पानी में डूबी रही। बाढ़ का पानी उतरने के बाद जो मंजर किसानों के सामने आया उसने किसानों को चिंता में डाल दिया। ग्रामीणों की मानें तो क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांवो की सैकड़ों एकड़ से अधिक रकबे में बोई गई फसलें पानी में डूबी रही। इसमें पानी उतरने के बाद 50 फीसदी फसलें को तो सुरक्षित अवस्था में देखी गई, लेकिन शेष रकवे में बाढ़ का कपा फसलों पर जमा हो गया। जिसके चलतें सोयाबीन व मक्का के पौधे जमीन से लेट गए। ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी सोमवार को बाढ़ प्रभावित गांवों में भ्रमण कर फसलों की स्थिति का आंकलन करेंगे। पटवारियों के हड़ताल पर होने से प्रभावित फसलों का सर्वे नहीं हो सकेगा। जिससे भी किसान चिंता में डूबे हुए हैं।

पानी उतरने के बाद दिखी बर्बादी

नर्मदा व सहायक नदियां कोलार व सीप से सटे गांव सातदेव, धौलपुर, रानीपुरा, चौरसाखेड़ी, छिपानेर, नीलकंठ, बड़गांव, मंझली, छिदगांव कांछी, बाबरी में फसलों को ज्यादा नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा हैं। कोलार व नर्मदा नदी के पानी उतर आने के बाद खेतो की हालात दिखाई दी। बाढ़ का पानी तो उतर गया, लेकिन बाढ़ अपने साथ लाई कपा फसलों पर छोड़ गई, जिससे सोयाबीन व मक्का फसलों की स्थिति खराब हो गई। किसानों की मानें तो सातदेव के किसान मनीष धनगर, नरेंद्र पटेल, शोभाराम, सीलकंठ के किसान अमर सिंह व पवन कुमार की मानें तो फसलों से उत्पादन की उम्मीद छोड़ दी हैं। अब तो राजस्व विभाग को सर्वे कर नुकसान की भरपाई करना चाहिए।

पिछले चार-पांच साल से बर्बाद हो रही फसल

क्षेत्र के किसानों की खरीफ सीजन की फसले पिछले चार-पांच साल से प्राकृतिक आपदा के कारण बर्बाद हो रही है। इससे किसानों को खेती लाभ का सौदा साबित नहीं हो पा रही है। विशेषकर नर्मदा व सहायक नदियों से सटे किसानों की फसल तो प्रतिवर्ष बाढ़ आने से बर्बाद हो जाती है। बावजूद इसके किसानों ने उम्मीद नहीं छोड़ी। इस वर्ष भी नर्मदा किनारे के लगभग 7 हजार हैक्टेयर से अधिक रकवे में सोयाबीन व मक्का की बुआई की गई थी, जिसमें से 300 एकड़ खेतों में नुकसान सामने आया है।

इनका कहना है…

आज बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में घूमकर प्रभावित फसलों के फोटो लेकर रिर्पोट बनाकर देंगे। इसके बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगा कि बाढ़ के पानी से कितना नुकसान हुआ है। जिन खेतो में फलियां सूख चुकी थी उसमें नुकसान की संभावना हैं।

– व्हीएस राज, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी।

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