खंडवा- शहर की स्थिति और लोगों का आक्रोश चुनाव से पहले फूट रहा है। हर तबका परेशान है। सत्तारूढ़ सरकार को कोस रहा है। अपनी मांगों को लेकर 13 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे सफाईकर्मियों की हड़ताल ने उग्र रूप ले लिया। सड़कों पर जाम करके वे बैठ गए।
दूसरी तरफ, नगर निगम के लिए शर्मनाक था कि सिटी बस चालू करने के लिए छात्र और एक सरपंच ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। दोनों मामले रूटीन के लगते हैं, लेकिन सफाईकर्मी भी शहर के लिए जिस तरह का योगदान देते हैं, क्या उन्हें हड़ताल के बाद भी नगर निगम प्रशासन कुछ समझ रहा है? दूसरी तरफ सिटी बस के लिए छात्रों की मांग भरे पेट वाले अफसर नहीं समझ सकते! जनप्रतिनिधियों के बच्चे भी तरीके से वाहनों में स्कूल जाते हैं। स्कूल बसों की मोटी फीस भरते हैं, लेकिन बेरोजगारी से जूझ रहे कालेज के निर्धन और मध्यम तबके के छात्र आखिर कब तक पैदल चलेंगे? कब तक उन्हें सिटी बस जैसी सस्ती सुविधा मिल पाएगी?
मामले दोनों खतरनाक मोड में लग रहे हैं। कलेक्टर और निगम प्रशासन को मिलकर इन दोनों समस्याओं के प्रति गंभीर होना होगा। प्रशासन का कर्तव्य है कि जो काम नेताओं को गंभीर नहीं लगता और वह उसी श्रेणी का है तो प्रशासन दखल देता है। इसीलिए उन्हें कड़क प्रतियोगी परीक्षाओं के दौर से गुजारा जाता है।
कुल मिलाकर, नगर निगम की श्रेणी में शामिल खंडवा शहर की हालात खरगोन जिले के सनावद कस्बे से बदतर है। इस शहर का इतिहास तो ठीक है, लेकिन भूगोल, अर्थशास्त्र और राजनीति में पिछड़ा हुआ है। रोचक बात यह है कि, यहां अन्य शहरों की अपेक्षा सिटी बस नहीं चलती है। इसी मांग को लेकर एनएसयूआई नेता और सरपंच ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। दोनों ने अन्न जल त्याग दिया है। शनिवार को हड़ताल का दूसरा है। वे मांग पूरी होने तक हड़ताल जारी रखेंगे।
इधर, भूख हड़ताल कर रहे एनएसयूआई नेता चंदन राजपूत और रोशनाई सरपंच राज ढाकसे ने दो महीने पूर्व यह मांग उठाई थी। तब कई छात्रों को लेकर कलेक्टोरेट घेर लिया था। उस समय जब नगर निगम कमिश्नर से यह पूछा गया तो उनका जवाब था कि यहां सड़के सकरी हैं। दरअसल, कोई भी निगम सरकार ने शहर की सड़कों के चौड़ीकरण को लेकर ध्यान नहीं दिया।
सफाई कर्मी सुबह से सड़कों पर निकल आते हैं उन्हें क्यों चक्का जाम और धरने जैसी स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। ध्यान जरूरी है।
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