अनोखा तीर, हरदा। राजपूत छात्रावास में चल रही श्री नर्मदा पुराण में पंडित सुशील जोशी ने कहा कि हमारे यहां प्रकृति को पूजा जाता है। हम नदी, पर्वत, वृक्ष सभी का पूजन करते हैं। इसके पीछे हमारे ऋषियों का बड़ा ज्ञान और विज्ञान है कि प्रकृति को धर्म और स्वास्थ से जोड़ दें, तो प्रकृति का संरक्षण अपने आप हो जाएगा। जीव मात्र पर दया का भाव। सारे संसार को भगवान का स्वरुप मानना। सियाराम मय सब जग जानी। सारे विश्व को परिवार मानना वसुधेव कुटुंबकम की भावना। सर्वे भवंतु सुखिना सब स्वस्थ रहें, यह भावना हमारे सनातन धर्म में हैं। विश्व का कल्याण हो ऐसी पवित्र भावना रखने वाली हमारी ऋषि परंपरा है। श्री नर्मदा पुराण इस बात का प्रमाण है कि नदियों को लेकर हमारे ऋषि मुनि कितने गंभीर रहे होंगे कि पवित्र नदियों के लिए उन्होंने पुराण की रचना की। मां नर्मदा चारों पुरुषार्थ को प्रदान करती है। धर्म अर्थ काम मोक्ष को देने वाली मां नर्मदा। जिनके दर्शन मात्र से पाप राशि समाप्त हो जाती है। मां नर्मदा में गंगा जी में अनेक नदियां मिलने के बाद भी नर्मदा जल बरसो झारी में रखने के बाद भी दूषित नहीं होता। मां नर्मदा गंगा का जल औषधि गुणों से युक्त है। कोई भी देवता ऐसा नहीं है। जिसने नर्मदा तट पर आकर तप नहीं किया हो। आद्य गुरु शंकराचार्य जी के द्वारा ऋण मुक्तेश्वर महादेव की स्थापना। भगवान शिव स्वयं मां नर्मदा के तट पर लुकेश्वर महादेव के रूप में प्रतिष्ठित है। श्री परशुराम भगवन के द्वारा मां नर्मदा के तट पर तप किया। जमदग्नेश्वर महादेव की स्थापना की।
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