रंगपंचमी पर्व की संध्या पर काव्यमयी फागोत्सव का आयोजन हुआ

 

अनोखा तीर, हरदा। मध्यप्रदेश लेखक संघ की जिला इकाई द्वारा रंगोत्सव पर्व को रचनाओं के रंग उड़ाकर मनाया गया। इकाई के वरिष्ठ अरविंद अग्रवाल के आयोजन में गोष्ठी आयोजित हुई। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रभुशंकर शुक्ल उपस्थित थे। गोष्ठी की अध्यक्षता जयकृष्ण चांडक ने की। वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में शोभा वाजपेयी, प्रह्लाद चौरे, जीपी गौर एवं अशोक अग्रवाल उपस्थित रहे। सभी साहित्यकारों व श्रोताओं को गुलाल लगाकर पुष्पमयी स्वागत आयोजक अरविंद अग्रवाल, सौरभ अग्रवाल, सिद्धार्थ अग्रवाल व यशवंत अग्रवाल ने किया। सरस्वती वंदना दिनेश मानपुरी ने प्रस्तुत की। फागोत्सव गोष्ठी का कुशल संचालन शिरीष अग्रवाल ने किया। रंगोत्सव पर्व पर कवियों ने देर रात तक काव्य वर्षा की। जिसमें बालमुकुंद ओझा ने ईश्वर की सत्ता अद्भुत करिश्मा कर गई, मो. तारिक ने तुमने तो खुशियों से दामन भर लिया, मैंने तो हर इल्जाम अपने सर लिया, त्रिलोक शर्मा ने पिचकारी हैं शब्द की, भावों का हैं रंग, चलो भूलकर द्वेष को होली खेले संग, लोमेश गौर ने पहली बार शादी हुई और ससुराल गया हास्य छंद से सभी को गुदगुदाया। रतन सोलंकी ने गुजिया जैसा मन हैं उसका, खुरमे सी बोली, गीत प्रीत के हमें सुनाने आई हैं होली, मंसूर अली ने अब के बरस होली में दिल से दिल मिलाएंगे, बलराम काले ने दुनिया कितनी बदसूरत होती अगर न होते बाल, अक्षिति दुबे समय बड़ा बलवान हैं, सावन सिटोके ने सीमा के हर प्रहरी को हो, देशभक्ति का रंग मुबारक, सुभाष सिटोके ने कोई रंग नहीं लागा, सब रंगों से रहा अछूता मेरा मन धागा, गजलकार जोहर साहब ने बेरुखी यूं न बढ़ाओ कि सवालात बने, कपिल दुबे ने नन्दलाला की बजी बंसुरिया उसी कदंब की छांव में, बरसाने की होरी जैसी हो गई होरी गांव में, जीआर गौर ने रंगों का पर्व हैं खुशियां मनाइए, बृजमोहन अग्रवाल ने कितना कहा सुना पर कुछ असर नहीं, चल रहा जिस डगर वो सही डगर नहीं, जयकृष्ण चांडक ने झूठ को भी सच बताया जाएगा,दोप फिर कोई लगाया जाएगा। वहीं प्रह्लाद चौरे ने मीठे-मीठे में कोयल गा रही, हरियाली भी इस मन को भा रही,दिनेश मानपुरी ने आओ खेले होली आज बने हमजोली बड़ी लगती सुहानी आज होली की फुहार हैं, श्याम शर्मा ने होली में उड़ेगा गुलाल सांवरिया आ जाना, रमेश भद्रावले ने आज का आदमी सालभर ही रंगपंचमी मनाता हैं, दुर्गेशनन्दन शर्मा ने विष पी जो अमृत से बहे वो जाने किस देश रहें, नारायण शर्मा ने पूछता है हर आदमी से आंसमा प्यार से पाले थे मैंने झूमते जंगल कहां है, प्रकाश चन्द्र पोर्ते ने पिचकारी प्यारी हैं पिचकारी, गोष्ठी का संचालन कर रहे शिरीष अग्रवाल ने एटलस की गुलाबी साइकिल पसंद थी उसे वो बोलेरो में आया इशारों में ले गया। डॉ. प्रभुशंकर शुक्ल ने धरती ने ओढ़ी सतरंगी चुनरिया हर धनिया राधा होरी कन्हैया, देर रात तक श्रोताओं ने कविताओं का आनन्द लिया।

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