चुनाव में खर्च करने में भाजपा या कांग्रेस, कौन सा दल आगे, जानिये बीते वर्षों के आंकड़े

अनोखा तीर उज्जैन:-लोकसभा चुनाव जीतने के लिए रुपया खर्च करने में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस से आगे है। पिछले चुनाव में उज्जैन-आलोट संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़े भाजपा प्रत्याशी अनिल फिरोजिया ने 54 लाख 15599 रुपये खर्च थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी बाबूलाल मालवीय ने 53 लाख 9481 रुपये खर्च किए थे। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी सतीश परमार ने एक लाख 8210 रुपये खर्चे थे। ये वो खर्च है जिसका हिसाब निर्वाचन आयोग को दिया गया था।

इस वर्ष चुनाव प्रत्याशियों के लिए चुनाव खर्च सीमा 95 लाख रुपये निर्धारित है। 2019 के चुनाव के समय सीमा 70 लाख रुपये थी। एक रिपोर्ट के अनुसार दो दशक में चुनाव प्रचार पर प्रत्याशियों के लिए खर्च की सीमा तीन गुना तक निर्वाचन आयोग ने बढ़ाई है। 2004 के चुनाव में प्रत्याशी के लिए चुनाव खर्च की सीमा 30 लाख रुपये थी। स्वतंत्र भारत में जब 1951 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे तब खर्च की सीमा 25 हजार रुपये थी।

साल 1971 में खर्च की सीमा बढ़ाकर 35 हजार रुपए की गई थी जो साल 1977 तक बरकरार रही। इसके बाद समय-समय पर चुनाव में निष्पक्षता कायम रखने के लिए जरूरत के हिसाब से खर्च की सीमा में बढ़ाई जाती रही। उद्देश्य, चुनाव में धन-बल का उपयोग नियंत्रित करना रहा।

बता दें कि चुनाव प्रचार पर खर्च का हिसाब, बिलों के साथ प्रत्याशी को नाम निर्देशन पत्र दाखिल करने के बाद से ही रखना पड़ता है और इसका प्रमाणित लेखा-जोखा निर्धारित प्रपत्र में निर्वाचन आयोग को समय-समय पर देना पड़ता है। इसके लिए प्रत्याशी को एक अलग से बैंक खाता खुलवाना होता है।

सीएम की सभा कराने पर खर्च दो लाख 60976 रुपये, शाह की सभा पर एक लाख 66850 रुपये

पिछले चुनाव में अनिल फिरोजिया ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराजसिंह चौहान की तीन सभा कराने पर दो लाख 60976 रुपये खर्च थे। केंद्रीय मंत्री अमित शाह की एक सभा कराने पर एक लाख 66850 रुपये खर्चे थे। बाकी रुपया पोस्टर, बैनर, पंपलेट, रैली, प्रचार- वाहन आदि पर खर्च हुआ बताया था।

यह भी स्पष्ट किया था कि उन्होंने अपनी जेब से चुनाव पर 40 हजार रुपये खर्चे थे। 50 लाख रुपये भाजपा से प्राप्त हुए थे। इस बार भी भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल उज्जैन में बड़े नेताओं की सभा, रैली कराने की तैयारी कर रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव, उज्जैन से ही विधायक हैं।

ऐसे में उनके लिए ये सीट जीतना प्रतिष्ठा का विषय भी बना हुआ है। जबकि अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस के लिए ये सीट जीतना काफी चुनौतीपूर्ण है।

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