अनोखा तीर, मसनगांव। क्षेत्र में खराब हो रही चने की फसल का निरीक्षण करने के लिए कृषि विभाग का दल ग्राम में पहुंचा। जहां उन्होंने अमित छलौत्रे, राकेश रायखेरे, रामनिवास पटेल के खेतों में जाकर फसल का निरीक्षण किया। चने की फसल में मुख्य रूप से कॉलर राड एवं फफूंद का अटैक पाया गया। कृषि वैज्ञानिक ओमप्रकाश भारती ने बताया कि मौसम अनुकूल होने से फफूंद तेजी से खेतों में फैल रही है। जिससे पौधे मुरझाकर सूख रहे हैं। चने की फसल लगभग एक माह की हो चुकी है। जिसमें कॉलर राड का भी अटैक बना हुआ है। किसानों ने बताया कि उन्होंने फसल को बचाने के लिए फंगीसाइड दवा जिब्रेलिक एसिड कीटनाशक का स्प्रे कर चुके हैं। लेकिन बीमारी रुकने का नाम नहीं ले रही है। खेतों में जगह-जगह बड़े-बड़े टांके हो गए हैं। धीरे-धीरे पौधे नष्ट होने से फसलों का उत्पादन प्रभावित होगा। यदि यही स्थिति रही तो अधिकांश चने की फसल सूखकर खराब हो सकती है। जिस पर कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि टेबुकनाझोल एवं सल्फर का 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से या थायोफेनेट मिथाईल एवं मेनकोजेब 200 ग्राम प्रति एकड से पौधो पर छिड़काव किया जाए। जिससे फसल में सुधार आ सकता है। चना फसल में यह मृदाजनित रोग है, जो पौधे सूख चुके हैं वह ठीक नहीं होंगे, लेकिन जो स्वस्थ हैं वह सुरक्षित रह जाएंंगे।
जमीन सुधारने के लिए ट्राइकोडर्मा जरूरी
कृषि वैज्ञानिक ओमप्रकाश भारती ने बताया कि किसानों के द्वारा अनेक दवाएं मिलाकर एक साथ स्प्रे करने से भूमि में मित्र कीट एवं फफूंद खत्म हो चुकी है। जिसे बनाने के लिए किसानों को सभी फसलों की बुवाई के पहले 50 किलो गोबर में ट्राइकोडर्मा एवं जीवामृत का प्रयोग करना जरूरी हो गया है। यदि भूमि में सुधार नहीं होता है तो आने वाले समय में सभी फसलों में यह बीमारियां लग सकती हैं।
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