खराब मौसम से सूखने लगी चने की फसल

 

अनोखा तीर, मसनगांव। पंद्रह दिनों से खराब मौसम का असर रबी सीजन की दूसरी मुख्य फसल चने पर दिखाई देने लगा है। खेतों में लगी हुई चने की फसल में पौधे सूख रहे हैं, जिसे बचाने के लिए किसान महंगी दवाई का स्प्रे कर रहे हैं, पर दवाई का असर भी नहीं दिखाई दे रहा है। खराब फसल को देखते हुए कुछ किसानों ने चने की फसल को बखरकर गेहूं की बुआई कर दी है। वहीं जिन किसानों की बुवाई नहीं हुई है, वह चने की फसल की जगह गेहूं को प्राथमिकता दे रहे हैं। पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी चने में बीमारियों का जबरदस्त अटैक बना हुआ है। आसमान पर बादल छाने के बाद भारी तादाद में इल्लियां हो रही हैं, तो नीचे जड़ सड़न तथा फफूंद लगने से पौधे तेजी से सूख रहे हैं। खेतों में पूरे प्लाट में अटेक होने से खेत एक सिरे से खाली होता जा रहा है। किसानों के द्वारा कम पानी तथा जल्दी आने वाली फसल के विकल्प के रूप में पिछले कुछ वर्षों से चने का चुनाव किया है, लेकिन चने की फसल पिछले दो-तीन वर्षों से किसानों को धोखा देने लगी है। इस वर्ष किसानों ने चने की अनेक प्रजातियां लगा रखी हैं, जिनमें सबसे अधिक बीमारियों का अटैक है उनमें विशाल, 204, जाकी 9218 शामिल है। वहीं सफेद चने का भाव अधिक होने से किसानों के द्वारा डॉलर तथा काटू रशियन गोल्ड, 72 गोल्ड जैसी प्रजाति खेतों में लगा रखी है। लेकिन खराब मौसम का असर सभी प्रजाति पर देखा जा रहा है।

लग चुकी है हजारों की लागत

खराब हो रही चने की फसल में हजारों रुपए की लागत लग चुकी है। ग्राम के किसान कमलेश बांके ने बताया कि उन्होंने खेतों में बिजाई के लिए 16 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से डालर चने की बुवाई की है। प्रति एकड़ एक क्विंटल चना लगाया है। वहीं देशी किस्म में विशाल चने की बुवाई की है, जिसका भाव बाजार 7 हजार से लेकर 8 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक मिला। जिसे 50 किलो एकड़ के हिसाब से खेतों में बोया है। वहीं डीएपी खाद तथा सीड ट्रीटमेंट के लिए अलग से दवाई मिलकर डाली गई है। रासायनिक खाद के अलावा सल्फर एवं माइक्रो रायजा आदि खाद का मिश्रण कर खेतों की बुवाई की। जिसमें प्रति एकड़ 8 हजार रुपए करीब लागत लग चुकी है। इसके बावजूद फसल में बीमारियों का अटैक बना होने से आर्थिक नुकसान हो रहा है। अन्य किसान राकेश पाटिल, राकेश रायखेरे, पवन भायरे ने बताया कि पिछले वर्ष भी चने की फसल में उगटा रोक लगने से फसल खराब हो गई थी। उत्पादन भी काम निकला था। इस वर्ष खराब मौसम तथा जमीन में फंगस अधिक होने से फसल अभी से खराब हो रही है जिससे उत्पादन प्रभावित होगा। इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक ओपी भारती ने बताया कि जमीन में बुवाई के बाद पानी गिरने से मौसम फंगस के अनुकूल बना है। इस कारण अटैक ज्यादा हो गया है। जमीन में फंगस कालर रोड बिल्ट जैसी बीमारियां क्लाइमेट देखकर तेजी से पनपती है। क्षेत्र में लगातार दलहनी फसल बोने से भी फंगस तेजी से पनप रही है। किसानों को प्रतिवर्ष 50 किलो गोबर खाद में ट्राइकोडर्मा मिलाकर छिड़काव प्रति एकड़ के हिसाब से करना चाहिए। जिससे मृदा जनित रोग पर अंकुश लग सकेगा। चने की फसल में थायोफेनेट मेथाइल 200 से 250 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। वही दूसरा टेवोकोनाझोल तथा सल्फर का स्प्रे 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। यदि जमीन में दीमक है तो इमिडाक्लोरोफिल का स्प्रे करें। जिससे फसल में सुधार आ जाएगा।

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