नई दिल्ली- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) ने उत्तराखंड में चारधाम महामार्ग परियोजना के हिस्से के रूप में राडी पास क्षेत्र के अंतर्गत गंगोत्री और यमुनोत्री आधार को जोड़ने के लिए सिल्क्यारा में 4.531 किमी लंबी दो लेन द्वि-दिशात्मक सुरंग का निर्माण शुरू किया है। मेसर्स राष्ट्रीय राजमार्ग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) इस परियोजना पर कार्य कर रही है। योजना के कार्यान्वयन के लिए 1383 करोड़ रुपये की टीपीसी के लिए स्वीकृति प्रदान की गई। इस सुरंग के निर्माण से तीर्थयात्रियों को अत्यधिक लाभ होगा क्योंकि यह हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। इससे राष्ट्रीय राजमार्ग-134 (धरासु-बड़कोट-यमुनोत्री रोड) की 25.6 किमी हिम-स्खलन प्रभावित लंबाई घटकर 4.531 किलोमीटर रह जाएगी। जिसके परिणामस्वरूप यात्रा का वर्तमान समय 50 मिनट का दसवां हिस्सा 5 मिनट रह जाएगा।
मेसर्स एनएचआईआईडीसीएल ने मेसर्स नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के साथ ईपीसी मोड पर 853.79 करोड़ रुपये के अनुबंध समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस परियोजना का कार्यान्वयन शुरू हुआ और पूरा होने का लक्ष्य रखा गया था। काम में देरी के कारण इसकी वर्तमान प्रगति 56 प्रतिशत है और 14 मई 2024 तक पूरा होने की संभावना है। वर्तमान में लगभग 4060 मीटर यानी 90 प्रतिशत लंबाई का कार्य पूरा हो चुका है और 477 मीटर लंबाई के लिए खुदाई का काम चल रहा है, साथ ही हेडिंग वाले हिस्से की बेंचिंग आदि की अन्य गतिविधियां भी चल रही हैं। सिल्कयारा की ओर से 2350 मीटर तक और बड़कोट की ओर से 1710 मीटर तक हेडिंग की जाती है।
लगभग 40 श्रमिक सुरंग के अंदर सिल्कयारा पोर्टल से 260 मीटर से 265 मीटर अंदर रिप्रोफाइलिंग का काम कर रहे थे, तभी सिल्कयारा पोर्टल से 205 मीटर से 260 मीटर की दूरी पर मिट्टी का धंसाव हुआ और ठेकेदार के सुरंग प्रविष्टि रजिस्टर के आधार पर सभी 40 श्रमिक अंदर फंस गए।
घटना की सूचना तुरंत राज्य/केंद्र सरकार की सभी संबंधित एजेंसियों को दी गई और राज्य प्रशासन, एसडीआरएफ/एनडीआरएफ, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, राष्ट्रीय राजमार्ग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर विकास निगम लिमिटेड, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, सीमा सड़क संगठन और अन्य राज्य विभाग के समन्वित प्रयासों से उपलब्ध पाइपों के माध्यम से, सुरंग में फंसे हुए श्रमिकों को ऑक्सीजन/पानी/बिजली/छोटे पैक भोजन की आपूर्ति के साथ बचाव कार्य शुरू किया गया। फंसे हुए श्रमिकों से वॉकी टॉकी के माध्यम से भी संचार स्थापित किया गया है।
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