राधेश्याम सिन्हा, बैतूल। जिले के बैतूल विधानसभा क्षेत्र में दोनों मुख्य राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस के लगभग तय शुदा प्रत्याशी भाजपा के हेमंत खंडेलवाल और कांग्रेस के रनिंग विधायक निलय डागा के बीच मुकाबला होना है। दोनों प्रत्याशी श्री खंडेलवाल और श्री डागा के कुबेर पति होने से प्रदेश के २३० विधानसभा सीटों में गिनती के हॉट सीटों में बैतूल विस सीट भी शुमार हो चुकी है। जिसके चलते यहां संग्राम नहीं बल्कि महासंग्राम होने की अनुमान राजनीति के जानकार लगा रहे हैं। इसी वर्ष नवंबर में होने जा रहे मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर जहां राज्य और केंद्रीय नेतृत्व ने सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं प्रदेश के सभी विधानसभा सीटों में चुनावी गतिविधियां तेज हो गई है। बैतूल जिले में भी दावेदारों ने अपनी अपनी चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर दिए हैं। बैतूल जिले में वर्ष 1998 में 6 विधानसभा क्षेत्र थे, परंतु परिसीमन के बाद मसोद विधानसभा क्षेत्र के विलुप्त हो जाने के बाद 5 विधानसभा सीट रह गई हैं। जिसमें दो सामान्य और दो आदिवासी वर्ग के लिए तथा एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस जिले में दो ही सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है जिसमें मुलताई विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख दोनों दलों को जाति समीकरण के आधार पर बहुसंख्यक कुंबी समाज से प्रत्याशी बनाते आ रहे हैं। लेकिन बैतूल विधानसभा सामान्य क्षेत्र से कभी पिछड़ा वर्ग से तो कभी अल्प संख्यक (खंडेलवाल या डागा परिवार) से विधायक बने हैं। पिछले 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस से निलय डागा और भाजपा से तात्कालीन विधायक हेमंत खंडेलवाल के बीच मुकाबला हुआ था, जिसमें कांग्रेस के निलय डागा बाजी मार गए। श्री डागा ने इस चुनाव में विजय हासिल कर पिछले 15 सालों से भाजपा के कब्जे में रही बैतूल विधानसभा सीट को हथियाने में कामयाबी हासिल की थी। गौरतलब है कि 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विनोद डागा ने भाजपा प्रत्याशी रहे शिवपसाद राठौर को परास्त करते हुए जहां वे कांग्रेस का परचम लहराया था। उसके बाद बैतूल विधानसभा सीट में लगातार तीन बार भाजपा की जीत हुई थी यानी इस सीट पर डेढ़ दशक भाजपा की कब्जा रही। उसके बाद भाजपा की झोली से बैतूल सीट को कांग्रेस के खाते में लाने का काम पूर्व विधायक विनोद डागा के पुत्र निलय डागा ने कर दिखाया। जबकि 2018 का चुनाव काफी दिलचस्प था। क्योंकि दोनों ही प्रत्याशी हर एंगल से वजनदार थे और हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार इस बार भी बैतूल विधानसभा सीट का नजारा कुछ वैसा ही रहेगा। क्योंकि इस बार भी जहां कांग्रेस के वर्तमान विधायक निलय डागा का टिकट लगभग तय है वहीं भाजपा से भी पूर्व सांसद, पूर्व विधायक और पूर्व भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष और वर्तमान में कुशाभाऊ ठाकरे न्यास का दायित्व संभाल रहे हेमंत खंडेलवाल की टिकिट पक्की होने से दोनों प्रत्याशी के बीच सीधी टक्कर होना है। चुंकी कांग्रेस जिन 66 सीटों के प्रत्याशियों का नाम तय कर चुकी है उसमें बैतूल से निलय डागा का नाम शामिल है। इसी तरह भाजपा के सामने भाजपा की गोपनीय सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक हेमंत खंडेलवाल के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है।
एक-दूसरे पर भारी है दोनों कैंडिडेट
बैतूल विधानसभा सीट से कांग्रेस के तयशुदा प्रत्याशी वर्तमान विधायक निलय डागा और भाजपा के प्रत्याशी पूर्व विधायक हेमंत खंडेलवाल दोनों कैंडिडेट एक-दूसरे पर भारी पड़ने वाले हैं। चाहे इसे आर्थिक रूप से तुलना किया जाए या लोकप्रियता और जनाधार के एंगल से देखा जाए। इसके अलावा कुछ और अहम मामले हैं जिसमें कोई एक कैंडिडेट जरूर भारी पड़ सकता है जिसे ओपन करना जल्दबाजी होगा।
बैतूल विस का विधायकी इतिहास
देश की आजादी के बाद अस्तित्व में आई बैतूल विधानसभा सीट में पहली बार 1952 में विधानसभा चुनाव हुआ था। जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी दीपचंद गोठी विजय हासिल कर विधायक बने थे। यानी कहा जाए कि दीपचंद गोठी को प्रथम विधायक बनने का गौरव हासिल हुआ था। इसके बाद 1957 और 1962 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बैतूल के विधायक रहे श्री गोठी ने लगातार तीन चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। हालांकि इस दौर में कांग्रेस का वर्चस्व था और विपक्षी पार्टियों में कोई दम नहीं था। 1967 में दीपचंद गोठी के चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद कांग्रेस से हरक चंद डागा को प्रत्याशी बनाया गया था और इस समय जनसंघ प्रत्याशी रहे बैतूल के प्रसिद्ध कर सलाहकार और लेखक राजीव खंडेलवाल के पिता जीडी खंडेलवाल विधायक चुने गए थे और फिर जीडी खंडेलवाल मध्य प्रदेश सरकार में ऊर्जा मंत्री भी रहे। इसके बाद जनसंघ से भाजपा होने के बाद कई भाजपा से अनेकों विधायक चुने गए लेकिन अब तक भाजपा से कोई मंत्री नहीं बन पाए। जानकारी के मुताबिक जीडी खंडेलवाल के बाद 1972 में कांग्रेस से डॉक्टर मारुति रव पांसे, फिर 1977 में माधव गोपाल नासेरी विधायक चुने गए, 1980 में फिर से माधव गोपाल नासेरी विधायक बने थे, 1985 में कांग्रेस के डॉ. अशोक सावले, 1990 में भाजपा से भगवत पटेल , 1993 में फिर से कांग्रेस से डॉ. अशोक सावले,1998 में कांग्रेस के विनोद डागा, 2003 में भाजपा के शिव प्रसाद राठौर, 2008 में भाजपा के अलकेश आर्य, 2013 में भाजपा के हेमंत खंडेलवाल और 2018 में कांग्रेस के निलय डागा विधायक चुने गए। इस तरह बैतूल विधानसभा क्षेत्र में कुल 12 बार चुनाव हो चुके हैं।
कांग्रेस-भाजपा के अन्य संभावित दावेदार
बैतूल विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा के दावेदारों में यह तो तय है कि कांग्रेस से रूलिंग विधायक निलय डागा और भाजपा के पूर्व विधायक हेमंत खंडेलवाल का नाम लगभग तय माना जा रहा है। लेकिन किन्हीं विशेष कारणों से किसी की भी टिकट कटती है तब ऐसी स्थिति में टिकट की चाहत रखने वालों में कांग्रेस से कांग्रेस कमेटी के शहर अध्यक्ष सुनील शर्मा, ग्रामीण अध्यक्ष हेमंत वागद्रे, कांग्रेस सेवा दल के पूर्व जिला प्रमुख मनोज आर्य आदि अपनी दावेदारी कर सकते हैं। इसी तरह भाजपा में पूर्व विधायक अलकेश आर्य, भाजपा जिलाध्यक्ष आदित्य बबलू शुक्ला, पूर्व विधायक शिव प्रसाद राठौर सामने आ सकते हैं। हालांकि अभी तक कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टी के इन दावेदारों ने खुलकर सामने नहीं आए हैं। लेकिन राजनीति के गलियारों में इनकी चर्चा होती है।
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