- प्रदीप शर्मा, हरदा। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लाई गई लाड़ली बहना योजना के समय और मौके को देख कतिपय राजनीतिक दलों और समीक्षकों द्वारा अपने-अपने अनुमान लगाने का दौर शुरू हो गया है। कुछ लोग इसे सीएम का चुनावी दाव मान रहे हैं, तो कुछ लोग इसे अव्यवहारिक योजना बताकर कई किंतु-परंतु निकाल रहे हैं। कोई इसका प्रदेश के बजट पर पड़ने वाले प्रभाव बताकर सवालिया निशान भी लगा रहे हैं। मगर जो लोग प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की रीति-नीति और कार्यशैली को करीब से जानते हैं, उनकी नजर में यह योजना बहुत खास है। वह इसलिए कि शिवराज तो पहले भी वैसे ही थे जैसे कि आज हैं। श्री चौहान के अतीत को देखा जाए तो पैदल घरोंघर संपर्क करने वाला नौजवान तब भी गरीब की बेटी की शादियां अपने स्तर से कराके उनके सुख-दुख का साथी था, जब वह मुख्यमंत्री नहीं थे। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना तो बहुत साल बाद तब आई जब शिवराज सिंह के हाथों में प्रदेश की कमान आई। उस समय भी विरोधी दल के नेताओं ने कहा कि यह सरकारी बजट का दुरुपयोग है। मगर कालांतर में इसे खूब सराहा गया। याद करें मध्यप्रदेश में एक वक्त वह भी था जब राज्य की आबादी में लिंगानुपात बुरी लड़खड़ा रहा था। तब तत्कालीन सरकारें कानून बनाकर गर्भस्थ कन्या शिशु की हत्या रोकने के खोखले प्रयास कर रहीं थीं। जब समाज का ताना-बाना बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हो रहा था, तब ऐसे कठिन मौके पर सत्ता में आई शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने वह कमाल किया कि आज कन्या रत्न के जन्म की तादाद बढ़ गई है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लाई गई लाड़ली लक्ष्मी योजना को विश्वव्यापी सराहना मिली और यूनेस्को जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों ने इसका स्वागत किया। हमारी केंद्र सरकार ने भी इसे संपूर्ण देश में लागू करने हेतु सभी राज्य सरकारों को कहा। बहरहाल इन योजनाओं को जब मध्यप्रदेश की सरकार शुरू कर रही थी तब न तो चुनावी साल था और न ही निकट समय में चुनाव होने वाले थे। यह श्री चौहान की सरकार ही थी जिसने प्रदेश में पहली बार तमाम वर्गों की महापंचायत बुलाकर उनकी सुनवाई की और समस्याओं को हल किया। यही वजह है कि शिवराज सरकार की नीतियों को देखकर ख्यात राजनीतिक समीक्षकों ने उन्हें जनता का मुख्यमंत्री होने की संज्ञा भी दे डाली। बीते डेढ़ दशक के कार्यकाल को देखकर यह कहना मुश्किल है कि भाजपा की सरकार ने ये सारे कार्य चुनावी दावपेंच के लिए किए हैं। इसलिए हाल ही में लाई गई सरकार की ‘लाड़ली बहनाÓ योजना भी इसी तरह बेदाग है। इसके प्रदेश में लाने से पूर्व शासन द्वारा तहकीकात की गई थी कि राज्य में महिलाओं की वास्तविक दशा कैसी है। इसमें यह तथ्य खुलकर सामने आया कि दिन भर घर में खटने वाली महिलाओं का स्वास्थ्य पुरुषों की तुलना में काफी कमजोर है। उनके पास न तो स्वयं की बचत का पैसा है और न ही कोई बड़ी संपत्ति। इसे देखते हुए सरकार ने अचल संपत्ति के तमाम विक्रयपत्रों की रजिस्ट्री महिलाओं के नाम से होने पर छूट प्रदान की। इसका नतीजा यह रहा कि कल तक महिलाओं के नाम से संपत्ति खरीदने में हिचकने वाले लोग अपने परिवार की महिलाओं के नाम से खरीदने आगे आने लगे हैं। वर्तमान समय में अनेक महिलाएं अब स्वयं संपत्ति की मालिक बन गई हैं।
- क्रांतिकारी योजना बनेगी लाड़ली बहना
- प्रदेश सरकार द्वारा लाई गई ‘लाड़ली बहनाÓ योजना महिलाओं के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने जा रही है। इस योजना में हर माह मिलने वाली छोटी-छोटी राशि से ये अपने जीवन में काफी बदलाव लेकर आएंगी। कालांतर में सरकार इस पेंशन को बढ़ाकर 3000 तक करेगी। जिससे वे आने वाले समय में अपने लिए कई कार्य कर पाएंगी। वे अपने स्वास्थ्य को भी सुधारेंगी और परिवार चलाने में पति का हाथ भी बंटा सकेंगी। इसलिए प्रदेश की आधी आबादी के हितार्थ लाई गई इस महत्वाकांक्षी योजना के टाइम शैड्यूल पर उंगली उठाने से पहले समीक्षकों को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इस सीख को याद कर लेना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि किसी भी महान कार्य को करने हेतु किसी विशेष शुभ घड़ी का इंतजार न करें, ऐसा कार्य अपने साथ स्वयं परमात्मा का आशीर्वाद लेकर आता है। यही वजह है कि बीते वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा लाई गई योजनाओं के बाद यदि हम कहें कि मध्य प्रदेश अब कल्याणकारी राज्य में बदल रहा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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