सब्जी पर छाई महंगाई …..  बेकाबू हुई महंगाई, कीचन का बजट बिगड़ा

 

 इन दिनों मंहगाई आसमान छू रही है। गैस, पेट्रोल-डीजल, खाद्य तेल एवं दाल समेत प्राय: सभी खाद्य पदार्थ महंगे हो चुके हैं। ऐसे में लोग सब्जियों से गुजर-बसर कर रहे थे, परंतु वह भी आम आदमी की पहुंच से दूर दिखाई देने लगी है। जानकारी के अनुसार टमाटर, मिर्ची सहित हर एक सब्जी के दाम ऊंचाई पर हैं। जिसके चलते थालियों से जहां हरी सब्जी व सलाद गायब है, वहीं गृहणियों के किचिन का बजट पूरी तरह बिगड़ गया है।

 

अनोखा तीर, हरदा। कहते हैं जब मंहगाई आसमान छू लगे तो जिम्मेदारों के नियंत्रण से बाहर हो जाती है। जिसका सर्वाधिक असर गरीब तथा मध्यमवर्गीय परिवारों पर पड़ता है, वहीं घर-घर गृहणियों के कीचन का बजट पटरी से उतरना लाजमी है। ऐसा ही कुछ हाल इन दिनों बना हुआ है। जब हरी सब्जियों के साथ-साथ टमाटर, चटनी और मिर्ची ऊंचे दाम पर बिक रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सरकार महिलाओं को सशक्त, समृद्ध एवं आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हुई है। जबकि उन्हीं महिलाओं के कीचन बजट से मानो कोई सारोकार नही है। इन सबके बीच तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गर्माने लगा है। लोग महंगाई को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं। बता दें कि इन दिनों मंहगाई का खासा अहसास हो रहा है। गैस, पेट्रोल-डीजल, खाद्य तेल एवं दाल समेत प्राय: सभी खाद्य पदार्थ महंगे हो चुके हैं। इन सबके बीच अब हरी सब्जियां भी आम आदमी की पहुंच से दूर दिखाई देने लगी है। जानकारी के अनुसार टमाटर, मिर्ची सहित अन्य सब्जियों के दाम ऊंचाई पर हैं। जिसके चलते थालियों से जहां हरी सब्जी व सलाद गायब है, वहीं गृहणियों का कीचड़ बजट पूरी तरह बिगड़ गया है।

 

थोक एवं फुटकर में काफी अंतर

सब्जी मंडियों में आम व्यक्ति को प्राय: सभी सब्जियां ऊंचे दाम पर मिल रही है। जबकि यही सब्जियां सुबह-सुबह नीलामी केन्द्र पर आधे दाम पर मिलती हैं। लेकिन, फुटकर मार्केट में पहुंचते ही सब्जियों के दाम दो से ढ़ाई गुना वसूले जाने की बात सामने आ रही है। इस संबंध में शहरवासियों का कहना है कि महंगाई पर खासकर आमजन से जुटी वस्तुओं के थोक तथा रिटेल भाव पर प्रशासन की नजर रहनी चाहिये, ताकि ये पता रहे कि आखिर महंगाई की वजह क्या है। वहीं अगर वजह गलत है तो संबंधितों पर कसावट जरूरी है, ताकि आमजन को राहत मिल सके।

 

किसान वहीं का वहीं, एजेंट चकाचक

यह भी बताना होगा कि सब्जी उत्पादक किसानों को उनकी फसलों का एक सीमा तक भाव मिल पाता है। हालांकि किसान उसमें भी गुजर-बसर कर लेता है। वहीं दूसरी ओर किसानों की फसल जिन एजेंटो के जरिये बिकती है, वे सब चकाचक है या यूं कहें कि चांदी काट रहे हैं। इतना ही नही, भाव में दांव मारने के साथ-साथ उनकी कमीशन पर भी नजर रहती है, जो कि प्रदेश सरकार की मंशाओं के विरूद्ध है। सब्जी उत्पादन से जुटे किसान बताते हैं कि इन सबके मध्य मंडी प्रबंधन की कार्यप्रणाली सवाल के घेरे में रहती है।

 

– भाव ! पहले और अब….

सब्जी — पहले — अब

टमाटर — ४० — १६०

हरी मिर्ची — ६० — १६०

शिमला — ६० — ८०

हरी चटनी — ५० — १६०

गिलखी — ४० — ८०

पालक — ३० — ४०

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