निराशा…. बेलर-32 बेअसर ! मूंग को दोंगली व दुधई ने जकड़ा

 

–  खरपतवार नियंत्रण की दिशा में सबसे उपयोगी बेरल-32 इस बार बेअसर साबित हुई है। कई किसानों के खेतों में इसके अपेक्षाकृत परिणाम नही मिले हैं। जिसके चलते किसानों पर दोहरी मार पड़ना लाजमी है। अब, उन्हें खरपतवार खासकर दोंगली, दुधई समेत अन्य चारों पर काबू पाने की चुनौती है। इसके लिये दूसरा पानी तथा लगे-लगाये खरपतवार नाशक की तैयारी में हैं।

 

 मूंग को इस तरह जकड़ लिया

अनोखा तीर, हरदा। रबी एवं खरीफ दोनों प्रमुख सीजन दौरान खेतों में बुआई के 72 घंटे के भीतर बेरल-32 का छिड़काव किया जाता है। इस उद्देश्य से कि बुआई दिनांक से पूरे 40 दिनों तक खेत में खरपतवार की पड़पंच नही रहेगी। इसके अपेक्षाकृत परिणाम भी देखने को मिल चुके हैं। परंतु इस बार ग्रीष्मकालीन मूंग फसल दौरान बेरल-32 बेअसर साबित हुई है। क्योंकि, जिन खेतों में विश्वास के साथ इसका छीड़काव किया था, उन खेतों में खरपतवार ने सिर उठा दिया है। स्थिति यह है कि 60 दिनी मूंग फसल के १०वें -१२वें दिन या यूं कहें कि मूंग के शुरूआती दौर में उसे खरपतवार ने जकड़ लिया है। मूंग और चारा दोनों साथ-साथ चल रहा है। इन सबका कारण दवा बेअसर होने की बात सामने आई है। वह भी एक या दो नही बल्कि कई खेतों में इसका प्रमाण मिल जाएगा। हालांकि किसान इस बात को एक तरफ रखकर प्लान बी को लेकर सक्रिय हो गए हैं। किसानों के मुताबिक अब मूंग में दूसरी सिंचाईं पूरी करने के तुरंत बाद खेत में खरपतवार नाशक का छीड़काव करेंगे। इस समयावधि में कई किसान कुलपनी की रूपरेखा बना रहे हैं, ताकि खरपतवार पर पूरी तरह नियंत्रण पाया जा सके। ऐसा इसलिये क्योंकि, महज 2 महिने की ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल दौरान एक-एक दिन का महत्व है। ये बात किसान भलीभांति जानते हैं।

….तो मूंग का ठपकना तय

बेरल-32 बेअसर होने के बाद किसानों का एक काम बढ़ गया है। खरपतवार नियंत्रण की दिशा में सलाह-मशिवरा जारी है। कृषक डालचंद गाडरी ने बताया कि कीटनाशकन अपनी जगह ठीक है। परंतु खरपतवार नाशक का छीड़काव करते ही फसल का ठपकना तय है। हालांकि फसल पर विपरीत असर नही होता है। बावजूद फसल को कुछ दिन बुखार जैसी बात आम है।

खाद और टॉनिक से आस

कृषक नरेन्द्र पटेल के मुताबिक ऐसी स्थिति में 4 से 6 दिन धैर्य जरूरी है। उसी के बाद फसल धीरे-धीरे निखार पर आएगी। फसल की ग्रोथ पर ग्रहण लगने के सवालल पर उन्होंनें कहा कि इसके जतन करने होंगे। हालांकि दूसरी सिंचाईं के बाद जमीन में नमी रहती है। जिसका भरपूर फायदा मिलना तय है। इसके अलावा कई किसानों को खाद और टॉनिक से आस रहती है।

फेक्ट फाइल…..

बोया गया रकबा — ५८-60 हजार हेक्टेयर

बोनी के लिए तैयार — ७५-80 हजार हेक्टेयर

कुल बोनी का लक्ष्य — १.४० लाख हेक्टयर

सिंचाईं का साधन — कुंआ, टयूबवेल, नदी-नाले, नहर

निजी जल स्त्रोत से — ५५ हजार हेक्टेयर

नहर से सिंचित — ७० से ८० हजार हेक्टेयर

इनका कहना है….

अगर किसानों की शिकायत मिलती है तो सैंपलिंग कर जांच के लिए भेजेंगे। कई बार अत्यधिक इस्तेमाल से असर कम पड़ जाता है। किसान विश्वसनीय कंपनी के उत्पाद लेकर मूंग में छीड़काव करें।

 

एमपीएस चन्द्रावत

उपसंचालक, कृषि विभाग

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