सोमवार को अस्पताल खुलने के बाद आधा घंटे लेट पहुंचे ड्यूटी डॉक्टर
नसरूल्लागंज। नगर के सिविल अस्पताल में व्यवस्थाएं सुधरने का नाम नहीं ले रही। मरीज अपना इलाज कराने के लिए सिविल अस्पताल पहुंचते हैं लेकिन ड्यूटी पर रहने वाले डॉक्टर ओपीडी में बैठने की बजाय घर पर प्रेक्टिस करना ज्यादा पसंद कर रहे है। जिससे मजबूरी में मरीजों को घंटो ओपीडी में बैठने के बाद घर पर जाकर फीस देकर इलाज कराना पड़ रहा है। कुछ ऐसे ही हालात सोमवार को देखने को मिले। जहां ओपीडी के अलावा इमरजेंसी में आये मरीजों को भी डॉक्टर इलाज नहीं दे पाये। ऐसे में यह मरीज निजी चिकित्सालय की शरण में पहुंचा तब कहीं जाकर उसका इलाज हो सका। सोमवार को जब टीम के द्वारा नगर के सिविल अस्पताल में जाकर देखा तो ओपीडी में मरीजों की भीड़ लगी हुई थी ओर डॉक्टरों की गैर मौजूदगी बनी हुई थी। महज एक डॉक्टर ओपीडी इंचार्ज राहुल जाट ही मरीजों को देख रहे थे। शेष डॉक्टर अपने घरों में निजी प्रेक्टिस में व्यस्त थे। ओपीडी समय निकलने के 15 से 30 मिनट के बाद डॉक्टर ओपीडी में पहुंचे तब कहीं जाकर मरीजों को इलाज नसीब हो सका। वहीं रविवार रात इमरजेंसी ड्यूटी करने में व्यस्त रहे डा. रामकुमार झा सुबह इमरजेंसी ड्यूटी की बजाय घर पर इलाज करते देखे गए। ऐसे में अस्पताल की व्यवस्थाएं लगातार बिगढ़ती ही जा रही है। उल्लेखनीय है कि अस्पताल में इस समय 11 करोड़ की लागत से बनने वाली मेटरनिटी भवन का कार्य प्रगतिरत है। ऐसे में मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस समय वायरल फीवर के साथ सर्दी-खांसी के मरीजों की तादात बनी हुई है। अस्पताल में ओपीडी लगभग 200 से 300 मरीजों तक पहुंच चुकी है। अस्पताल में ओपीडी का समय सुबह 9 से दोपहर 2 व शाम 5 से 6 बजे का है। लेकिन डॉक्टर ओपीडी में सुबह साढ़े 9 बजे के बाद ही पहुंचते है और शाम को कई बार डॉक्टर ओपीडी में मिलते ही नहीं है। जिसके कारण मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस मामले में ओपीडी इंचार्ज राहुल जाट ने बताया कि वह ओपीडी में निर्धारित समय पर पहुंच चुके थे। इसके अतिरिक्त जब ओपीडी में जाकर देखा तो अन्य ड्यूटी डॉक्टरों के कक्ष खाली पड़े थे। कई महिला मरीज महिला डॉक्टर का इंतजार कर रही थी, लेकिन वह भी समय पर नहीं पहुंच सकी।
अस्पताल की बजाय बाजार की दवा लिखने पर जोर
सिविल अस्पताल में पदस्थ डा. ओपीडी समय के अतिरिक्त घर पर जब निजी प्रेक्टिस करते हैं तब सरकारी दवाएं लिखने की बजाय बाजार की दवा लिखने पर अधिक जोर रहता है। ऐसी स्थिति में मरीजों को अधिक दाम चुकाकर दवा खरीदना पड़ती है। जानकारी के मुताबिक अस्पताल में सर्दी-खांसी की दवा भी पिछले तीन दिन से नहीं मिल रही है। इस संबंध में राहुल जाट ने बताया कि मेरे द्वारा जिला चिकित्सालय को जानकारी भेज दी है।
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