आंध्रा मर्ज यूनियन बैंक की धोखाधड़ी, फोजदारी प्रकरण व परिवाद दायर

अनोखा तीर, देवास। देश की वित्तीय व्यवस्थाओं से जुड़ी बैंक में पदस्थ मैनेजर एवं अन्य अधिकारी ग्राहकों, ऋणी से किस प्रकार धोखाधड़ी कर रहे हैं। जालसाजी पूर्वक भ्रष्ट आचरण करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहे हंै। इसका एक उदाहरण आंध्रा बैक जो कि वर्तमान में युनियन बैक आफ इंडिया में मर्ज हो गई है, उसका देखने में आया है। गौरतलब है कि 1 सितम्बर 2016 को निलेश मुंगी पिता प्रभाकरराव मुंगी द्वारा समीर शर्मा पिता शिवनारायण शर्मा की जमानत पर आंध्रा बैंक से 18 लाख रुपए का ग्रह ऋण लिया गया था। बैंक के तत्कालीन मैनेजर द्वारा ऋण स्वीकृति के साथ बीमा करवाए जाने की आवश्यकता दर्शाते हुए 70 हजार 686 रुपए की मोटी रकम वसूली थी। दायित्व बीमा पॉलिसी के नाम पर उक्त रकम बैंक के स्टेटमेंट में 4 अक्टूबर 2017 को भी उल्लेखित है। बीमा पॉलिसी के लगभग 48 दिन उपरांत 22 नवंबर 2017 को हितग्राही निलेश मुंगी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। मृत्यु की जानकारी जब तत्कालीन बैंक मैनेजर को दी गई तो उन्होने कुछ फार्मलिटी पूरी करवाते हुए कहा कि जब तक ऋण के एवज में की गई बीमा पॉलिसी की राशि प्राप्त नहीं, डिफाल्ट नहीं होना। जैसे ही बीमा राशि प्राप्त होगी, सम्पूर्ण ऋण की धनराशि आपके खाते में जमा कर दी जाएगी। ऋण की किस्ते जमा करते रहना। बैंक मैनेजर से हितग्राही द्वारा लगातार बीमा पॉलिसी का लाभ प्रदान करने की मांग की जाती रही, लेकिन वे टालमटोल करते रहे। इसी बीच आंध्रा बैंक यूनियन बैक ऑफ इंडिया में मर्ज हो गई। बैंक मैनेजर बदल गए, जिनके द्वारा हमे बीमा पॉलिसी का लाभ देने की बजाय ऋण चुकता करने अन्यथा नीलामी की कार्यवाही करने के लिए दबाव बनाते हुए स्वर्गीय निलेश मुंगी की पत्नी रेखा मुंगी एवं मुझ जमानतदार को नोटिस भेजे जाकर मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जाने लगा, जबकि हम बैंक मैनेजर से लगातार बीमा पॉलिसी के लाभ की मांग यह कहते हुए करते रहे कि वर्तमान में बैंक ही बीमा पॉलिसी के एजेंट के रूप में अधिकृत है। जब हमसे बीमा पॉलिसी के नाम पर 70 हजार 686 रुपए जमा करवाए गए, तभी से हमारी पॉलिसी मान्य हो चुकी है। इसके बावजूद बैंक मैनेजर हमे बीमा पॉलिसी का लाभ दिलवाने या सम्बंधित बीमा एजेंसी एवं पॉलिसी से सम्बंधित किसी भी प्रकार के दस्तावेज उपलब्ध करवाने की अपेक्षा ऋण चुकाने एवं नीलामी के लिए ही दबाव बनाते रहे। थक हारकर समीर शर्मा द्वारा जनसुनवाई में कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक को भी शिकायत कर न्यायिक जांच कर बीमा पॉलिसी का लाभ दिलवाने एवं उचित कार्यवाही की मांग की गई। इसके पश्चात फरियादी समीर शर्मा द्वारा हाईकोर्ट एडव्होकेट रविन्द्र वशिष्ठ के माध्यम से माननीय न्यायालय मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष फोजदारी प्रकरण भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467 के अन्तर्गत दायर किया गया है। वहीं बैंक के विरुद्ध एक परिवाद मानवीय जिला उपभोक्ता फोरम में भी पेश किया गया है। माननीय मुख्य न्यायिक मजिस्टे्रट द्वारा विचाराधीन फोजदारी प्रकरण के तहत कोतवाली थाना को विस्तृत जांच कर पुलिस प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए भी आदेशित किया गया है।
एडीएम कोर्ट को भी किया जा रहा गुमराह
आंध्रा बैंक मर्ज यूनियन बैंक द्वारा फरियादी समीर शर्मा द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रकरण एवं जिला उपभोक्ता फोरम पर परिवाद दायर किए जाने के उपरांत भी नीलामी के लिए दबाव बनाया जा रहा है। बीमा पॉलिसी के दस्तावेजों को छिपाकर माननीय अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी एडीएम कोर्ट में भी प्रकरण पेश किया गया है। हितग्राही की और से हाईकोर्ट एडव्होकेट रविन्द्र वशिष्ठ द्वारा उक्त प्रकरण के संबंध में अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी के समक्ष भी जवाब प्रस्तुत किया जाकर न्याय एवं दोषी बैंक मैनेजर के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की गई है।
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