मेरी नर्मदा, मेरा प्रण
-ओंकारेश्वर में आस्था के घाट पर गटर का पानी
अनोखा तीर, बड़वानी। नर्मदा पर्यावरण संरक्षण यात्रा का पहला पड़ाव नर्मदा तट स्थित लोक आस्था के केंद्र ओंकारेश्वर में था। यहां स्थित ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से पहले जब नर्मदा तट पर अभिषेक के लिए जल लेने गये तो वहां की स्थिति देखकर जहां हमारी आस्था को गहरी ठेस पहुंची तो वहीं मन बहुत दुखी हो गया। यहां दो बड़े गटर से पूरे शहर का गंदा पानी नर्मदा नदी में आकर गिर रहा था। इसी घाट पर लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं और वही अपनी आंखों के सामने ही शहर का गंदा पानी अपनी आस्था के केंद्र मां नर्मदा में मिलता हुआ देखकर निश्चित ही मन को पीड़ा होती है। यहां पूरे देश से श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग दर्शन करने आते, लेकिन यहां की गंदगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान को मुंह दिखाने जैसा कार्य करते नजर आती है। खैर नर्मदा परिक्रमा पर आएं हैं तो दु:खी मन से ही सही पूजा अर्चना कर हमारी यात्रा अपने अगले गंतव्य के लिए रवाना हो गई। दूसरे दिन की यात्रा में हम पहुंचे मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के नर्मदा तटवर्ती ग्राम मोगांवा। यहां ग्रामीणों के बीच संगोष्ठी आयोजित कर नर्मदा के संरक्षण को लेकर चर्चा की गई। इस बैठक का संचालन कर रहे राजा मलगाया ने सभी का परिचय कराया। वहीं पर्यावरण संरक्षण को लेकर नर्मदा यात्री वरिष्ठ संपादक प्रहलाद शर्मा ने ग्रामीणों को नदियों तथा पेड़ पौधों का मानव जीवन में महत्व बताया। उन्होंने कहा कि हम नर्मदे हर बोलते हैं इसका मतलब होता है कि नर्मदा मैया मेरे सारे दुख हर लें। लेकिन अब स्थिति थोड़ा उल्टी है, अब नर्मदा मैया हमें पुकार कर बोल रही है बेटा हर इसका अर्थ है कि बेटा अब आप मुझे बचाओ मैं खतरे में हूं, मेरा अस्तित्व खतरे में है। श्री शर्मा ने नर्मदा की सहायक नदियों तथा नर्मदा के तटवर्ती किसानों द्वारा अपने खेतों की मेंढ़ों पर पौधारोपण करने जैसे विषय पर भी विस्तृत प्रकाश डाला। इस दौरान समाजसेवी सुमन सिंह ने प्रकृति तथा नर्मदा संरक्षण के लिए हम अपने घर परिवार से कैसे शुरुआत करना चाहिए विषय को लोकभाषा में समझाया। जिसमें उन्होंने बताया कि हम नर्मदा मैया की तस्वीर को घर में तो पूजते हैं, उसके आगे साफ-सफाई करते हैं, लेकिन पूजा से प्राप्त सामग्री को कचरे के रूप में ले जाकर वास्तविक मैया की गोद में डालकर उसको दूषित करते है। यह कैसी पूजा है, यह कैसा हमारा भाव है जो मैया अभी तक हमें बचाती आई है हम उसी को बर्बादी कर रहे हैं। इस बात से प्रभावित होकर ग्रामीणों ने शपथ ली कि अब वह अपने घर की हवन पूजन सामग्री नदियों में प्रवाहित नहीं करेंगे। इतना ही नहीं बल्कि अपने घर का निस्तारी पानी घर पर या घर के बाहर सोखता गड्ढा खोदकर जमीन में ही उतारेंगे और उसे नालियों के माध्यम से नदी तथा नर्मदा में नहीं जाने देंगे। अपने खेतों की मेंढ़ों पर पौधारोपण करेंगे। संगोष्ठी दौरान प्रगति शील कृषक अरविंद सारन ने सभी को इस यात्रा के उद्देश्य के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि हरदा जिले के पर्यावरण प्रेमी गौरीशंकर मुकाती द्वारा पिछले 30 वर्षों से पौधरोपण के क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। उनकी प्रेरणा से हरदा, खंडवा, नर्मदापुरम तथा सीहोर जिले के लगभग 20 हजार से अधिक किसानों ने अपने खेतों की मेंढ़ों पर लगभग 2 करोड़ पौधों का रोपण किया है। श्री सारन ने कहा कि श्री मुकाती द्वारा ही अमृत वन संरक्षण फाउंडेशन के बेनर तले यह नर्मदा पर्यावरण संरक्षण यात्रा निकाली जा रही है। गोष्ठी दौरान वहां उपस्थित सभी ग्रामीण महिला- पुरुषों ने इस उद्देश्य को लेकर की जाने वाली यात्रा की प्रसन्नता की और स्वयं इस विषय को जन-जन तक पहुंचाने की बात कही। उन्होंने गोष्ठी स्थल मंदिर परिसर में ही खड़े होकर शपथ ली कि अब मां नर्मदा को स्वच्छ रखने का बीड़ा हम भी उठाएंगे। मेरी नर्मदा मेरा प्रण नारा देते हैं भविष्य में पूजन सामग्री नदियों में प्रवाहित नहीं करने का प्रण लिया। अंत में मुकेश साद ने सभी का आभार व्यक्त किया। यात्रा दौरान जगह-जगह जहां स्वागत किया जाता रहा तो वहीं यात्रियों द्वारा भी लोगों से चर्चा करते हुए उन्हें पर्यावरण संरक्षण तथा मां नर्मदा को स्वच्छ रखने पर चर्चा की गई। आज यात्रा का दूसरा पड़ाव बड़वानी में है।
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