नितेश गोयल, हरदा। केंद्रीय भाजपा संगठन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 माह पूर्व जब प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए डॉ.मोहन यादव के नाम पर मुहर लगाकर पूरे प्रदेश को चौका दिया था, तब ऐसा लगा था कि बड़े-बड़े नेताओं को छोड़कर कैसे यह नाम सामने आ गया, लेकिन आज 9 माह बाद एहसास हुआ कि यह नाम ऐसे ही नहीं आया था, बल्कि यह खदान में से खोजा हुआ बेशकीमती हीरा है। जिसे भाजपा के संगठन ने एक जोहरी की तरह पहचानकर उसे हीरे के रूप में प्रस्तुत किया था। मेरी यह बात पढ़कर कुछ लोगों को लगेगा कि यह एक अतिश्योक्ति वाली बात है। लेकिन उनके लिए यह बात लिखने का एक कारण भी है। उन्होंने जो खूबी देखी है उसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह सिर्फ एक अपनी ही लोकप्रियता बढ़ाने के लिए ही प्रयास नहीं करते, उनके लिए सबका साथ और सबका विकास महत्वपूर्ण होता है। डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही एक प्रथम आदेश जारी किया था कि सार्वजनिक स्थानों पर खुलेआम मास मक्षली का विक्रय नहीं होगा। धार्मिक स्थानों पर तेज आवाज में ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर अंकुश का फैसला हुआ था। तभी पता लग गया था कि कुछ तो बात है और कुछ अलग करने की चाह है। वहीं हम दिग्विजय शासनकाल की बात करें या शिवराज सरकार की। इन दोनों ही कार्यकाल में नौकरशाही ही सरकार पर हावी दिखाई दी है, लेकिन डॉ.यादव के अल्प कार्यकाल में जिस तरह नौकरशाहों द्वारा अपने कार्यों के प्रति लापरवाही व घटनाएं और यहां तक की अपने बगल की कुर्सी पर भी प्रमुख सचिव को हटाने का निर्णय लेने का कार्य मुख्यमंत्री ने किया है, उसे देखकर उनकी कार्यशैली की प्रशंसा की जा सकती है। डॉ.यादव में एक बात यह भी अच्छी लगती है कि वह भेड़ चाल की तरह सरकार चलाना नहीं चाहते, बल्कि कुछ अलग और अच्छा करने की चाह से शासन चलाने पर विश्वास रखते हैं। प्रदेश के विकास के लिए उनके कुछ त्वरित निर्णय जो आगे चलकर मील का पत्थर साबित होंगे। जैसे उनके द्वारा औद्योगिक विकास के लिए संभागीय स्तर पर औद्योगिक निवेश सबमिट, धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित कर प्रदेश की आय बढ़ाने का कार्य, देश में पहला सायबर तहसील लागू करना, पुलिस ट्रेनिग में साईन लैंगवेज शुरु कर दिव्यांगों को नई आवाज देना, जो पहले सरकारें मंत्रियों का आयकर भरती थी, उसे खत्म करना, अपने जिले का प्रभार अपने पास रखना, गांव से लेकर प्रदेश तक अफसरशाही नहीं, बल्कि कार्यकर्ता और आमजनों की बातों को पूर्ण रूप से महत्व देते हुए कलेक्टर तक को हटा देना, उनमें कुछ अलग करने की चाह दिखाता है। मुख्यमंत्री मोहन यादव के 9 माह का कार्यकाल हम कह सकते हैं कि यह तो एक शुरुआत है, लेकिन पूत के पांव पालने में दिख रहे हैं। यह मुख्यमंत्री वित्तीय व्यवस्था से लेकर प्रदेश को देश में नंबर वन बनाने की क्षमता रखने वाला व्यक्तित्व है, जो स्वयं की लोकप्रियता और फोटोसेशन पर विश्वास नहीं करता, बल्कि कुछ अलग कर सबका साथ-सबका विकास चाहता है।