ना ग्राम पंचायतों के ताले खुलते हैं ना पटवारी पहुंचते हैं गांव

नितेश गोयल, हरदा। देश के बापू महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है। हम आजादी की ७५वीं वर्षगांठ मना चुके हैं, इसके बावजूद आज भी ग्रामीणों के जीवन स्तर में जो सुधार होना चाहिए, वह नहीं दिखाई देता। हरदा जिले के गांवों की बात करें तो यहां 400 से अधिक गांव हैं और 200 से अधिक ग्राम पंचायतें हैं। लेकिन इन सभी गांवों की तस्वीर एक समान ही दिखाई देती है। आज भी किसी ग्रामीण को ग्राम पंचायत के सचिव और पटवारी से कोई काम है तो वह गांव में मौजूद ही नहीं रहते हंै। ना तो इन लोगों का कोई गांव में आने का समय निर्धारित है और ना ही कोई निर्धारित जगह पर बैठकर ग्रामीणों की समस्या सुलझाने की व्यवस्था। जिले की ग्राम पंचायत के ९० प्रतिशत से अधिक सचिव और पटवारी जिला मुख्यालय पर ही निवास कर यहीं से ही अपनी नौकरी कर रहे हैं। ग्राम पंचायतों की यह हालत है कि महीनों ग्राम पंचायत के भवनों में ताला लटका रहता है। यह ताला जब ही खुलता है, जब कोई वरिष्ठ अधिकारी या कोई जनप्रतिनिधि किसी कार्यक्रम में जाता है। ग्राम पंचायतों में ग्रामीणों ने जो सरपंच चुना है, वह भी घर से ही पंचायत चलाता है। खास बात यह है कि जिले की आधी से अधिक पंचायतों में महिला सरपंच हैं, जिनके पति ही अपने आप को सरपंच मानकर घर से ही पूरी पंचायत का कार्य संपादित करते हैं। हम ग्राम पंचायतों के नाम इसलिए नहीं लिख रहे हंै कि यह कार्य कोई एक पंचायत में नहीं हो रहा है, बल्कि सभी ग्रामों की यही स्थिति है। अपने परिवार को शहरी लाईफ देने और बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पटवारी और सचिव जिन्हें जिन ग्राम पंचायतों का दायित्व दिया गया है, वहीं निवास करना चाहिए, लेकिन वह ऐसा न कर जिला मुख्यालय पर निवास कर रहे हैं। कुछ ग्रामों के ग्रामीणों से इस संबंध में चर्चा की तो उन्होंने कहा कि हम हमारे ग्राम में सातों दिन प्रशासनिक अधिकारियों के आने की बात नहीं करते, केवल पटवारी और सचिव सप्ताह के निर्धारित दो दिन ही आकर ग्रामीणों की समस्याएं सुनकर उनका निराकरण करें तो ग्रामवासियों की समस्याएं दूर हो सकती है। पूर्व कलेक्टर द्वारा यह व्यवस्था निर्धारित की गई थी कि कृषि विभाग के ग्राम सेवक से लेकर सचिव एवं पटवारी को निर्धारित दिन ग्राम पंचायतों में बैठना पड़ेगा। लेकिन यह व्यवस्था कलेक्टर के बदलने के बाद से बंद हो गई है। जिसके कारण ग्रामीणों को छोटे से छोटे कार्य के लिए जिला मुख्यालय पर आकर तहसील कार्यालय या पटवारी सचिव के घर जाकर अपना काम करवाने के लिए गुहार लगानी पड़ती है। ग्रामीणों ने कलेक्टर से मांग की है कि तत्काल ग्रामीणों की इस गंभीर समस्या पर संज्ञान लेकर ग्रामीण अधिकारियों को निर्धारित दिन ग्रामों में बैठकर ग्रामीणों की समस्याएं हल करने के निर्देश जारी करें।

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