विकास पवार बड़वाह – किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन में सफल होने के लिए धैर्य के साथ सरलता का गुण अपनाना अतिआवश्यक है। क्योकि हमारी भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार इन गुणों की देवी मां शीतला को विशेष माना गया है। उनकी सेवा से धैर्य साहस शीतलता और कर्मनिष्ठा जैसे गुण आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। रंगपंचमी से ही शीतला माता की पूजा का पर्व बसौड़ा शुरू हो जाता है। जो अष्टमी तक मनाया जाता है।
प्राचीन परंपरा अनुसार माता शीतला का हुआ पूजन———-
प्राचीन परंपराओ के अनुसार नवरात्रि पर्व के शुरू होने से पहले यह व्रत करने से मां के वरदहस्त अपने भक्तों पर रहते हैं।जिसके चलते नगर सहित ग्रामीण में सोमवार को महिलाओं ने शीतला सप्तमी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई। नागेश्वर मंदिर रोड स्तिथ प्राचीन शीतला माता मंदिर एवं अन्य मंदिरों पर अलसुबह से ही महिलाओ द्वारा पूजा करने का दौर शुरू हुआ ।इस दौरान मंदिर में महिलाओं की काफी लंबी लाईन देखने को मिली । महिलाओं ने सप्तमी के एक दिन पूर्व बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलवा, राबड़ी, बिना नमक की पूड़ी व आदि पकवान रात्रि में बनाकर तैयार किए । वही दूसरे दिन सप्तमी पर अलसुबह से मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाओं ने शीतला माता को बसौड़ा का भोग लगाया। जिसके बाद एक स्थान पर महिलाओ ने एकत्रित होकर शीतला माता की कहानियां सुनी । कहा जाता है कि भारत विभिन्न समाजों व संप्रदाओ से मिलकर बना एक लोक बहुलतावादी देश है। जहां पर हर त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसी सनातन परंपरा को कायम रखते हुए शहरों एवं गांवों में कई समाजजन
बसौड़ा पर्व श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाते हैं। जहां केवल महिलाएं ही नहीं अपितु पुरुष भी इस पूजन में बराबरी से हिस्सा लेते हैं।
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