अनोखा तीर इंदौर:-प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर नकली ब्रांडेड गारमेंट निर्माण का गढ़ बन गया है। नकल ऐसी हो रही है कि कोई भेद नहीं कर सकता। आनलाइन बाजार में इंदौर में बना नकली ब्रांडेड गारमेंट देशभर में सप्लाई हो रहा है। नकली ब्रांड को हूबहू गढ़ने के लिए कच्चा माल, जिसमें टैग से लेकर लोगो वाले रिबिट तक चीन से आ रहे हैं। तीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शिकायत पर एक कारखाना पकड़ा गया है लेकिन अब तक सैकड़ों करोड़ रुपये का माल बाजार में खपाया जा चुका है। कारोबार में शत-प्रतिशत टैक्स की चोरी भी हो रही है। ऐसे में अब जीएसटी भी इस जांच में कूदने जा रहा है।
बुधवार को तीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शिकायत पर पुलिस ने तिलकपथ पर नकली गारमेंट बनाने वाले कारखाने दिशा एपेरल्स का खुलासा हुआ है। मौके से चार कंपनियों के नकली गारमेंट और कच्चा माल जब्त भी हुआ। इनमें लिवाइस, प्यूमा, केल्विन क्लेन (सीके) अंडर आर्मर शामिल है। इन नकली गारमेंट में न सिर्फ बाहरी कंपनियों के नाम के टैग नहीं लगाए जा रहे बल्कि अंदरूनी डबल टैगिंग से लेकर धागे और जींस में लगने वाली कापर रिबिट को भी हूबहू कापी किया जा रहा है।
नकल के लिए कच्चा माल और लेबल चीन में बनकर बांग्लादेश के रास्ते इंदौर तक पहुंच रहे हैं। कारखाने का संचालन करने वाला पहले असम में कामकाज कर रहा था। ऐसे में बांग्लादेश के रास्ते इंदौर तक नकली टैग लाए जा रहे थे। मप्र और इंदौर को इसलिए चुना जा रहा है क्योंकि बीच में होने के कारण यहां से देशभर में आपूर्ति करना सुलभ है। बाजार के सूत्रों के अनुसार सिर्फ आनलाइन गारमेंट बेचने वाली फर्म ही नहीं बल्कि कुछ बड़े गारमेंट व्यापारी जो कंपनी से भी जुड़े है वे भी इस माल को मंगवा रहे थे।
पूरा सौदा बिना बिल सिर्फ कच्ची पर्चियों पर हो रहा है। जींस और गारमेंट पर 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता है। कंपनी से खरीदे गए थोड़े असली माल के बिल के सहारे उससे दस गुना ज्यादा माल बाजार में आनलाइन और काउंटर से बेच दिया जाता है।
टैग के लिए डार्क रूम
नकली गारमेंट बनाने वाले कपड़ा काटने के बाद उसकी सिलाई से लेकर इस्त्री तक जाब वर्क पर दूसरों से करवाते हैं। छोटे-छोटी दुकानों और घरों में चलने वाले कारखानों में कपड़ा काटकर सिलने भेजा जाता है। इसके बाद ब्रांड की टैगिंग लगाने का काम नकली माल बनाने वाले अपने कारखाने में करते हैं जिसे डार्क रूम कहते हैं। टैग के साथ अंदर लगने वाले बार कोड को भी कापी किया जाता है। इसके बाद सिर्फ इसी तरह छोटे-छोटे दुकान या घरों में इनकी एसिड से धुलाई और इस्त्री होती है। हिस्सों में होने वाले निर्माण के कारण न तो नकली माल नजर आता है और न बनाने वाले को पता होता है कि वह कापी बना रहा है।
छूट वाले कपड़ों में 75 प्रतिशत नकली
गारमेंट कारोबारियों के अनुसार इंदौर के एक कारखाने से ही छापामार टीमों ने नौ गाड़ी माल जब्त किया है। इसमें जींस-टीशर्ट से लेकर लोअर व स्पोर्ट्स वियर भी शामिल है। कई गारमेंट डिस्ट्रिब्यूटर जोकि रिटेल व्यापारियों को माल सप्लाई करते हैं और आनलाइन गारमेंट भी बेचते हैं वे भी नकली गारमेंट खरीदते हैं। स्थानीय दुकानें इन्हें फर्स्ट कापी या एक्सपोर्ट रिजेक्टेड बताकर बेचती है जबकि आनलाइन ऐसे गारमेंट 50 से 70 प्रतिशत डिस्काउंट दिखाकर असल बताकर बेचे जाते हैं। कंपनी के गारमेंट पर मार्जिन कम होता है। इसलिए व्यापारी असल जैसी हूबहू नकल को वरीयता देते हैं। ई-कामर्स ने इस बाजार को फैला दिया है।
सप्लाई चेन तलाशना मुश्किल
इंदौर के मामले में कंपनी की शिकायत पर पुलिस ने तीन लोगों को आरोपित बनाया है। इसमें कारखाना संचालक राजकुमार झंवर के साथ दो अन्य आरोपित श्रीकांत सोनी और पुरुषोत्तम सोलंकी कारखाने के कर्मचारी है। पूरा व्यापार बिना बिल के होता है। इसलिए आगे की जांच में सप्लाई चेन तलाशना मुश्किल होगा। इसके लिए कच्चे माल की आपूर्ति करने वालों का पता लगाया जा रहा है। जीएसटी विभाग भी मामले से जुड़ी जानकारी पुलिस व कंपनियों से तलब कर रहा है। बताया जा रहा है कि ई-वे बिल से बचने के लिए यात्री बसों से माल बाहर भेजा जाता है।
आरोपित बोला पुराना माल था
जो डुप्लीकेट माल जब्त हुआ है वो तो दो-तीन साल पुराना था। अब हम कंपनियों के नाम से निर्माण बंद कर अपने ब्रांड नेम से ही बना रहे थे। उतने माल की जब्ती नहीं हुई है जो बताया जा रहा है।-राजकुमार झंवर, कारखाना संचालक
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