अनोखा तीर इंदौर:-मध्य प्रदेश में शासकीय सेवाओं के लिए परीक्षाओं के भंवरजाल में उलझे युवाओं की स्थिति ‘न निगल सकते हैं न उगल सकते हैं’ कि हो रही है। बीते पांच सालों प्रदेश के प्रतिष्ठित राज्य लोकसेवा आयोग सहित कई परीक्षाओं का कैलेंडर बुरी तरह गड़बड़ा गया है। न परीक्षाएं समय से हो रही हैं न परिणाम समय से आ रहे हैं। महीनों-सालों से तैयारी कर अपने उज्जवल भविष्य का स्वप्न देख रहे परीक्षार्थियों का धैर्य लंबे होते इस इंतजार से जवाब देने लगा है। व्यवस्था से बेहद नाराज परीक्षार्थियों का दर्द यही है कि दावे और वादों की फेहरिस्त के बीच उनके भविष्य की चिंता जिम्मेदारों को नहीं है।
पीएससी की 2019 और 2020 की राज्य सेवा परीक्षा से चयनित उम्मीदवारों की नौकरी की राह 2024 में प्रशस्त हुई। लेकिन असमंजस यहां भी युवाओं को परेशान किए हुए हैं। दरअसल इन परीक्षाओं में आरक्षण सहित अन्य विसंगतियों को लेकर दायर की गई याचिकाएं अभी कोर्ट में लंबित हैं। कोर्ट ने कुछ याचिकाओं का निराकरण करते हुए यह व्यवस्था भी दे दी थी कि इन परीक्षाओं के अंतिम परिणाम न्यायालय के अंतिम निर्णय के आधीन रहेंगे।लेकिन सरकार ने उसके बाद भी प्राविधिक सूची को ही अंतिम मानकर नौकरियों के लिए नियुक्तिपत्र जारी कर दिए। अब एक बार फिर विरोध के स्वर गूंजने लगे हैं।
राज्य सेवा परीक्षा में कई बार देरी
मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में देरी का यह इकलौता उदाहरण नहीं है। सहायक जिला लोक अभियोजक अधिकारी(एडीपीओ) परीक्षा का किस्सा भी कुछ इसी तरह का है। 2015 के बाद 6 साल से इंतजार कर रहे उम्मीदवारों के लिए पीएससी ने 2021 में एडीपीओ परीक्षा कार्यक्रम घोषित किया। 22 दिसंबर 2022 को आयोग ने परीक्षा करवाई। 2023 में परिणाम घोषित होने के बाद आरक्षण का पेंच आ जाने की वजह से साक्षात्कार के लिए परीक्षार्थियों को एक वर्ष से भी अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा।
अब जाकर पीएससी ने साक्षात्कार की तारीख तय की है। इस देरी से युवा बेहद निराश हैं। कड़ी मेहनत, दिन-रात एक कर भविष्य निमार्ण की तैयारी में जुटे युवा परीक्षा में तय उम्र की दहलीज पर आ खड़े हुए हैं लेकिन भविष्य की राह अब भी उन्हें अवरुद्ध ही नजर आ रही है।
विवाद होते रहे हैं
इसे तंत्र की बड़ी विफलता कहा जाए या संवैधानिक संस्थाओं की कमजोरी कि विशेषज्ञों की लंबी-चौड़ी टीम होने के बावजूद एक ही तरह की समस्याओं और विवादों से पीएससी सहित अन्य एजेंसियों को बार-बार जूझना पड़ रहा है। हैरानी इस बात को लेकर भी है कि इन मुद्दों का कोई हल निकालने को लेकर गंभीर प्रयास होते नजर नहीं आते। राज्य सेवा 2023 की मुख्य परीक्षा जल्दी आयोजित करवाने के लिए पीएससी ने परिणाम के साथ तारीख तो घोषित कर दी लेकिन इस पर भी नया विवाद खड़ा हो गया।
मुख्य परीक्षा 11 मार्च को होने की सूचना के साथ ही परीक्षार्थियों ने यह कहकर विरोध शुरू कर दिया कि परीक्षा की तैयारी के लिए नियमानुसार कम से कम 90 दिन मिलना चाहिए लेकिन पीएससी के शेड्यूल के अनुसार 60 दिन भी नहीं मिल रहे। नियमों की अस्पष्टता और आरक्षण संबधी मामलों को लेकर उलझनें इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि हर परीक्षा के दौरान ही पीएससी सहित अन्य एजेंसियों को नए-नए विवादों का सामना करना पड़ता है।
भविष्य की बाट जोह रहे युवा इस बात से भी खासे नाराज हैं कि बीते विधानसभा चुनाव के दौरान बार-बार राजनीतिक दलों की और से युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों में बंपर भर्ती के दावे किए गए। लेकिन नई सरकार बनने के बाद ये दावे और वादे नजर नहीं आ रहे। ‘सरकार’ के जिम्मेदार इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे कि लोक सेवा आयोग या अन्य भर्ती एजेंसियां सिर्फ चयन के लिए अधिकृत हैं। नीतियों के मामले में तो उन्हें सरकार के नियमों और निर्देशानुसार ही कार्य करना होता है। लेकिन बावजूद इसके न्यायालय के सवालों के घेरे में और युवाओं के आरोपों के घेरे में ये एजेंसियां ही हर बार होती हैं।
प्रक्रिया पारदर्शी फिर क्यों लग रहे आरोप
यहां यह सवाल भी सामने है कि भर्ती परीक्षाओं की प्रक्रिया को पूर्णत: पारदर्शी होने का दावा जिम्मेदार करते हैं लेकिन इसके बाद भी गड़बड़ी के आरोपों के बीच परिणाम पर ही रोक लगाना पड़ जाती है। मध्य प्रदेश पटवारी भर्ती परीक्षा 2023 के दौरान ऐसा ही कुछ हुआ। इस परीक्षा के माध्यम से नौ हजार पदों पर भर्ती होना थी। परीक्षा आयोजित कर परिणाम भी जारी कर दिए गए, लेकिन घोटालों के आरोप लगने और पूरी प्रक्रिया पर ही परीक्षार्थियों द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद इस पर रोक लगा दी गई। तब से पूरा मामला ठंडे बस्ते में है। उधर परीक्षा देकर भविष्य की राह तक रहे हजारों हजार युवा असमंजस में है कि परिणाम के लिए रुकें या किसी नए क्षेत्र के लिए प्रयास शुरू करें।
सवाल यह भी है कि बीते पांच सालों से युवाओं के सपनों के फूल आखिर कब तक खिलने से पहले ही मुरझाते रहेंगे। युवाओं के भविष्य का यह महत्वपूर्ण समय इस तरह जाया होजाने की भरपाई आखिर कौन करेगा। उनके अधूरे रह गए सपनों की जिम्मेदारी कौन लेगा। शासन स्तर पर इस समस्या की गंभीरता को समझना होगा। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि तंत्र इस समस्या के प्रति जवाबदेह और गंभीर हो ताकि अव्यवस्था की चौखट पर अब और युवाओं के सपने दम न तोड़ें।
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