अनोखा तीर, भोपाल। श्रमणाचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य मुनि श्री 108 सुप्रभ सागर एवं मुनि 108 प्रणत सागर महाराज ससंघ की साधना अशोका गार्डन दिगंबर जैन मंदिर संत निवास पर चल रही है। मुनि श्री ने अशोका गार्डन दिगंबर जैन मंदिर पर अपने प्रवचनों में श्रावको से कहा आप कितने भी विधान, माला कर लो लेकिन अगर साथ में जीवन में सोलह कारण भावनाओं का विचार, चिंतन आचरण में उनको नहीं लेंगे तो तीर्थंकर प्रकृति का बंध तीन कल में होने वाला नहीं है, मुनि श्री ने सोलह कारण भावनाओं में से आज तीसरी भावना का विस्तार पूर्वक श्रावको के लिए वाचन किया और कहा की श्रावको के 12 व्रत व साधु के व्रत का भी तीसरी भावना में उल्लेख है। मुनि श्री ने कहा जीवन में शील, व्रत को अतिचार से रहित होना चाहिए, अतिचार अनाचार को जीवन से छोड़ दें, श्रावक अपने जीवन शुद्ध आहार, विचार व आचरण का पालन व चिंतन करें और अपने जीवन में ऐसी भावनाएं भाए की कब में व्रतो व शीलों को जीवन में धारण कर पाऊंगा, मुनि श्री ने कहा बिना पुण्य के चारित्र को धारण करना तो दूर अणुव्रत धारण करने के लिए भी साअतिशय प्रबल पुण्य की आवश्यकता होती है, श्रावक हमेशा ध्यान रखें कि मेरी भावना कैसी है व अपनी भावनाओं को शुद्ध रखने का प्रयास निरंतर करें, वह अपनी भावनाओं के प्रति सावधान रहें, जिन लोगों को दुर्गति या नरक आयु का बंध हो जाता है वह ना तो श्रद्धा व भावों से नियम ले पाते हैं, ना व्रत धारण कर पाते हैं। हमें शील व व्रत, प्रज्ञा व श्रद्धा के साथ धारण करना चाहिए। दो प्रतिमा से वृति संज्ञा प्रारंभ होती है, मुनि श्री ने पांच पाप हिंसा, झूठा, चोरी, कुशील, परिग्रह को श्रावको के लिए विस्तार से समझाया और कहा कि यह सब त्याग करने योग्य है।
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