भरपूर विकास,भोजन-भंडारे भी खास, दतिया और क्या चाहती थी जो नहीं देख पाए नरोत्तम

ग्वालियर। इतना भी गुमान ना कर अपनी जीत पे ऐ बेखबर, शहर में तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं। यह शेर इन दिनों मप्र की राजनीति में पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की ओर से एकदम सटीक है। हर अखबार,चबूतरे की चर्चा और इंटरनेट मीडिया की पोस्ट पर नरोत्तम मिश्रा की हार क्यों हुई इस बात बात हो रही है। भाजपा के फायर ब्रांड नेता की हार पर लोग आसानी से विश्वास नहीं कर पा रहे हैं।

नरोत्तम मिश्रा की राजनीति और काम करने का तरीका मैं बहुत करीब से देखता आ रहा हूं क्योंकि पिछले छह साल से मैं ग्वालियर में हूं और डा नरोत्तम मिश्रा का राजनीतिक साप्ताहांत दतिया-ग्वालियर में ही गुजरता था। उन्हें यारों का यार उनसे जुडे लोग कहते हैं।लेकिन क्या कुछ लोगों से यही यारी इतनी बढ़ गई कि दतिया के आम लोग नाराज हो गए

पिछले 90 दिनों में मैंने दतिया की दो बारीक ग्राउंड रिपोर्ट की हैं। एक चुनाव से बहुत पहले और दूसरी वोटिंग के ठीक पहले। दोनों में मैंने एक बात कामन देखी वो है दतिया विधानसभा क्षेत्र के दो ध्रुव, एक गांव और दूसरा शहर। जितना मुझे गांवों में स्थिति नाजुक दिखाई दी उतनी ही दतिया या बसई जैसे शहरी क्षेत्र में मजबूती। हालांकि दोनों ही जगह मुझे विकास के प्रति संतुष्टि दिखाई दी लेकिन इनके खास लोगों के प्रति गुस्सा।

आंकड़ें कहते हैं पिछले चुनावों में नरोत्तम गांवों से हारे और दतिया और बसई जैसे शहरी क्षेत्रों को बढ़िया लीड मिली है। 2018 में तो चुनाव लगभग हार गए थे लेकिन जब अंतिम चक्रों में बसई की ईवीएम खुली तो 16 हजार में से 13 हजार मत एकतरफा उनके ही निकले। अकेले बसई ने कांग्रेस की लीड समाप्त कर जीत का सेहरा नरोत्तम को बांध दिया। नरोत्तम फिर मंत्री बने और उसके बाद दतिया में चल रहा विकास का सिलसिला नए मुकाम पर पहुंच गया। गांव-गांव तक पक्की सड़कें,दतिया में मेडिकल कालेज,हर थाने-अस्पताल की चमचमाती बिल्डिंग,पुलिस आवास,जज आवास,हवाई पट्टी,फिशरीज कालेज,संस्कृत आवास विद्यायल,वेटनरी कालेज,ला कालेज,एरई में शुगर मील, जैसे विकास के तमाम काम हैं जो धरातल पर कोई भी देख सकता है। यदि विकास जीत की चाबी होती है तो फिर इस चाबी से ताला क्यों नहीं खुला?

दतिया धार्मिक नगर ही। यहां नारा लगाया जाता था जय पीतांबरा माई की जह नरोत्तम भाई की…। नरोत्तम मिश्रा ने माई प्रकटोत्सव, दतिया गौरव दिवस, पार्थिव शिवलिंग, बड़े कथावाचकों के कार्यक्रम,भंडारे,धार्मिक कार्यक्रमों की ऐसी श्रृंखला बना दी जो पिछले कई माह से चली ही आ रही थी। पिछली ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान हुई मुलाकात में बोले थे- मैं दतिया के धार्मिक वातावरण को इतना बढ़ा दूंगा जिससे यहां का पर्यटन उद्योग बढ़ जाए। यदि लोग उत्सवधर्मी होते हैं फिर इनके कार्यक्रमों में जुटने वाली लाखों की भीड़ वोट के वक्त क्यों मुकर गई?कुछ तो बात है जो अदृश्य थी। क्या अपने आसपास के लोगों पर इन्होंने जरूरत से ज्यादा विश्वास किया? क्योंकि बसई से मेरे पास कई बार फीडबैक आया कि यहां जुआ,सट्टा,अवैध शराब जमकर चल जा रही है जिस पर पुलिस जानबूझकर लगाम नहीं लगा रही क्योंकि वह लोग उनके खास हैं। पिछली बार ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान में मैंने उनसे सवाल भी किया था कि बसई से यह आरोप क्यों लग रहे हैं? यूपी के बदमाशों को जिम्मेदार ठहराते हुए बात टाल गए।

क्या वह लोग नरोत्तम के इतने खास थे कि चाहकर भी उन पर कंट्रोल नहीं कर पाए? विपक्ष खासकर इनके प्रतिद्वंद्वी आरोप लगाते रहे कि मोटा कमीशन के कारण विकास के कंस्ट्रक्शन के इतने काम हो रहे हैं, क्या कमीशनखोरी की बात को प्रतिद्वंद्वी लोगों के मन में बिठाने में सफल हो गए या सचमुच ऐसा माहौल बन चुका था जिसे नरोत्तम यारी के कारण देख नहीं पा रहे थे या नजरअंदाज करते रहे। क्योंकि मतगणना के 13 राउंड (हर राउंड में अलग-अलग जगहों की ईवीएम खुलती हैं) में से 3 राउंड में ही प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले चंद मत अधिक ले सके। यानी दतिया विधानसभा के हर इलाके में दबा हुआ गुस्सा ईवीएम के बटन पर दिखाई दिया। दसवें राउंड तक जब कांग्रेस प्रत्याशी की लीड आठ हजार पहुंच चुकी थी तब बारी थी बसई के ईवीएम से पिछले बार जैसे चमत्कार की। एक-एक कर तीनों राउंड की ईवीएम खुली 11 वें राउंड में एकतरफा की जगह 866 वोटों की हार मिली,12 राउंड में 379 वोटों की हार 13 वें में महज 735 वोटों की जीत ले सके लेकिन यह मत 8 हजार की ओवरआल बड़े गड्ढे को भरने में नाकाफी थे..नतीजा नरोत्तम मिश्रा दतिया में अपना चौथा चुनाव 7742 वोटों से हार गए।

नरोत्तम मिश्रा की इसे खराब किस्मत कहेंगे कि जब एक या दो हार के बाद प्रतिद्वंद्वी कमजोर पड़ जाता उस वक्त भी उनके सामने राजेंद्र भारती हर बार बुरा सपना बनकर खड़े हो जाते थे। 1985 में 63 प्रतिशत वोट लेकर पहली बार कांग्रेस से विधायक बने राजेंद्र भारती को चुनाव लड़ने का लंबा अनुभव है। चुनाव लड़ने के लिए भारती पार्टियों के सामने अड़ियल रुख अपनाते हैं। 1985 के बाद से 1993 का मध्यावधि चुनाव छोड़कर वहां हुआ एक भी विधानसभा चुनाव लड़े बिना नहीं छोड़ा चाहे किसी भी पार्टी के टिकट पर लड़ा हो। वह यहां से समाजवादी पार्टी,बसपा,कांग्रेस ,राष्ट्रवादी कांग्रेस से कुल 8 बार मैदान में उतर चुके हैं। जिनमें पांच बार हारे तीन बार विधायक बने, एक बार सपा से दो बार कांग्रेस से। इस बार टिकट कटा तो नरोत्तम चैन की सांस ले पाते उससे पहले ही कांग्रेस से लड़ झगड़कर भारती ने अवधेश नायक का टिकट बदलवाकर खुद को प्रत्याशी घोषित करवा लिया।

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