हमारे समाज को ऐसे लेखक-चिंतकों की जरूरत जो भारतीय ज्ञान परंपरा को नई पीढ़ी से जोड़ें : संतोष चौबे

 

अनोखा तीर, भोपाल/हरदा। आज हमारे समाज को ऐसे लेखक और चिंतकों की बहुत जरूरत है, जो हमारी सभ्यता-संस्कृति और जीवन मूल्यों की भारतीय ज्ञान परंपरा को नई पीढ़ी से जोड़ें। भारतीय जीवन मूल्यों के वर्तमान का उनके इतिहास से साक्षात्कार कराएं। मूल्यों के अवमूल्यन के नतीजों से समाज को आगाह कराने के साथ सुधार की दिशा में समाधान भी सुझाएं। हिंदी के वरिष्ठ प्राध्यापक और साहित्यकार डॉ.प्रभुशंकर शुक्ल ऐसे ही लेखक और चिंतकों में से एक हैं जो अपने आलेखों के माध्यम से समाज की तमाम विकृतियों को उजागर करने के साथ सुनहरे भविष्य की आशा भी जगाते हैं। ये उद्गार रविंद्र नाथ टैगोर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति डॉ.संतोष चौबे ने लेखक-साहित्यकार प्रोफेसर डॉ. प्रभुशंकर शुक्ल की 7 कृतियों के विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए। विश्व संवाद केंद्र शिवाजी नगर के सभागार में आयोजित समारोह में प्रो.शुक्ल की सात किताबों- नागार्जुन की आंचलिक सर्जना का मूल्यांकन, कलि कथा, संस्कृति एवं संस्कार, किसके रोके रुका है सवेरा, कनुमा पर्व, चमन में आशियां बना रहा है कोई, सजन रे झूठ मत बोलो का विमोचन किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार एवं समालोचक डॉ. रामवल्लभ आचार्य, मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ.विकास दवे, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव, आबकारी आयुक्त ओमप्रकाश श्रीवास्तव, निराला सृजन पीठ की निदेशक डॉ.साधना बलवटे, वरिष्ठ व्यंग्यकार गोकुल सोनी एवं इंदिरा पब्लिशिंग हाउस के निदेशक मनीष गुप्ता विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित हुए।

सार्थक जीवन हमेशा सफल होता है

डॉ.रामवल्लभ आचार्य ने कहा कि डॉ.शुक्ल के आलेखों में भाषा की सहजता-सरलता के साथ तथ्यों और संदर्भों की रोचकता भी है। उनके लेखन में समालोचना और चिंतन के साथ प्रेरणा भी मिलती है। डॉ.विकास दवे ने एक लेखक की एक साथ किताबौं के विमोचन को अद्भुत और विलक्षण अवसर बताते हुए कहा कि डॉ.शुक्ल अपने लेखन में सिर्फ समस्याओं की ही नहीं बल्कि समाधान की भी बात करते हैं। वे इस शाश्वत सत्य के जीवंत उदाहरण हैं कि सफल जीवन हमेशा सार्थक हो यह जरूरी नहीं लेकिन सार्थक जीवन हमेशा सफल होता है। उनकी लेखनी समाज में संवेदनशीलता जगाने और बढ़ाने का गंभीर प्रयास करती प्रतीत होती है।

कठिन भाषा में लिखा साहित्य पाठक से दूर हो जाता है 

पूर्व आईएएस एवं साहित्यकार मनोज श्रीवास्तव ने नागार्जुन की आंचलिक सर्जना का मूल्यांकन की मीमांसा करते हुए स्पष्ट कि बाबा नागार्जुन उपन्यास से ज्यादा कविताओं में ज्यादा प्रासंगिक और प्रभाव डालते हैं। कोई भी उपन्यास सही मायनों में तब आंचलिक साबित होता है जब उसका नायक भी आंचलिक हो। आईएएस अधिकारी ओपी श्रीवास्तव ने कहा कि डॉ.शुक्ल ने भले ही उम्र के आठ दशक पूरे कर लिए हों लेकिन उनके लेखन में युवाओं जैसी ऊर्जा नजर आती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कठिन भाषा में लिखा गया साहित्य आम पाठक से दूर हो जाता है। इसलिए हर लेखक को यह प्रयास करना चाहिए कि उसके लेखन में सहजता-सरलता के साथ रोचकता और ज्ञानवर्धन भी हो। डा.साधना बलवटे ने साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। लेकिन वो समाज को अर्पित होना चाहिए।

कृज्ञता ज्ञापन समारोह : डॉ.शुक्ल

डॉ.प्रभु शंकर शुक्ल ने कहा कि मेरी सात पुस्तकों का लोकार्पण समारोह मेरी ओर से मंच पर उपस्थित अतिथियों और सभागार में बड़ी संख्या में मौजूद साहित्यकार साथियों के प्रति आभार कृतज्ञता व्यक्त करने का सुअवसर है। आप सब की अहेतुक कृपा के प्रति आभार प्रकट करता हूं। वैसे मेरा लेखनकर्म तो पांचवीं कक्षा से प्रारम्भ हो गया था। कालांतर में हिन्दी का प्राध्यापक होने के कारण पठन-पाठन और लेखन दिनचर्या के अभिन्न अंग हो गए। मध्यप्रदेश के और बाहर भी पत्र पत्रिकाओं और संग्रहों में लिखता रहा। दीमकों को प्रिय नहीं लगा तो चाट गई। अब संभला हुआ साप्ताहिक प्रकाशित लेखन है जो पुस्तकों के आकार में है। कार्यक्रम के समापन अवसर पर सभी अतिथियों का शाल-श्रीफल और प्रतीक चिन्ह से सम्मान किया गया।

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