मोटी कमाई का जरिया तीज-त्यौहार व लगन सराय ट्राफिक का फायदा उठाकर अधिक किराये की वसूली
प्रमुख तीज-त्यौहार समेत लगन एवं सराय दौरान यात्री बसों में ट्राफिक बढ़ने की बात सही है। लेकिन इसी बढ़े हुए ट्राफिक को फायदे में बदलने की तरकीब लोगों के गले नही उतर रही है। खासकर उन लोगों को जो दो दिन पहले २४० रूपये में इन्दौर से हरदा आये थे। लेकिन जाते समय उन्हें ३४० रूपये खर्च करना पड़ा। इसकी मुख्य वजह बंपर ट्राफिक दूसरा ऑनलाइन बुकिंग की मजबूरी। यही सब हाल इन दिनों मुख्यालय से विभिन्न बड़े-बड़े रूटों पर चल रहीं यात्री बसों का है। जिनकी तरकीब लोगों को अपनी जेब ढ़ीली करने के लिये विवश कर रही है। हालांकि ये सब ओर एकाद दिन की बात है। इसलिये कमाईकर्ता भी पूरी शिद्दत से अपना सीजन करने में जुटे हैं।
अनोखा तीर, हरदा। एक दिन पहले यात्रियों से अधिक किराया वूसली करने के मामले में जहां परिवहन अधिकारी ने यात्री बसों पर कार्रवाई का चाबूक चलाया था। बावजूद, बस ऑपरेटरों की मनमानी थमने का नाम नही ले रही है। महज चार दिनों का सीजन इसकी मुख्य वजह है। जिसका फायदा उठाने से संबंधित जरा भी नही कतरा रहे हैं। मानो कार्रवाई का कोई भय ना हो। मनमानी का ये आलम प्रमुख व लंबे रूटों पर ज्यादा है। क्योंकि, यात्रियों को जहां सीट की आवश्यकता पड़ती है, वहीं भीड़ के चलते लोग कोई बहसबाजी नही करते हैं। हालांकि, कई लोग ऐसे मामलों में अपनी आवाज बुलंद करने में पीछे नही रहते हैं। परंतु उन्हें बस लाइन से जुड़े लोग बखूबी संभाल लेते हैं। बावजूद कई मामले 181 पर दस्तक दे ही देते हैं। ऐसा ही इन दिनों मुख्यालय पर चल रहा है। जहां से इन्दौर रूट की हर बस यात्रियों से लबालब है। यही हाल उस तरफ से आने वाली बसों का है। यात्रियों के मुताबिक ऐसे वक्त पर सीट की कमी दर्शाकर यात्रियों से मोटी कमाई करने का सिलसिला जारी है। इसके लिये उनसे ऑनलाइन भुगतान करने की बात पर जोर दे रहे हैं, ताकि यह बताया जा सके कि ऑनलाइन व्यवस्था अंतर्गत बुकिंग हुई हैं। वहीं, दूसरी ओर ऐसी स्थिति में काउंटर से जहां 4-5 या उससे थोड़ी ज्यादा टिकिट बन पाती हैं, जबकि दर्जनों टिकिट ऑनलाइन बुंकिंग शो होना लाजमी है। इसे मोटी कमाई करने की एक नई तरकीब कहा जा रहा है। खैर यह सब तब तक बदस्तूर चलेगा, जब तक इस मनमानी के विरूद्ध आवाज नही उठाएंगे।
गरीब परिवारों पर भी गाज
तीज-त्यौहार समेत उन तमाम विशेष अवसरों पर चार पैसे कमाने की चाह में संबंधित लोग किराया बढ़ाने में नही चूकते हैं। संपन्न व्यक्ति जहां ऑनलाइन भुगतान कर समस्या का समाधान कर लेते हें। परंतु गरीब परिवारों के उन सदस्यों का क्या ? जो घंटो बस की राह देखते हैं। पूरा किराया यहां तक कि बढ़ा हुआ किराया भी देकर वे सीट की जद्दोजहद में हर बार हार जाते हैं। फिर, पूरे सफर उनकी व्यथा वे ही जानते हैं।
कमीशन पर बुरा असर पड़ा
इधर, ऑनलाइन बुकिंग का चलन बढ़ने से बस के एजेंटों की कमाई पर बुरा असर पड़ा है। सीजन में इन्दौर रूट की एक बस का करीब 10 हजार रूपये का स्टैंड हो रहा है। जिसका ६ से ७ सौ रूपये कमीशन बनता है। परंतु , कुल सीटों के तीन हिस्से ऑनलाइन बुक होने की वजह से उनका कमीशन डेढ से दो सौ रूपये पर सिमट रहा है। जो मैदानी कर्मचारी की सबसे बड़ी व्यथा है। क्योंकि इन्हीं डेढ़–दो सौ रूपये में सवारी को कॉल करना, उन्हें बैठाना समेत पूरा कामकाज जस का तस है।