मूंग पर इल्लियों का प्रकोप, महंगी से महंगी दवाईयां भी बेअसर

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अनोखा तीर, हरदा। अतिरिक्त फसल के रूप में गर्मी की फसल मूंग अब तक किसानों के लिए फायदे का सौदा बनी हुई थी, लेकिन इस बार तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव होने से मूंग की फसल को बीमारियों ने घेर लिया है। इस बार मूंग की फसल पर तंबाकू इल्ली का तो प्रकोप रहा ही है, लेकिन फूलों पर भी मारूका इल्ली ने हमला कर फसल को बर्वाद करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। खास बात यह है कि पहली बार माहू, मारुका इल्ली के प्रकोप को खत्म करने के लिए महंगी से महंगी कीटनाशक दवाएं बेअसर साबित हो रही है। किसानों ने बाहर से बुलाकर कई दवाईयों का छिड़काव किया। लेकिन बीमारी का प्रकोप जाने का नाम नहीं ले रहा है। कृषि वैज्ञानिकों का दल आए दिन किसानों के खेतों में निरीक्षण कर सुझाव तो दे रहा है, लेकिन उनके सुझाव भी बेअसर साबित हो रहे हैं। इन दिनों सबसे अधिक प्रकोप बीड़, केलनपुर, मसनगांव, कमताड़ा, कमताड़ी ग्राम में देखा जा रहा है। यहां किसानों की लहलहाती फसल को रातोंरात नई तरीके की यह इल्ली चौपट कर रही है।

कृषि वैज्ञानिक बता रहे बचाव के उपाय

कृषि वैज्ञानिकों ने मंगलवार को मूंग फसल का निरीक्षण किया। केन्द्र प्रमुख डॉ. संध्या मुरे ने बताया कि कृषि वैज्ञानिक डॉ.एसके तिवारी, डॉ.ओम प्रकाश एवं डॉ.मुकेश बकोलिया ने ग्राम रातातलाई, अतरसमा, बेसवां, कोलीपुरा, कुंजरगांव, रिजगांव व डुमलाय में किसानों के खेतों निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान मूंग फसल में चित्तीदार फली छेदक इल्ली देखी गयी जो कि फसल में नुकसान कर रही है। कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसे खेतों में फ्लेक्सामेटामइड 10 प्रतिशत एस सी की 100 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने अथवा इनडोक्साकॉर्ब 10 प्रतिशत एवं सायपरमेथिरन 10 प्रतिशत का पूर्व मिश्रित कीटनाशी 200 मिली प्रति एकड़ के साथ नीम तेल 175 मिली की दर से मिलाकर छिड़काव करने की सलाह दी। कृषि विज्ञान केन्द्र की डॉ. मुरे ने बताया कि कुछ खेतों में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई दे रहे हैं, रोग के लक्षण दिखाई देने पर फफूंदनाशक दवाई टेबूकोनेजोल सल्फर 500 ग्राम प्रति एकड़ अथवा थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से पावर पम्प में 100 से 125 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी गई। कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि इसके साथ किसी अन्य रसायन टॉनिक आदि का मिश्रण न करें, खेतों की सतत निगरानी करते रहे, किसी प्रकार की समस्या दिखने पर कृषि विज्ञान केंद्र में संचालित कृषि ओपीडी में पौधों के नमूने लेकर वैज्ञानिकों से तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त करें तथा फसल संरक्षण उपाय अपनाकर फ़सल को कीड़े बीमारियों से बचाएं।

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