-रिटायर्ड आईएफएस ने मप्र वालों को किया आगाह

गणेश पांडे, भोपाल। पेंच नेशनल पार्क के पूर्व डायरेक्टर रामगोपाल सोनी ने टाइगर स्टेट का दर्जा देने के मामले में सनसनीखेज खुलासा किया है। सोनी ने मप्र वालों को सावधान करते हुए कि कर्नाटक में चुनाव के चलते कहीं कर्नाटक टाइगर स्टेट का दर्जा पाने में सफल न हो जाए। यह राजनीति है और सब चलता है। सोनी ने यह आशंका यूं ही नहीं जताई। 9 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैसूर में बाघ गणना की घोषणा करेंगे। कर्नाटक में राजनीतिक लाभ लेने के फेर में यह नंबर गेम राजनीतिक आधार पर खेला जाएगा। जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव पद से रिटायर हुए सोनी वर्ष 2001 से 2004 तक टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर रह चुके हैं। उनका कहना है कि टाइगर ज्यादा होने से मध्य प्रदेश टाइगर स्टेट बना था। इस तरह के तमगे की कोई जरूरत नही है। इसके पैमाने वो होने चाहिए जो बेहतरीन टाइगर रिज़र्व के मूल्यांकन का तरीका है और जो विशेषज्ञों के द्वारा किया जाता है। उनका कहना है कि प्रतिस्पर्धा संख्या से नही बल्कि प्रबंधन से की जानी चाहिए। मध्य प्रदेश में 125 टाइगर पिछले चार साल में मारे गए। जिसमें शिकार, एलेक्ट्रिकुशन और आपसी लड़ाई की वजह शामिल है। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठता का पुरस्कार उसको मिलना चाहिए जिस प्रदेश ने बाघो का शिकार बेहतर तरीके ढंग से रोका है और जहां टाइगर की वृद्धि औसतन श्रेष्ठ हो।
बाघ गणना में कुछ लूप होल
सेवाकाल में तेज- तर्राट रहे आईएफएस सोनी का कहना है कि वर्तमान बाघ गणना में कुछ लूप होल है, जिस पर ध्यान देना होगा। विगत वर्ष कर्नाटक को टाइगर सफारी की संख्या जोड़ने से अधिक हुई थी। जबकि सफारी को ज़ू ही मानना चाहिए और ज़ू के बाघो की गिनती नही लेनी चाहिए। इसका मुझे ठीक नही मालूम कि सफारी के बाघों को टाइगर सेंसस में जोड़ा गया था या नहीं। किन्तु कर्नाटक में बाघ रिपोर्ट जारी करने से कर्नाटक को फायदा मिलने की संभावना है। दिल्ली में जारी होती तो अलग बात है, हो सकता है मेरी आशंका निर्मूल हो, पर कुछ उदाहरण मुझे मालूम है जिसमें उच्च स्तर पर मनमर्जी से संख्या बदलाई गई थी। जैसे वर्ष 2014 में जब दूसरी बार पेंच टाइगर रिज़र्व को प्रथम स्थान मिला तो उच्च स्तर पर इसके अंक कम करके पेरियार के अंक बढ़ाकर बराबर कर दिए गए थे। यही नहीं, इनाम देते समय पेंच के डायरेक्टर को नही बुलाया गया केवल पेरियार के डायरेक्टर को बुलाया गया। अफसोस तब और हुआ, जब पता चला कि कान्हा नेशनल पार्क में लंबे समय तक असफल डायरेक्टर रहे राजेश गोपाल ने इस प्रकार का षड्यंत्र रचा था।
2010 में पेंच को कमतर बताने के हुए थे प्रयास
वर्ष 2010 में जब पेंच नंबर वन आया। तब भी तत्कालीन टाइगर प्रोजेक्टट के डायरेक्टर मप्र कैडर के आईएफएस अधिकारी राजेश भोपाल ने प्रयास किया कि कान्हा के अंक बढ़ाये जाए और पेंच के अंक कम कर दिए जाएं, किन्तु जिन लोगों ने मूल्यांकन किया था उनमें वीर सावरकर जैसे सिद्धांतवादी अफसर थे। वे राजेश गोपाल के कहने पर पेंच अंक नहीं कम कर सके और पेंच टाइगर मैनेजमेंट मेंं प्रथम आ गया। सोनी कहते हैं कि हो सकता है मेरी बातें किसी को बुरा लगे। लगना भी चाहिए, हमें सम्पूर्ण देश के वन्यप्राणियों से लगाव है। किंतु बाघ गणना में फेयर गेम होना चाहिए। एक बार फिर मध्यप्रदेश सावधान हो जाओ। खैर कर कुछ नही सकते।
राज्य बाघों की संख्या
मप्र 526
कर्नाटक 524
उत्तराखंड 442
महाराष्ट्र 312
तमिलनाडु 264
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