-महिला वनकर्मी से छेड़छाड़ का मामला
गणेश पांडे, भोपाल। जंगल महकमे के इतिहास में महिला प्रताड़ना को लेकर यह पहला प्रकरण है, जिसमें अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक मोहन मीणा के विरुद्ध बैतूल के गंज थाने में आईपीसी की धारा 354 ओर 354 (ड्ड) के तहत सोमवार की रात १० बजे एफआईआर दर्ज कर ली गई है। इसके पहले जिला न्यायालय के प्रथम व्यवहार न्यायधीश के समक्ष पीड़ता ने 164 में बयान दर्ज कराए। मामला 2021 का है। तब एपीसीसीएफ मोहन मीणा बैतूल वन वृत में पदेन सीसीएफ के रूप में पदस्थ थे। 2021 में महिला फॉरेस्ट गार्ड से लेकर महिला रेंजर ने मीणा पर कार्यस्थल पर महिला प्रताड़ना की शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से की थी। मौजूदा एसीएस अशोक वर्णवाल तब प्रमुख सचिव वन थे। मामले को गंभीरता को देखते हुए वर्णवाल ने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार महिला प्रताड़ना के मामले जांच के लिए दो महिला आईएफएफ अधिकारी बिंदु शर्मा और आईएफएस अर्चना शुक्ला शामिल थी। दोनों ही अधिकारियों ने विशाखा गाइडलाइन के तहत जांच कर सीडीआर समेत 24 पेज की जांच रिपोर्ट जून 20 21 में सौंप दी थी। जांच अधिकारियों ने पीड़ितों के बयान के आधार पर आईएफएस को दोषी पाया था। इस मामले में मीणा को तब निलंबित भी किया गया था, किन्तु राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें बहाल कर दिया गया पर अपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं किया गया था। 4 साल बाद सीसीएफ मोहन मीणा के खिलाफ दर्ज हुई।
अपराध जमानती पर सजा दो साल की
बैतूल के गंज पुलिस स्टेशन में एपीसीसीएफ मीणा के विरुद्ध आईपीसी की धारा 356 एवं 356 (ए) के अंतर्गत अपराधिक प्रकरण दर्ज किया है। यह जमानती अपराध की श्रेणी में आता है। इसमें दो साल तक सजा का प्रावधान है। इसके अलावा, जुर्माना भी लगाया जा सकता है या दोनों सज़ाएं हो सकती हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 356 के तहत आने वाला यह अपराध एक संज्ञेय यानी गंभीर श्रेणी का अपराध माना जाता है। लेकिन संज्ञेय होने के बावजूद भी यह एक जमानतीय अपराध है, इसलिए धारा 356 में जमानत आरोपी व्यक्ति को आसानी से मिल जाती है। यह अपराध किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होता है, और यह अपराध गैर-शमनीय होता है यानी 356 में समझौता नहीं किया जा सकता।
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