वास्तु दोष ने नहीं, वाक्य दोष ने घर बिगाड़ा : पंडित नीरज महाराज

 

अनोखा तीर, हरदा। आज के समय में वास्तु दोष तो कम घर में है पर वाक्य दोष हर घर में है। वास्तु दोष के उपाय है पर वाक्य दोष का कोई उपाय नही दिखाई देता। आज की पढ़ी लिखी सभ्य समाज का एक असभ्य चेहरा कि संतानो के विवाह उपरांत अपने वृद्ध माता पिता को अलग कर देना या वृद्ध आश्रम में छोड़ आना यह बहुता ही दुखद और निंदनीय व्यवहार है। जीवन में कुछ लोग पसंद से मिलते है पर माता पिता परमात्मा तो पुण्य से ही मिलते हैं। पसंद के पीछे हम पुण्य को ना छोड़े। इस भारत में महाभारत द्रोपदी के वाक्य दोष से ही शुरू हुआ था कि अंधे का पुत्र भी अंधा है। वाणी वाण से और बोली गाली से भी बड़ा घाव देती है। यह बात पं. नीरज महाराज ने हरदा नगर में कौशल परिवार में चल रही भागवत कथा में बालकृष्ण के जन्म उत्सव में कही। समुद्र मंथन से अमृत निकला जो हर जीवआत्मा से परे था, पर इस धरा पर गैया और मैया ने ही उस अमृत को अधराअमृत के रूप में पिलाकर हमें सक्षम बनाया, धर्म और अमृत के मामले में राक्षस एक हो गये थे तो हम तो मनुष्य है, हम भी एक रहें। घर की लड़ाई का समझौता सरल है, पर धर्म की लड़ाई का समझौता कठिन है। अंग्रेजी भाषा का एक शब्द है कि हम क्वान्टिटी में ही नहीं क्वालिटी मे भी आगे रहे। कौरवो के पास संख्या ज्यादा थी साथ ही श्री कृष्ण जी की पूरी सेना भी थी पर स्वयं सेनापति कृष्ण पांडव और धर्म के पक्ष में थे। नंद घर आनंद भयो के साथ पूरा कथास्थल धर्ममय हो गया। कथा में कौशल परिवार द्वारा सभी रद्धालुओ का स्वागत सम्मान किया गया। उत्सव के दौरान माखन मिश्री की महाप्रसादी का वितरण किया गया

 

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