नितेश गोयल, हरदा। २६ अप्रैल को होने वाले बैतूल-हरदा लोकसभा चुनाव बसपा प्रत्याशी के निधन के कारण आगे बढ़कर अब ७ मई को हो गए है। चुनाव की तिथि आगे बढ़ने से प्रत्याशियों को प्रचार-प्रसार के लिए समय भी मिल गया है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बैतूल-हरदा लोकसभा चुनाव में जैसा चुनावी रंग दिखाई दिया जाना था वह अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है। आदिवासी सीट होने और विगत २५ वर्षों से इस लोकसभा क्षेत्र पर भाजपा का कब्जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी दुर्गादास उईके ३ लाख ६० हजार से अधिक मतों से विजयी हुए है और उन्होंने पहले भी वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी रामू टेकाम को हराया है इसलिए न तो भाजपा मजबूती से चुनाव प्रचार में जुटी हुई है और न ही कांग्रेस ने कोई दम दिखाई दे रहा है। लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं के मूड को भांपा जाए तो इस बार जो मोदी लहर २०१४ के चुनाव में दिखाई दे रही थी वह तो कहीं से भी दिखाई नहीं दे रही है, लेकिन कोई विकल्प न दिखाई देने और कांग्रेस प्रत्याशी के दमदारी से प्रचार न किए जाने से भाजपा इस लोकसभा क्षेत्र में फिर एक बार मजबूत दिखाई दे रही है। विधानसभा क्षेत्रवार इस लोकसभा क्षेत्र की बात की जाए तो बैतूल-हरदा लोकसभा क्षेत्र में मुलताई, आमला, बैतूल, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, टिमरनी, हरदा और हरसूद ८ विधानसभा आती है। जिसमें ६ विधानसभा सीटों पर भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है, सिर्फ हरदा जिले की टिमरनी एवं हरदा विधानसभा ही कांग्रेस जीती है। वर्तमान में कांग्रेस की इस हरदा एवं टिमरनी विधानसभा की बात की जाए तो भले ही वह ६ माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव जीत चुकी है, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति सही नहीं दिखाई दे रही है। मतदाताओं ने जो विधानसभा चुनाव में परिणाम परिवर्तित किया था वह व्यक्ति विशेष उम्मीदवार को लेकर ही दिखाई दिया था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस की स्थिति हरदा एवं टिमरनी में इस लोकसभा चुनाव में सुखद परिणाम लाएगी। भाजपा की लहर की बात की जाए तो वह भी इस चुनाव में कहीं से लेकर कहीं तक दिखाई नहीं दे रही है। इसके कारण की बात की जाए तो कृषि क्षेत्र होने के कारण भाजपा द्वारा विधानसभा चुनाव के पूर्व अपने घोषणा पत्र में किसानों को २७०० रुपए प्रति क्विंटल गेहूं का समर्थन मूल्य देने की बात कही थी, लेकिन भाजपा सरकार बनने के बाद इस बार २४०० रुपए क्विंटल ही गेहूं खरीदा जा रहा है। जिसकी नाराजगी किसानों में दिखाई दे रही है। इसी तरह इस चुनाव में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी है जो मतदाताओं को प्रभावित कर सकते है। भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा आगे किया है। भाजपा राममंदिर, कश्मीर में धारा ३७० और लाड़ली बहना योजना को केन्द्रित कर अपना प्रचार कर रही है। जिसका फायदा उसे मिलता दिखाई दे रहा है। वहीं कांग्रेस द्वारा जो पांच न्याय और २४ गारंटियों की बात की जा रही है वह अभी तक सही तरीके से मतदाताओं तक पहुंच ही नहीं पाई है। इसलिए इन गारंटियों के प्रचार-प्रसार के बिना मतदाताओं को प्रभावित किया ही नहीं जा सकता है।
२५ वर्षों से नहीं जीती कांग्रेस
बैतूल-हरदा लोकसभा क्षेत्र में २५ वर्षों से भाजपा का ही राज रहा है। वर्ष १९९१ में प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी असलम शेर खान इस लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के अंतिम सांसद चुनकर आए थे। इसके बाद वर्ष १९९६ से लेकर वर्ष २००४ तक भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय खंडेलवाल जीते। उनके निधन के बाद वर्ष २००८ में हुए उपचुनाव में उनके पुत्र हेमंत खंडेलवाल भाजपा से विजयी हुए थे। इसके बाद बैतूल-हरदा लोकसभा क्षेत्र का परिसीमन हो जाने के बाद इसे आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया था। अनुसूचित जनजाति होने के बाद भी भाजपा का इस सीट पर लगातार कब्जा रहा है। वर्ष २००९ से लेकर २०१४ के लोकसभा चुनाव में ज्योति धुर्वे और वर्ष २०१९ के चुनाव में डीडी उईके ने ३ लाख ६० हजार से अधिक मतों से विजयश्री प्राप्त की है।
जातीय समीकरणों का नहीं पड़ता असर
बैतूल-हरदा लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी इसी वर्ग के होने के कारण यहां जातीय आधार का कोई महत्व नहीं है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहां पर जयस का मजबूत जनाधार है, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में जयस भी दिखाई नहीं दे रही है। लोकसभा क्षेत्र बड़ा होने के कारण जातीय समीकरण बेअसर साबित होते है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा से राजपूत समाज थोड़ी नाराज दिखाई दे रही है, वहीं मुस्लिम वोट भी कांग्रेस के पक्ष में दिखाई देते है। इसके अलावा ब्राम्हण, वैश्य से लेकर दलित और आदिवासी समाज का झुकाव भाजपा की ओर ही दिखाई दे रहा है।
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