अनोखा तीर, हरदा। पूर्व कृषि मंत्री कमल पटेल ने हरदा की कृषि उपज मंडी को प्रदेश में मॉडल के रूप में प्रस्तुत करने के लिए करोड़ों रुपए की राशि प्रदाय की थी। लेकिन अधिकारी कर्मचारियों की पैसो की बंदरवाट ने किसानों के लिए तो कोई सुविधा नहीं जुटाई, बल्कि स्वागत द्वार और अन्य खर्चे दिखाकर करोड़ों रुपए की राशि रास्ते लगा दी। यदि इस करोड़ों की सौगात का सही उपयोग हो जाता तो आज अन्नदाता किसान को मंडी में अपनी उपज बेचने के लिए परेशान नहीं होना पड़ता। मंडी में पिछले पंद्रह दिनों से किसानों को पैसों की आवश्यकता होने के कारण तत्काल अपनी उपज बेचना पड़ रहा है, जिसके चलते मंडी में गेहूं एवं चने की बंपर आवक हो रही है। गत दिवस की ही बात करें तो लगभग 50 हजार बोरे की आवक हरदा कृषि उपज मंडी में हुई थी, लेकिन मंडी में समुचित व्यवस्था न होने के कारण किसानों को 3-3 दिन मंडी में रुकना पड़ रहा है। न तो मंडी प्रबंधन ने समुचित तरीके से पेयजल की व्यवस्था की है और न ही किसानों के लिए अन्य कोई व्यवस्थाएं हैं। मंडी प्रबंधन ने स्वागत द्वार के नाम पर तो लगभग 2 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, लेकिन किसानों के रुकने और शौचालय की व्यवस्था मंडी प्रांगण में समुचित तरीके से नहीं की गई है।
व्यवस्था सुधर जाए तो एक दिन में बिक जाएगी उपज
हरदा कृषि उपज मंडी इतने बड़े प्रांगण में फैली हुई है कि यदि प्रतिदिन 50 हजार बोरे आवक हो तो भी किसान का माल एक दिन में ही विक्रय हो सकता है। हरदा में इतने सुदृढ़ व्यापारी भी हैं जो इतने बड़े पैमाने पर उपज खरीदकर उसका भुगतान भी तत्काल कर सकते हैं। इसके बावजूद किसानों को हरदा कृषि उपज मंडी में 3-3 दिन क्यों राते गुजारनी पड़ रही हैं। जब हमने इन सवालों को तलाशा तो सारी गलती मंडी प्रबंधन की ही नजर आई। किसानों की उपज एक दिन में न तुलने का जो सबसे बड़ा कारण है, वह इलेक्ट्रानिक प्लेट तोल कांटा है। मंडी प्रबंधन द्वारा मात्र 2 तोल कांटो की व्यवस्था की गई है। जिसे मंडी के बिल्कुल मध्य में स्थापित किया गया है। आवक अधिक होती है तो यह दो तोलकांटे पर्याप्त न होने के कारण व्यापारी किसानों से माल नहीं खरीद पाते। जिसके कारण किसानों को भुगतना पड़ता है। एक तोलकांटा प्रतिदिन मुश्किल से 10 हजार क्विंटल माल ही सुबह 11 बजे से लेकर देर रात तक तोल पाता है, जिसके चलते मंडी में 20 हजार से अधिक आवक होने पर व्यापारी लिमिट का ही माल क्रय कर पाते हैं। वहीं यह तोलकांटे मध्य मंडी में होने के कारण ट्राफिक व्यवस्था भी पूरी तरह अस्त व्यस्त हो जाती है। यदि मंडी प्रबंधन और प्लेट कांटो की व्यवस्था कर ले तो किसान आसानी से एक दिन में ही अपनी उपज बेचकर आराम से अपने घर जा सकते हैं। वहीं मंडी प्रबंधन की दूसरी बड़ी लापरवाही कही जाए तो वह यह है कि मंडी में खरीदी करने वाले बड़े व्यापारियों के लिए पर्याप्त जगह की व्यवस्था मंडी प्रबंधन ने नही की है, जिसके कारण शेडो और खुले में उन्हें अपनी उपज पटकनी पड़ रही है। वहीं मंडी प्रबंधन ने कई ऐसे व्यापारियों को बड़े-बड़े गोडाउन और खुली जगह दी हुई है, जो नाम मात्र की खरीदी करते हैं और जिन्होंने नाम के लिए ही अपने लायसेंस और जगह पर कब्जा कर बैठे हुए हैं। जिसके कारण मंडी की व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल रही है।
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