खिलाड़ियों की प्रैक्टिस बंद, गेट खुलने का इंतजार

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 जबलपुर- राइट टाउन स्टेडियम को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैदान के रूप में विकसित करने के इरादे से करीब चार साल से यहां स्थानीय एथलीटों की एंट्री बंद है। अब जबकि निर्माण काम पूरा हो चुका है तो, एथलीट भी अभ्यास का मौका तलाश रहे हैं, लेकिन स्मार्ट सिटी के अधिकारी दावे करते हैं कि अब पुराना सिस्टम नहीं चलेगा, जो एजेंसी ठेका लेगी वही तय करेगी कि मैदान का उपयोग कौन खिलाड़ी करेगा। कहने का मतलब मोटी राशि लेकर ठेका लेने वाला संघ या एजेंसी नि:शुल्क एथलीटों को प्रवेश नहीं देगी। यह उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के साथ अन्याय है जो देश व प्रदेश के लिए पदक जीतने का सपना लिए दिनरात पसीना बहाते हैं और वे भी चाहते हैं कि उन्हें एक बेहतर मैदान मिले जहां वे अभ्यास कर उम्दा खिलाड़ी बन सकें। परन्तु शहर में खेल के नाम पर तो पाई-पाई खर्च की वसूली का खेल चल रहा है। ऐसे में प्रतिभाएं आगे कैसे बढ़ें।

चहतों को टीम में मिली जगह

जूडो के खेल में टीम चयन को लेकर भेदभाव का खेल का चल रहा है। जिन्होंने टीम में जगह बनाने जमकर पसीना बहाया वो बाहर हैं और जो घर में बैठे रहे वे घूमने-फिरने के बहाने दल में शामिल हो गए। चयनकर्ताओं की नजर में ये सबसे योग्य जुडोका हैं। मामला राज्य स्पर्धा के लिए जाने वाली संभागीय दल का है। सुबह ट्रायल और शाम को टीम घोषित, यही चल रहा है खेल में। संघ चलाने वालों के पास इतना भी समय नहीं की जाकर मैट पर देख लेते चयन में पूरी पारदर्शिता अपनाई जा रही है कि नहीं। यह नुकसान सिर्फ और सिर्फ खिलाड़ियों का है, आखिर करियर दांव पर होता है। राज्य स्पर्धा खेलकर ही राष्ट्रीय स्पर्धा के लिए अपनी दावेदारी पेश करने का जुडोकाओं के पास अवसर पर होता है। वह भी उनसे जाता रहा। इनके पास अब अगली स्पर्धा का इंतजार करने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।

बिना खेले वापस लौटी कबड्डी टीम

उच्चशिक्षा विभाग के राज्यस्तरीय टूर्नामेंट में भाग लेने इंदौर पहुंची रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की कबड्डी टीम बिना खेले उल्टे पांव वापस लौट आई। जानकारी के लिए जब कोच साहब से संपर्क किया गया तो पहले तो वे इस सवाल को टाल गए, ज्यादा जोर देने पर पता चला टीम डिसक्वालीफाई हो गई। टीम में शामिल खिलाड़ी विभिन्न कालेजों से थे। बकायदा टूर्नामेंट के बाद टीम सिलेक्ट हुई और पूरे दस्तावेज के साथ टीम गंतव्य को रवाना हुई थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि टीम को बिना खेले लौटा दिया गया। वैसे भी विश्वविद्यालयीन खेलों को लेकर औपचारिकता ज्यादा हो रही है। महज खानापूर्ति के लिए कैलेंडर पूरा किया जा रहा है और खेल से जुड़े जिम्मेदार ताल ठोंकने से बाज नहीं आते की देखिए हमने सफल आयोजन करा लिया।

कटनी के खिलाफ पसीना बहा रहे जिले के क्रिकेटर

जबलपुर जिले की क्रिकेट इन दिनों खराब दौर से गुजर रही है। यही कारण है कि कटनी जैसी औसत टीम भी अब मेजबानों को आंखें दिखाने लगी है। अंडर-15 संभागीय क्रिकेट के सेमीफाइनल में जबलपुर के क्रिकेटरों को मामूली स्कोर पर आउट कर कटनी ने साबित कर दिया है कि उन्हें कमजोर न समझा जाए। कल तक रणजी टीम में चयन नहीं होने को लेकर हायतौबा मचाने वाले क्रिकेटरों का प्रदर्शन जूनियर लेबल पर ही बेहद कमजोर है। स्कोर सीट देख जिला संघ चुप्पी साध गया है। मेजबान होने के बाद भी टीम की कमजोरियों ने संघ व चयनकर्ताओं की कार्यशैली पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। पहले क्लब लेबल पर मुकाबले के बाद 15 सदस्यीय टीम फाइनल होती थी, लेकिन अब स्थिति उलट है। क्लब क्रिकेट के मैचेस पर अब विराम लग चुका है। सीधे ट्रायल से टीम चुनी ली जाती है। ऐसे में कैसे खिलाड़ी के प्रदर्शन को परखा जा सकता है।

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