-सरकारी घोषणा के एक साल बाद भी नहीं हुआ धरातल पर अमल
अनोखा तीर, हरदा। मध्यप्रदेश सरकार ने बीते वर्ष इसी अगस्त माह में सड़कों पर खुलेआम विचरण करने वाले आवारा मवेशियों के लिए एक विधेयक पारित किया था। जिसके तहत इन मवेशियों को आवारा की जगह निराश्रित संबोधित करने का फैसला लिया गया। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने ४ विभागों को मिलाकर इन निराश्रित मवेशियों के समाधान हेतु एक समिति भी गठित कराई थी। जिसमें पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, लोक निर्माण, पशु पालन एवं डेयरी विभाग तथा शहरी आवास एवं विकास विभाग के प्रमुख सचिव को समिति का सदस्य बनाया गया था। इसी के साथ सभी जिला अधिकारियों को और नगरीय निकायों को आदेशित भी किया गया था कि अपने-अपने जिले की सीमा में सड़कों पर घूमने व बैठने वाले इन निराश्रित पशुओं को हटाया जाए। सरकार का आदेश था, तो चार दिन कुछ नगरीय निकायों के कर्मचारियों ने सड़कों पर डंडा ठोंकते हुए इन पशुओं को हटाने की मुहिम के नाम पर तस्वीरें खिंचवाई। मीडिया में खबरें भी छपवाई गई। लेकिन इन पशुओं को न तो स्थाई रूप से हटाया गया और न ही हटाकर कहां भेजा जाएगा, इसकी कोई ठोस कार्ययोजना बनाई गई। आज हालात यह हैं कि हरदा और सीहोर जिले की सड़कों पर जगह-जगह झुंड के रूप में बैठने वाले यह निराश्रित पशु वाहन दुर्घटनाओं का कारण बने हुए हैं। हरदा जिले में ऐसे पशुओं को लेकर न तो कभी जिला प्रशासन ने कोई ठोस पहल की है और न ही स्थानीय निकायों ने। स्थिति यह है कि जिला मुख्यालय की सड़कें ही इन निराश्रित पशुओं से पटी पड़ी हैं। मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने यहां तक कहा था कि राज्य मार्गों पर इन मवेशियों की समस्या से निपटने के लिए १० हजार रुपए प्रति माह पर २ हजार लोगों की नियुक्ति की जाएगी। राज्य मार्गों से जुड़ी ग्राम पंचायतों को भी अपने यहां दो-दो कर्मचारी इस कार्य के लिए नियुक्त करने को कहा गया था। लेकिन एक वर्ष पश्चात भी न तो सरकार ने ऐसे कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए कोई कार्ययोजना बनाई और न ही इस दिशा में मैदानी स्तर पर पहल की गई। कुछ जागरुक नगरीय निकायों द्वारा अपनी नगरीय सीमा से ऐसे मवेशियों को हटाने के लिए पहल अवश्य की गई थी। जिसमें निकटवर्ती नर्मदापुरम नगर पालिका तथा देवास नगर निगम द्वारा योजनाबद्ध तरीके से कार्य किए जाने की जानकारी प्राप्त हो रही है। हरदा जिले में इस समस्या से कब निजात मिलेगी यह कह पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा है। चूंकि जिन नगरीय निकायों को इन आवारा मवेशियों को पकड़कर अपनी सीमा से बाहर भेजने या गौशाला पहुंचाने का कार्य करना है, वह तो फिलहाल अपने पार्षदों को संभालने में ही हलाकान है। खैर जिला प्रशासन को सरकार की मंशानुरूप इस दिशा में कोई ठोस कार्ययोजना बनाना चाहिए। जिस तरह इंदौर नगर निगम ने इतने बड़े महानगर को निराश्रित पशुओं से मुक्त कर दिया है। ठीक उसी तरह हरदा जिला प्रशासन भी इन निराश्रित पशुओं को पकड़कर वनांचल के उन लघु किसानों को उपयोग करने के लिए सौंप सकते हैं, जिनके पास भूमि भी कम है और पशु भी। ऐसे गरीब किसान इन पशुओं को वन क्षेत्रों में पाल पोष सकते हैं और इससे दुग्ध उत्पादन का कार्य भी कर सकते हैं। आवश्यकता केवल दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ ईमानदार पहल करने की है। वरना सरकारी आंकड़ों में बीते वर्ष जो निराश्रित पशु ८ लाख ५३ हजार ९७१ थे, वह साल दर साल अपने आंकड़े बढ़ाते जाएंगे और सड़क दुर्घटना के कारक बनकर खुद भी शिकार होंगे और दूसरों को भी घायल करेंगे। हालाकि कलेक्टर सिद्धार्थ जैन ने एक बैठक लेकर निराश्रित पशुओं को गौशालाओं में भेजने के आदेश जारी किए हैं। लेकिन देखना यह है कि पहले से ही भरी पड़ी गौशालाओं में निराश्रित पशुओं का विस्थापन कैसे किया जाता है।
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