कृषि विस्तार का अविराम सफर

कृषि के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान कम नहीं है फिर वह चाहे महिला अधिकारी-कर्मचारी के रूप में हो या महिला कृषक और मजदूर के रूप में। प्रत्येक रूप में महिलाओं ने कृषि को सवांरने का काम किया है। ऐसी ही एक कर्मठ और जुझारू महिला वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्रीमती आशालता पाठक गत 28 वर्ष की शासकीय सेवा पूर्ण कर सेवानिवृत्त हो गई। उन्होंने कृषि विभाग में पदस्थ रहते हुए कई उतार-चढ़ाव देखे परन्तु कार्य से कभी विचलित नहीं हुई। 1995 में कृषि विकास अधिकारी के पद से अपनी सेवा प्रारंभ कर सिर्फ एक पदोन्नति लेकर उन्होंने अपनी पूर्ण क्षमता, दक्षता, समर्पण और निष्ठा के साथ अपने दायित्वों का श्रेष्ठतम प्रयास प्रदेश के कृषि विकास को समर्पित करते हुए किया। प्रदेश में चल रही कृषि में महिलाओं की भागीदारी परियोजना तथा आत्मा जैसी योजनाओं ने उनकी प्रतिभा को तराशने के लिए बड़ा प्लेटफार्म दिया, जिसके माध्यम से श्रीमती पाठक ने प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से किसानों की सेवा कर यश अर्जित किया। वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी श्रीमती आशालता पाठक की शासकीय सेवा यात्रा का वृतांत स्वयं उनकी जुबानी यहां प्रस्तुत है-

कृषि विभाग में मेरी पदस्थापना वर्ष 1995 में बतौर कृषि विकास अधिकारी हुई थी। वर्ष 1994 में योजना में कृषि अधिकारी के पद पर विशेष रूप से  महिलाओं की नियुक्ति हुई थी। महिला कृषकों के प्रशिक्षण एवं अन्य कार्यक्रम आरम्भ करने से पहले हम लोगों को प्रदान की गई। इसके पश्चात तीन राज्य कर्नाटक, तमिलनाडू व उड़ीसा का अध्ययन भ्रमण कराया गया जहां पूर्व से सहायता से महिला कृषकों को प्रशिक्षण देने की येाजना लागू की थी। लघु सीमांत कृषक परिवारों की महिलाओं को जब प्रशिक्षण देना आरम्भ किया तो उनकी प्राथमिकताएं समझी।

महिलाओं के कार्य करने, समझने की क्षमताएं तथा कौशल विकास करने, अपनी पहचान बनाने की ललक को जाना। वर्ष दर वर्ष प्रशिक्षित महिलाओं की संख्या बढ़ती गई, उनमें खेती की कम लागत की तकनीकियों को आत्मसात करने की गजब की क्षमता थी। इसका सुखद अनुभव हमें अपना कार्य आरंभ करने के कुछ ही महीनों के अंदर परिलक्षित हो गया। वित्तीय वर्ष 1997-98 के ग्राम स्तरीय प्रशिक्षण के लक्ष्य पूर्ण कर हम लोग फालोअप प्रक्रिया में जबलपुर जिले के बरगी के पास एक आदिवासी ग्राम में पहुंचें तो सुखद आश्चर्य से भर गये। 1 महिने पहले खाद बनाने की विधि में  ‘कच्चा नाडेप’ बनाना सिखाया था और अब ट्रेनिंग पायी  महिला के खेत में तीन नाडेप बने देखा। सुखद लगा कि महिलायें सीखती भी जल्दी हैं।

महिला कृषकों को जब जिले से बाहर या राज्य के बाहर भ्रमण पर ले जाया जाता तो कई महिलायें ऐसी होती जिनकी यात्रा सिर्फ मायके के गांव से ससुराल के गांव तक सीमित थी। उनकी प्रसन्नता देखते ही बनती थी। बार-बार वो हम लोगों का आभार करती कि हमारे कारण उन्हें दूसरे जिलों की महिला कृषकों से मिलने, तीर्थ स्थान को देखने का अवसर मिला और हम लोग मुस्कुराकर कहते ये हमारा कार्य है। इसी दौरान वर्ष 2001 में प्रोजेक्ट आफिस जबलपुर में पोस्टिंग होने के कारण मंडला, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, सतना, सीधी, रायसेन के ग्रामों का भ्रमण व वहां की कृषक महिलाओं से मिलने और उनके द्वारा अपनाई जा रही तकनीकियों को देखने का अवसर मिला।

मापवा प्रोजेक्ट में कार्य करते हुये गांव से लेकर राज्य स्तर की गतिविधियों में भाग लेने के साथ-साथ लगभग सभी तरह के कार्य कोषालय, ऑडिट, बाहरी दलों के साथ मूल्यांकन व समीक्षा में भाग लेना सब तरह के कार्य करने का अवसर मिला। विभाग की तरफ से छ: माह की एक्सटेंशन मैनेजमेंट का डिप्लोमा डेनमार्क से प्राप्त किया। डिप्लोमा में प्रोजेक्ट हेतु कृषि अभियांत्रिकी कार्यालय में पदस्थ राजीव चौधरी वर्तमान संचालक कृषि अभियांत्रिकी के सहयोग से कृषि उपकरणों के विषय पर कार्य करने में सहयोग मिला।

मापवा में कार्य करने के दौरान संचालनालय संभाग, जिला एवं विकासखण्ड स्तर पर अधिकारी एवं कर्मचारियों का सहयोग प्राप्ता हुआ। तत्कालीन संचालकों का सतत मार्गदर्शन मिला (डॉ. जी.एस. कौशल/स्व. डॉ. डी.एन.शर्मा) परियोजना अधिकारी श्री ए.के.नागल का विशेष सहयोग मिला, जिनसे विस्तार कार्य को प्रभावी ढंग से करना सीखा।

वर्ष 2005 के पश्चात संचालनालय में पदस्थापना होने के साथ नये कार्य का दायित्व मिला। ‘विस्तार सुधार कार्यक्रम सभी वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में और मापवा परियोजना के फील्ड में कार्य करने के अनुभव से अपने आप को तराशते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन किया। मापवा प्रोजेक्ट के समय से श्रीमती रश्मि वर्गीस मैडम  के साथ कार्य करना आरंभ किया एवं वर्तमान में उन्ही के साथ उनके मार्गदर्शन, सहयोग और समन्वय से  कठिन से कठिन कार्य को पूरे मनोयोग से किया।

केन्द्रीय योजनाओं में पीएफएमएस सिस्टम पर कार्य कर ‘आत्मा’ के अनुभव से सभी केन्द्रीय योजनाओं में यह प्रणाली लागू करने में संचालनालय से ले कर जिला स्तर तक लागू करने में सहायता मिली।
समस्त वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, के पश्चात राज्य कृषि एवं विस्तार संस्थान में स्टाफ प्रशिक्षण के दौरान मैदानी अधिकारियों को प्रशिक्षण देने का अनुभव प्राप्त हुआ।

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