देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने तथा आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कृषि क्षेत्र निरन्तर प्रगति कर रहा है। परन्तु अधिकांश चुनौतियां भी इसी क्षेत्र में है। कृषि योग्य भूमि का टुकड़े-टुकड़े होना, मृदा और जल संसाधनों की कमी, भू-जल स्तर में गिरावट, जलवायु प्रतिकूलताएं तथा खेत उत्पादों की मार्केटिंग जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकीय प्रणालियों को अपनाने की जरूरत है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान तथा कृषि विश्व विद्यालय एवं कृषि विज्ञान केन्द्र इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। नए-नए अनुसंधान, अल्पावधि में पकने वाली किस्में, कृषि मशीनरी तथा भूमि की सेहत में सुधार किया जा रहा है साथ ही किसानों की सुविधा व लाभ के लिए सूचना तंत्र, डिजिटल प्रौद्योगिकी का विकास और ई-प्लेटफार्म उपलब्ध कराए जा रहे हैं। कृषि अनुसंधान और कृषि शिक्षा से जुड़ी ये जानकारी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक एवं सचिव डेयर डॉ. हिमांशु पाठक ने कृषक जगत को एक विशेष मुलाकात में दी। डॉ. पाठक हाल ही में भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी के कार्यक्रम में भाग लेने भोपाल आए थे।
डॉ. पाठक ने बताया कि भारत न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया है, बल्कि निर्यात भी कर रहा है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2023-24 के लिए कुल खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 3320 लाख टन निर्धारित किया गया है जबकि वर्ष 2022-23 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 3305 लाख टन होने का अनुमान है।
अनुसंधान एवं तकनीक
महानिदेशक ने बताया भारतीय कृषि अनु. परिषद के सहयोग से राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली ने फसल प्रजातियों के सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने बताया वर्ष 1969 से अब तक राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली द्वारा कुल 5967 फसल किस्में विकसित की गई है इसमें 2943 अनाज की, 975 तिलहन की, 1083 दालों की, 233 चारे की, 538 रेशे वाली, 146 गन्ने की और 49 अन्य फसल किस्में शामिल है।
उन्होंने बताया कि आईसीएआर के प्रयासों से अब तक कुल 87 बायोफोर्टिफाइड किस्मों का विकास किया गया है। इसमें चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा, रागी, मसूर, मूंगफली, अलसी, सरसों, सोयाबीन, फूल गोभी, आलू एवं अनार फसलों की किस्में शामिल है।
युवा किसानों के लिए
देश के कर्णधार युवा वर्ग को कृषि क्षेत्र से जोडऩे की आवश्यकता पर बल देते हुए महानिदेशक ने बताया कि आईसीएआर द्वारा युवाओं के वोकेशनल प्रशिक्षण और क्षमता विकास के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिससे युवाओं को कृषि क्षेत्र में उद्यमी बनाया जा सके। उन्होंने बताया कि कृषि क्षेत्र में युवाओं को आकर्षित करने के लिए आर्या के देशभर में 100 केन्द्र खोले गए हैं तथा प्रौद्योगिकी मूल्यांकन और क्षमता विकास के लिए देश के 731 कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से कार्य किए जा रहे हैं।
मिट्टी की अहम भूमिका
डॉ. पाठक ने बताया कि देश में किसानों की आय तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए आम लोगों के साथ-साथ किसानों में भी मिट्टी के स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढ़ाने एवं शोध करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि इसके लिए स्वाईल हेल्थ कार्ड एवं उर्वरक अनुसंधान पर जोर दिया जाना चाहिए। उनका कहना है कि उन्नत खेती के लिए मिट्टी का स्वस्थ एवं पोषक तत्वों से भरपूर रहना आवश्यक है।
डिजिटल टेक्नॉलाजी
महानिदेशक ने बताया कि खेती में डिजिटल टेक्नॉलाजी का उपयोग समय की मांग है। उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भी राज्य कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएआर और केवीके द्वारा विकसित 100 से अधिक मोबाईल एप अपनी वेबसाइट पर अपलोड किए हैं। जिनके द्वारा कृषि बागवानी, पशु चिकित्सा, कुक्कुट, मत्स्य पालन, प्राकृतिक संसाधन, प्रबंधन आदि विषयों पर ये मोबाईल एप किसानों को जानकारी प्रदान करते हैं।
डॉ. पाठक ने बताया कि मोबाईल एप में किसानों को पद्धतियों के पैकेज, बाजार की कीमत, मौसम की जानकारी एवं सलाह की सेवाएं दी जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा आईसीएआर ने ‘किसान सारथी डिजिटल मल्टी मीडिया प्लेटफार्म विकसित किया है, जिसका उपयोग कर देश भर के कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों को सलाह दे रहे हैं जिससे समय पर उपयोगी जानकारी मिल रही है।