ग्रामीणों ने लिया क्षिप्रा पुर्नजीवित करने का संकल्प

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पर्यावरण विद गौरीशंकर मुकाती की पहल पर होगा वृहद वृक्षारोपण

दैनिक अनोखा तीर, देवास। असंख्य लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र क्षिप्रा नदी आज विलुप्ता की कगार पर पहुंच गई है। इंदौर जिले की सीमा से निकल कर देवास जिले से होते हुए महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन पहुंचने वाली इस एतिहासिक नदी को कृत्रिम तरीके से जीवित रखा गया है। लेकिन अब पर्यावरण विद गौरीशंकर मुकाती की पहल पर क्षिप्रा के तटवर्ती गांवों में लोगों द्वारा इसको पुर्नजीवित करने का संकल्प लिया जा रहा है। क्षिप्रा उद्गम स्थल के निकट वर्तीय ग्राम सोनवाय के श्री राम मंदिर परिसर में आस पास के ग्रामीणों की एक बैठक श्री मुकाती की उपस्थिति में संपन्न हुई। जिसमें कैलाश सेठ, मांगीलाल पटेल, बलराम दांगी, विष्णु दांगी, सुनील दांगी, सुरेन्द्र ठेकेदार, अभिषेक पटेल, गगन पटेल, आशिष दांगी, सुरेन्द्र सेठ आदि लोगों ने पूरे उत्साह के साथ संकल्प लिया कि वह क्षिप्रा नदी को पुर्नजीवित करने के लिए उसके दोनों तटों पर तथा तटवर्ती अपने अपने खेतों की मेड़ों पर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करेंगे। इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में लंबे समय से हरदा, खंडवा, सिहोर, नर्मदापुरम जिलों में तथा नर्मदा नदी के तटवर्ती इलाकों में कार्य करने वाले हरदा के प्रथम जिला पंचायत अध्यक्ष गौरीशंकर मुकाती ने भरपूर सहयोग देने की बात कही। श्री मुकाती ने कहा कि वृक्षारोपण करने वाले सभी किसानों को रुपई एग्री फारेस्ट लिमिटेड द्वारा निःशुल्क सागौन, बांस, जामुन आदि पौधे उपलब्ध कराएं जायेंगे। उल्लेखनीय है कि क्षिप्रा नदी इंदौर के उज्जैनी मुंडला गांव की ककड़ी बड़ली नामक स्थान से निकलती है। जो कभी सदानीरा हुआ करती थी। यह नदी अपने उद्गम स्थल से 196 किमी की यात्रा करने के बाद मंदसौर में चंबल नदी में जाकर मिल जाती है। खान नदी ओर गम्भीर नदी इसकी सहायक नदियां है | क्षिप्रा नदी के उज्जैन तट पर ही हर 12 वर्षों में कुंभ लगता है। जिसमें कुंभ स्नान करने के लिए देश दुनिया के हजारों साधु संत, तपस्वी यहां आते हैं। लेकिन यह ऐतिहासिक महत्व की नदी आज विलुप्ता की कगार पर पहुंच गई है। कुंभ स्नान को लेकर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पिछले कुंभ मेले से पहले नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना की शुरुआत 29 नवंबर 2012 को की गई थी। जिसके तहत ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना से नर्मदा का पानी लाकर क्षिप्रा में छोड़ा गया था। यह पानी करीब 115 किलोमीटर की दूरी तय करके उज्जैन पहुंचा। जहां कुंभ दौरान साधु संतों सहित श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई थी। लेकिन क्षिप्रा की यह कृत्रिम जलधारा न तो नदी को सदानीरा बना सकती है और न ही आस पास के ग्रामीणों तथा उनके खेतों की प्यास बुझाने में सक्षम है। अगर इसे प्राकृतिक रूप से पुर्नजीवित कर दिया जाएं तो जहां एक ओर नर्मदा क्षिप्रा लिंक परियोजना के संचालन पर लगने वाला करोड़ों रुपए खर्च बचेगा, वहीं यह आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए फिर जीवन दायिनी मां क्षिप्रा भी बन जाएगी।‌

बैठक दौरान महेंद्र चौधरी, नागेश दांगी, अतुल शर्मा और दीपक महेशके ने क्षिप्रा नदी के तटवर्ती क्षेत्रों में वृहद रूप से वृक्षारोपण अभियान चलाएं जाने हेतु लोगों को जागृत करने की बात कही। जिसके तहत आस पास के सभी गांवों में क्षिप्रा पुर्नजीवित समितियों का गठन करते हुए एक महा अभियान चलाया जाएगा।

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