नर्मदा के नाभिस्थल से लगा क्षेत्र कई मायनों में पौराणिक महत्वताओं को समेटे हुये हैं। नर्मदा के दोनों ओर सिद्ध स्थल इसके साक्षी हैं। जहां दूर-दूर से लोग धर्मलाभ अर्जित करने के लिये पहुंचते हैं। देवास जिले के नेमावर की बात करें तो यहां पूर्व दिशा में 6-7 किलोमीटर दूर नर्मदा के उत्तर तट पर ग्राम तुरनाल मिलेगा ! जो ऐसे सभी स्थानों में शीर्ष पर है। शास्त्रों के अनुसार यहां भगवान परशुराम ने अपनी मॉ रेणुका का पिंडदान किया था। जिसके चलते इस स्थान का खासा महत्व है। पढ़ियें, अक्षय तृतीया भगवान परशुराम के प्रकटोत्सव पर विशेष रिपोर्ट ।
मंदिर में परशुराम की प्रतिमा
शिला पर पत्थर के पंच लड्डू
अनोखा तीर, रितेश त्यागी। हरदा और देवास जिले की सीमा पर बहने वाली पुण्य सलिला मॉ नर्मदा का तटीय क्षेत्र पौराणिक महत्वताओं से परिपूर्ण है। वैशाख माह की अक्षय तृतीया भगवान परशुराम के प्रकटोत्सव के मौके पर हम नर्मदा के नाभि क्षेत्र में बसे उस गांव की बात कर रहे हैं, जो वर्तमान में प्रदेश सहित देश व दुनिया में अपनी खास पहचान बनाये हुये है। जिसका नर्मदा पुराण में भी उल्लेख है। शास्त्रों के अनुसार देवास जिले का ग्राम तुरनाल जहां भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का पिडंदान किया था। नर्मदा तट पर तर्पण कार्य के चलते भगवान परशुराम ने पत्थर की बड़ी शिला पर पांच लड्डू बनाए थे। जो भारतीय संस्कृति व प्राचीन परंपराओं को बल देता है। बड़े बाबा आश्रम के महंत संत रामस्वरूप दास शास्त्री के मुताबिक नर्मदा पुराण में तुरनाल के नर्मदा तट पर भगवान परशुराम ने पिता जमदग्नि ऋषि एवं माता रेणुका के देवलोकगमन पश्चात पिंड प्रदान कर तर्पण किया था। वे पांच पिंड आज भी एक बड़ी शिला पर बने हैं। इस बारे में विद्वान पंडितों ने कहा कि दिशा समेत अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखकर भगवान परशुराम ने पिंडदान के लिये इस स्थान को चुना था। वर्तमान समय में श्राद्धपक्ष दौरान दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं, जो पंडितों के माध्यम में पितृों को जल तर्पण करते हैं। यहां यह जानना भी जरूरी है कि ग्राम तुरनाल में नर्मदा तट स्थित पंच लड्डू स्थल पर पहुंचना इतना भी सरल नही है। धूप में चिलचिलाती रेत पर पैर रखते ही कठिनाईयों की अनुभूति होने लगती है। गांव के बड़े-बुजर्गो के मुताबिक यह केवल संकेत मात्र है, जो दर्शाता है कि उस समय कठिनाईयों के बीच उस स्थान तक पहुंचा जाता था। पंच लड्डू स्थल तक पहुंचने से पहले लोगों को गोनी नदी से होकर निकलना पड़ता है। हालांकि नदी में उस समय महज डेढ़ से दो फीट पानी रहता है। कहते हैं कि नदी में पैर शुद्ध करके पंच लड्डू की ओर बढ़ा जाता है।
दलाई लामा ने रोपा था बौधि वृक्ष
ये वही तुरनाल गांव है, जिसकी पौराणिक महत्वता के चलते तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नर्मदा सेवा यात्रा में शामिल होने के लिये इसी जगह का चयन किया था। दलाई लामा ने पवित्र स्थल को लेकर जहां अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त की थी, वहीं तुरनाल दौरे को यादगार बनाने के उद्देश्य से यहां बौधि वृक्ष का पौधा रोपा था। इस मौके पर पर्यावरण पे्रमियों को बोधि वृक्ष की देखरेख का संकल्प दिलाया था।
बिहार के गयाजी बराबर पुण्यलाभ
यहां राजस्थान से आए महात्मा परशुराम बाबा ने तुरनाल में नर्मदा तट पर भगवान परशुराम का भव्य व सुंदर मंदिर बनवाया है। मंदिर में भगवान परशुराम की खड़ी प्रतिमा व परशुराम महादेव के लिंग की स्थापना की है। मान्यता है कि यह गांव बिहार के प्रसिद्ध पितृ तीर्थ गयाजी के समान है। जो फल पितरों के मोक्ष के निमित्त गयाजी में करने पर फल प्राप्त होता है, वही फल इस स्थान पर पितृ निमित्त कर्म करने पर सहज ही प्राप्त होता है।
Views Today: 4
Total Views: 228