चुनावी हांडी में मांगों की खिचड़ी पका रहे कर्मचारी संगठन  

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प्रदीप शर्मा, हरदा। पुरानी पेंशन, पदोन्नति और क्रमोन्नति सहित विभागों में नियमितीकरण एवं वेतनवृद्धि करने जैसी अनेक मांगों को लेकर प्रदेश में शासकीय कर्यचारी अमला लामबंद होने लगा है। इस चुनावी साल में आरपार की लड़ाई लड़कर तमाम कर्मचारी संघ अपनी वर्षों पुरानी मांगों को पूर्ण कराने की राह पर चल पड़े हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ की हड़ताल से सरकार घुटनों के बल आ गई थी। इसके बाद तो जैसे एक के बाद एक कर्मचारी संगठनों के आंदोलनों की बाढ़ सी आ गई। अभी-अभी तहसीलदार संघ, पटवारी संघ, मप्र पंचायत सचिव संघ, भारतीय मजदूर संघ के बैनरतले मप्र आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ आदि मैदान में आ चुके हैं। इसके अलावा अन्य कर्मचारी संघ भी अपने बड़े आंदोलनों की रणनीति तैयार कर रहे हैं। ताकि इस चुनावी साल में सरकार से अपनी मांगों को मनवाया जा सके। यही वजह है कि कर्मचारियों की नाराजी देखकर राज्य सरकार भी बैकफुट पर आकर संगठनों से पर्दे के पीछे सभी चाहे-अनचाहे वादे कर रही हैं। ताकि आगामी चार-पांच महीने शांति से गुजर जाएं।

50 से अधिक संगठन नाराज

सेवानिवृत्त अधिकारियों व कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देने से मध्यप्रदेश के 50 से अधिक बड़े कर्मचारी संगठन नाराज हैं। वे अब राज्य सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। कर्मचारी संगठनों ने साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने ठोस निर्णय नहीं लिए तो वे माफ नहीं करेंगे। यानी इसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। बता दें कि प्रदेश में नियमित, संविदा, स्थायीकर्मी, निगम-मंडल मिलाकर 18 लाख से अधिक कर्मचारी हैं। जो कभी अपनी पर उतर आए तो व्यवस्था के ठप्प होने में देर नहीं लगेगी। बीते कई चुनावों में सरकार ने भी देख लिया है कि सरकारी अमले की नाराजी और उन्हें साध लेने के क्या नफा-नुकसान हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में कर्मचारी तबका अब जरा भी ढील देने को तैयार नहीं है।

नाराजी के कारण

कर्मचारियों की नाराजी का एक कारण यह भी है कि मध्यप्रदेश में मई 2016 से पदोन्नति पर रोक लगी है। करीब 35 हजार कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति से ठीक पहले पदोन्नति मिलनी थी। वे इसके बिना ही सेवानिवृत्त हो गए। इस कारण सरकार भी इस ओर ध्यान देकर कुछ विभागों में पदोन्नति व क्रमोन्नति देने की रणनीति पर काम करने लगी है। आरक्षित और अनारक्षित दोनों वर्ग के कर्मचारी चाहते हैं कि पदोन्नति शुरू हो जाए, भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अधीन ही हो। ज्ञात रहे कि वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्य सचिव इकबाल सिंह और विभिन्न विभागों को ज्ञापन भी सौंप चुके हैं। मगर अभी किसी के भी स्तर पर संतोषजनक पहल नहीं हुई है।

पुरानी पेंशन का मामला गहराएगा

इन दिनों कर्मचारियों में पुरानी पेंशन बहाली की मांग जोर पकड़ती जा रही है। इसे लेकर प्रदेश के 22 कर्मचारी संगठन एक साथ खड़े हैं। गत माह 5 फरवरी को प्रदेश की राजधानी भोपाल में इसे लेकर महासम्मेलन भी हो चुका है। मई-जून में कर्मचारी एक बार फिर एकत्र होंगे और सरकार को अपनी चेतावनी याद दिलाएंगे। कर्मचारी सभी विभागों में रिक्त पदों को लेकर भी नाराज हैं। वहीं सेवानिवृत्त कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देने के भी खिलाफ हैं। इस बारे में वे कई बार अपनी बात सरकार के सामने रख चुके हैं। उनकी मांग है कि युवाओं को मौका देंगे तो कर्मचारियों की आने वाली पीढ़ी तैयार होगी।

पुरानी पेंशन पर मंथन शुरू

कर्मचारियों की नाराजी और पुरानी पेंशन की मुख्य मांगों को देखते हुए सभी प्रमुख राजनीतिक दल भी तैयार हैं। विपक्ष के कुछ बड़े नेताओं ने तो आमसभाओं और बैठकों में यह बात इशारों-इशारो में कहना शुरू कर दी है कि यदि उनकी पार्टी सरकार में आती है तो प्रदेश के कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ दिया जाएगा। इधर सत्तारूढ़ दल में भी इस चुनौती से निपटने के लिए काम चल रहा है। इस बारे में राज्य सरकार ने भी केंद्र से मश्वरा मांगा था। तब केंद्र ने यहां आंध्र प्रदेश के माडल की तर्ज पर पुरानी पेंशन लाने का सुझाव दिया है। जाहिर है आने वाले दिनों में राज्य सरकार की धुरी में कर्मचारी अमला खास रहेगा।

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