कर्मचारियों जानो अपने अधिकारों को

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अनोखा तीर हरदा। 30 जून को सेवा से रिटायर होने वाले शासकीय कर्मचारियों को एक जुलाई को देय वेतनवृद्धि का लाभ मिलना चाहिये, इस संबंध में कर्मचारियों के बीच चर्चा है। 30 जून को रिटायर कर्मचारियों को निम्नलिखित विधिक आधारों पर, जुलाई में देय, वेतन वृद्धि का पात्र माना गया है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में अधिवक्ता राजेश शर्मा ने यह जानकारी दी।

यह हैं नियम

उन्होंने बताया कि कर्मचारी द्वारा वर्ष भर सेवा करने के पश्चात, सेवा के बदले में मिलने वाले, सेवा लाभ, कर्मचारी के पक्ष में, विधिक/कानूनी अधिकार उत्पन्न करते हैं, उक्त उद्भूत विधिक अधिकार से कर्मचारी को वंचित नहीं किया जा सकता है, ना ही, निषेध किया जा सकता है। अत:, कर्मचारी को जुलाई में मिलने वाले, इंक्रीमेंट से वंचित नही किया जा सकता है। जब तक किसी दूसरे कारण से वेतन वृद्धि को नही रोका गया हो। विधान में ऐसा कोई नियम नहीं है, जो पूर्व में की गई सेवालाभ या वेतनवृद्धि प्राप्त करने के लिए, यह शर्त अधिरोपित करता हो, कि कर्मचारी को एक जुलाई को सेवा में निरंतर रहना पड़ेगा। वेतन में, वेतन वृद्धि प्रदान किया जाना, सेवा की एक शर्त है। वेतन वृद्धि, कलंक रहित सेवा के लिए, एक पारितोषिक है, जो कि एक अधिकार के रूप में परिवर्तित हो जाता है। वेतन वृद्धि प्रदान करने की कालावधि एक वर्ष है। कलंक रहित सेवा पूरे वर्ष देने के पश्चात, शासकीय कर्मचारी, वेतन वृद्धि का पात्र हो जाता है। अक्टूबर 2022 में आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के फैसले को जो कि, सेवानिवृत कर्मचारी के पक्ष में दिया गया था, उसके विरुद्ध केंद्र सरकार यूनियन ऑफ इंडिया की अपील को खारिज कर, फैसले की पुष्टि की गई है। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में, 30 जून को रिटायर कर्मचारी को जुलाई में देय इंक्रीमेंट का पात्र माना है। तथा मध्यप्रदेश शासन द्वारा दायर अपील अभी भी उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है, चूंकि सुप्रीम कोर्ट में संबंधित कर्मचारी/प्रतिवादी द्वारा, सुनवाई करने वाली संबंधित बेंच के संज्ञान में सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच का आदेश नहीं लाया गया होगा। तथा उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में आते ही, मध्यप्रदेश शासन की अपील खारिज होने की पूरी संभावना है, चूंकि खारिज किए गए प्रकरण में विधिक प्रश्न समान थे। असंचयी प्रभाव से इंक्रीमेंट रोकना या अन्य माइनर पैनिशमेंट अधिरोपित करने पूर्व की प्रक्रिया कब दूषित या नियम विरुद्ध हाईकोर्ट अधिवक्ता श्री शर्मा ने बताया कि प्रमुख रूप से दो परिस्थितियों में विभागीय कार्यवाही या लघुशास्ति नियम विरुद्ध होती है। इसमें यदि किसी कर्मचारी के विरुद्ध नोटिस जारी कर यह पूछा जाता है कि क्यों नही उसके विरुद्ध विरुद्ध विभागीय कार्यवाही आरंभ की जाए एवं कर्मचारी द्वारा तथ्यात्मक उत्तर देकर, आरोपों से गुणदोष के आधार पर इंकार किया जाता है। तब विभागीय कार्यवाही हेतु कारण बताओ नोटिस आरोप पत्र नहीं माना जा सकता एवं उक्त नोटिस के आधार पर जांच नहीं की जा सकती है। यदि कारण बताओ नोटिस में आरोपों का उल्लेख हो एवं कर्मचारी द्वारा तथ्यात्मक उत्तर देते हुए आरोपों से इंकार किया जाता है, ऐसी परिस्थिति में बिना नियमित विभागीय जांच के वेतन वृद्धि (माइनर पैनिशमेंट) रोकने की कार्यवाही नहीं की जा सकती। अर्थात इंक्रीमेंट रोके जाने के पूर्व सेवा नियमों के अनुसार नियमित या रेगुलर जांच होनी चाहिए। उसके बिना इंक्रीमेंट रोका जाना अवैध है।

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