कमीशन खोरी और गड़बड़झाला की आशंका बढ़ी
गणेश पांडे भोपाल. वित्तीय वर्ष 22-23 का अंतिम महीने का आखिरी पखवाड़ा चल रहा है. जंगल महकमे में कैंपा फंड और विकास मद की 100 करोड़ से अधिक की राशि आनन-फानन में खर्च करने के लिए मुख्यालय के शीर्ष अफसरों से लेकर डीएफओ तक अपने मातहत मैदानी अधिकारियों-कर्मचारियों पर दबाव बना रहे हैं. कई एसडीओ स्तर के अधिकारियों ने गड़बड़ी की आशंका को जताते हुए शेष राशि खर्च करने से इनकार किया तो पहले डीएफओ ने दबाव बनाया और फिर मुख्यालय में बैठे एपीसीसीएफ पर स्तर के एक अधिकारी ने उन्हें जमकर फटकार लगाई. मैदानी अमले ने साफ कहना है कि कमीशन के फेर में गड़बड़ी करने का दबाव बनाया जा रहा है. शहडोल सर्किल से ऐसी ही शिकायत सुनने को मिल रही है.
प्रधान मुख्य वन संरक्षक मुख्यालय से प्रत्येक वन मंडलों को विकास और कैंपा मद की तीन-चार सौ करोड़ रुपए हर वित्तीय वर्ष में दिए जाते हैं. विकास मद (7882) और कैंपा फंड (9664 & 9667) से फील्ड के अफसरों के चेहरे देखकर दिए जा रहे हैं. यानी मुख्यालय में बैठे बड़े अफसर राशि का वितरण शीर्षासन करने वाले डीएफओ पर अधिक कृपा बरसाते हैं. भले ही उन्हें इतनी बड़ी राशि की दरकार न हो. आवश्यकता से अधिक राशि मिलने पर खर्च करने की हड़बड़ी में गड़बड़ी कर बैठते है. जंगल में सेवा प्रदाता फर्म के संचालकों की माने तो विकास मद और कैंपा फंड के दोनों मद की राशि का 20 से 30 परसेंट कमीशनखोरी में बंट जाता है. वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने में कमीशनखोरी की प्रतिशत 40 तक पहुंच जाती है, क्योंकि इस समय कागजी की घोड़े दौड़ा कर खर्च करने की खानापूर्ति करते आ रहे हैं. हाल ही में मैनेजमेंट कर अनूपपुर पहुंचे डीएफओ भी एक करोड़ से अधिक राशि खर्च करने के लिए अपने मातहतों को कागजी घोड़े दौड़ाने की नसीहत दे रहें है. यहां यह बता दें कि विकास मद की राशि कार्य योजना के क्रियान्वयन अंतर्गत आवंटित की जाती है. जबकि कैंपा फंड की राशि का उपयोग वनीकरण क्षतिपूर्ति ( विभिन्न योजनाओं में मिली जमीन पर वृक्षारोपण) और विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है. दिलचस्प पहलू यह है कि दोनों ही फंड से सबसे बड़ी राशि चैन लिंक, पोल और अन्य सामग्रियों के खरीदने पर खर्च होती आ रही है. खरीदी में बड़े पैमाने पर कमीशन का खेल खेला जाता है. इस खेल में कई आईएफएस अफसर शिकायत की जद में आ गए हैं. कईयों को कारण बताओ नोटिस और आरोप पत्र भी दिए गए है. बावजूद इसके, व बाज नहीं आ रहें है. एक सेवानिवृत्त सीनियर अधिकारी का कहना है कि मैनेजमेंट के आधार पर पोस्टिंग होती है तो इस तरह की शिकायतें और गड़बड़ियां होगी ही.
आखिरी पखवाड़े में करोड़ों खर्च करने का दबाव
एक जानकारी के मुताबिक विकास मद और कैंपा फंड के दोनों मद से अभी तक तकरीबन 100 करोड़ से अधिक राशि खर्च नहीं हो पाई है. हर वीडियो कांफ्रेंसिंग में बजट खर्च नहीं कर पाने के लिए डीएफओ की फटकार भी लगती है किंतु उन्हें तो वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने का इंतजार रहता है. आखिरी सप्ताह में आनन-फानन में खर्च की जाती है. इसका अधिकांश हिस्सा कमीशन बाजी के नाम पर सर्किल से मुख्यालय स्तर तक बंटता है. शिवपुरी वन मंडल में फरवरी तक कैंपा फंड के साढे 7 करोड़ से अधिक राशि खर्च नहीं हो पाई है. शिवपुरी में कैंपा फंड से बड़ी गड़बड़ी होने की खबरें हैं. इस गड़बड़ी को पकड़ने की जब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने कोशिश की तो बजट शाखा से तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया. यहां तक की बजट शाखा का प्रभार देने के लिए उनका इंतजार तक नहीं किया गया. यह भी उल्लेख है कि शिवपुरी कैंपा फंड से चालू वित्तीय वर्ष में करीब 29 करोड़ रूपया दिया गया. इसके अलावा होशंगाबाद वन मंडल भी लगभग ₹6 करोड़ कैंपा मद का खर्च नहीं कर पाया. कटनी में केंपा फंड का चार करोड़ और विकास शाखा का 3 करोड़ रुपया खर्च नहीं हुआ. 2 दर्जन से अधिक वन मंडलों अपवाद स्वरूप छोड़ दे तो सभी वन मंडलों में दो करोड़ से लेकर 4 करोड रुपए तक खर्च नहीं हो पाए हैं. अब आखरी पखवाड़े में आनन-फानन में खर्च करने की एक्सरसाइज हो रही है.
इन पर विशेष कृपा बरसी
शीर्ष अफसरों के सामने हर त्रैमासिक में शीर्षासन करने वाले मैदानी आईएफएस अधिकारियों ने विकास और कैंपा फंड के दोनों मर्दों से जमकर राशि हासिल की. बड़े अफसरों की सबसे अधिक शिवपुरी को कैंपा फंड के दोनों मदों (9664 & 9667) से करीब ₹28 करोड़ से अधिक दिया गया. इसके अलावा शिवपुरी के लिए 9 करोड़ रूपया विकास शाखा से रिलीज किया गया. वनीकरण क्षतिपूर्ति आर्यों की थर्ड पार्टी एसेसमेंट कराया जाए तो डीएफओ और तत्कालीन सीसीएफ दोनों ही जांच की जद में आ जाएंगे.
वन मंडल विकास + कैंप फंड ( अनुमानित करोड़)
होशंगाबाद 42
सिंगरौली 32
देवास 32
सतना 25
खंडवा 22
पन्ना साउथ 20
रायसेन 16
डिंडोरी 18
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अंतिम महीने की शेष राशि
यूं देखा जाए तो वर्ष के अंतिम महीने में लगभग 100 करोड़ राशि खर्च होने से बच गई है. अफसर इस राशि को भी खर्च करने की जुगाड़ कर रहे हैं. जिन वन मंडलों में विकास और कैंपा मद दोनों को मिलाकर 3 करोड़ से अधिक की राशि शेष रह गई है उनमें अनूपपुर, श्योपुर, शिवपुरी, उत्तर बालाघाट, दक्षिण बालाघाट, उत्तर बैतूल, दक्षिण बैतूल,ओबैदुल्लागंज, दक्षिण पन्ना, उत्तर पन्ना, छिंदवाड़ा, दक्षिण छिंदवाड़ा, पश्चिम छिंदवाड़ा, ग्वालियर, होशंगाबाद, धार इंदौर झाबुआ, डिंडोरी, पूर्व मंडला, जबलपुर, कटनी, खंडवा, अनुसंधान एवं विस्तार खंडवा, सेंधवा, रीवा, सतना, सिंगरौली, दमोह, सागर उत्तर, सागर दक्षिण, बड़वाह, गुना, हरदा, ग्वालियर और मुरैना वन मंडल प्रमुख है.
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