खंडवा। देश भर में अपने रचना पाठ से प्रसिद्धि पाने वाले खंडवा के कवि और शायरों ने नवचंडी मंदिर के मंच पर फागुन की फुहार रंगों की बौछार कवि सम्मेलन में अपनी कविताओं से रंग जमाया और गुलाल उड़ाकर रंग पंचमी का उत्सव मनाया। कवि सम्मेलन की शुरुआत हुई रात 9.30 बजे रंजना जोशी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुई। इसके बाद शायर अकबर ताज ने अपना कलाम पड़ा मुझे तो राम के जैसा या फिर लक्ष्मण बना देना
सिया के मन के जैसा मन मेरा दर्पण बना देना, मुझे अंधा बनाया है तो कोई गम नहीं इसका, मेरी संतान को भगवान मगर शरवण बना देना। इसके बाद आए कवि सुनील चौर उपमन्यु ने हास्य का रंग फिजाओं में घोला
रंग उड़ाए खूब मस्ताए, चढ़े नशा तो हो जाए फेल मिलकर सब कहे ऑल इज वेल जैसे गीत सुनाकर श्रोताओं को खूब हसाया। वीर रस के कवि संतोष चौरे चुभन ने भारत मां के रक्षक सैनिकों की प्रशंसा करते हुए अपनी कविता पढ़ी कोई मजहब नहीं रहता सरहद पर लाल रहते हैं, भारत मां के बेटे बनकर ढाल रहते है, कभी मत तोलना उन्हें मजहब की तराजू से जो ऐसा काम करते हैं उन्हें दलाल कहते है।ं
इसके बाद दिल छू लेने वाली रिश्तो की कविता सुना कर सबकी आंखों में नमी लाने का काम किया गोविंद गीते ने, उन्होंने कहा किसी के वास्ते सीने में हमदर्दी नहीं होती अगर यह दिल नहीं होता तो चाहत भी नहीं होती,
निकाला घर से जब बेटों ने तो मां-बाप ये बोले कहां जाते बुढ़ापे में अगर बेटी नहीं होती। इसके बाद आए श्रंगार रस के कवि संतोष तिवारी ने अपनी शुरुआत करते हुए कहा धीरे-धीरे कदम प्यार में रखना बहुत जरूरी है
तन रंगने से पहले मन को रंगना बहुत जरूरी है, तहरीर ओ तकरीर हमेशा प्रेमी को उलझाते हैं मन पढऩा हो तो आंखों को पढऩा जरूरी है। इसके बाद उन्होंने अपने मुक्तक और कविताएं सुनाकर माहौल में प्रेम का रंग घोल दिया। इसके बाद आए शहर के मशहूर शायर सूफियान काज़ी ने अपने बेहतरीन शेर पेश करते हुए कहा कुछ में इतना जुनून होता है पा के मंजिल सुकून होता हैै, पहले होते थे खून के रिश्ते अब तो रिश्तो का खून होता है।
तमन्ना जिसकी थी मंजिल वो पा चुका हूं मैं, तेरी पहुंच से बहुत दूर जा चुका हूं मैं मुझे ना दीजिए खैरात अब उजालों की कि अपने आप को सूरज बना चुका हूं मैं। कवि सम्मेलन के सूत्रधार प्रफुल्ल मंडलोई ने संचालन करते हुए सभी कवियों का परिचय सदन को दिया और रंग पंचमी का धार्मिक महत्व बताया। उन्होंने अपनी कविता पढ़ी
मेरा मंदिर तेरी मस्जिद इसका गुरुद्वारा उसका चर्च क्या फर्क पड़ता है अगर इरादे नेक है, रास्ते अलग-अलग सही मंजिल तो एक है।
मुख्य छ: कवियों के साथ ही कार्यक्रम के प्रारंभ में शहर के नवोदित कवि दीपक चाकरे चक्कर की पुस्तक का विमोचन भी महंत बाबा गंगाराम एवं अतिथियों के कर कमलों से हुआ। दीपक चाकरे के साथ ही नितिन बिवाल, महेश मूलचंदानी, ओमप्रकाश चौरे ने अपनी एक एक कविता सुनाई। इस अवसर पर डॉक्टर दिनेश लोवंशी, लव जोशी, प्रशांत बारचे, संतोष मोटवानी, राकेश दशोरे, गणेश वर्मा, शानू वर्मा,गणेश भावसार,रजत सोहनी,विवेक माहेश्वरी,सत्येंद्र सोहनी सहित बड़ी संख्या में शहर के काव्य प्रेमियों ने रात 12 बजे तक चले कवि सम्मेलन का आनंद लिया।
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