हरदा के सोने की नहीं है कोई बखत

हरदा जिले के ग्रामीण अंचलों में स्वर्ण आभूषणों का प्रचलन आज भी अन्य क्षेत्रों की तुलना अधिक देखा जाता है। यहां धनतेरस व दीपावली के अवसर पर स्वर्ण आभूषणों की खरीददारी भारी मात्रा में होती है। लेकिन हरदा से खरीदे गए सोने को प्रदेश के ही अन्य शहरों में काफी हल्का और मिलावटी सोना माना जाता है। यहां के सोने को रतलाम, इंदौर जैसे स्थानों पर तो ७० से ७५ प्रतिशत ही शुद्ध सोना माना जाता है। वैसे तो देश में हॉलमार्क की अनिवार्यता कानून लागू हो चुका है, लेकिन देश के जिन जिलों में फिलहाल यह सुविधा नहीं है, उसमें हरदा भी शामिल है। जिसका पूरा लाभ उठाते हुए यहां के सराफा व्यापारी बिना बिल पर धड़ल्ले से मिलावटी सोना बेचने का कारोबार कर रहे हैं। कुछ व्यापारी तो कोटेशन बिल के साथ ही माल बिक्री कर देते हैं। जिसके चलते उपभोक्ता ठगा रहा है।

अनोखा तीर, हरदा। भारत सरकार द्वारा 1 जून 2022 से वैसे तो पूरे देश में सोना बेचने से पहले हॉलमार्क कराना अनिवार्य किया गया है। लेकिन फिलहाल हरदा जिला उन जिलों में शामिल है, जहां हॉलमार्क की सुविधा उपलब्ध नहीं है। जिसके चलते कुछ गिने-चुने व्यापारियों को छोडक़र अधिकांश व्यापारी बिना हॉलमार्क वाला मिलावटी सोना बिक्री कर फायदा उठा रहे हैं। चूंकि हरदा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी स्वर्ण आभूषणों का बढ़-चढक़र प्रचलन है। ऐसी स्थिति में यहां के कुछ सराफा व्यापारी ही रतलामी, जलगांव या हॉलमार्क वाला सोना रखते हैं। बाकी अधिकांश व्यापारी बिना बिल के बगैर हॉलमार्क के जो स्वर्ण आभूषण बेचते हैं, उसका प्रदेश के अन्य शहरों में काफी कम दाम आंका जाता है। अन्य क्षेत्रों में माना जाता है कि हरदा का सोना काफी मिलावटी होता है। जिसमें 70 से 75 प्रतिशत ही असली सोना माना जाता है। यही कारण है कि जब हरदा से खरीदा गया सोना उपभोक्ता प्रदेश के अन्य किसी शहरों में बिक्री के लिए ले जाता है तो वहां के व्यापारी पहले गलाने के बाद उसकी शुद्धता परखने की बात करते हैं। यहां अधिकांश व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को कच्ची पर्ची या कोटेशन बिलों के माध्यम से आभूषणों की बिक्री कर देते हैं। व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को बताया जाता है कि पक्का बिल लेने पर उन्हें 3 प्रतिशत का जीएसटी देना होगा। चूंकि हरदा क्षेत्र में अधिकांश ग्रामीण उपभोक्ता एक-आधा तोला नहीं, बल्कि 100-200 ग्राम जैसे वजनी आभूषण खरीदते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें 3 प्रतिशत लगने वाला जीएसटी जहां भारी लगता है, वहीं व्यापारी उन्हें पक्के बिल की खरीदी पर इनकम टैक्स का डर भी भर देते हैं।

यहां उल्लेखनीय है कि पक्का बिल देने की स्थिति में व्यापारियों को स्पष्ट लिखना होता है कि संबंधित आभूषण में शुद्ध सोना कितना है और टांका, चपड़ा, मीना आदि मिलावट कितनी है। ऐसी स्थिति में उसे शुद्ध सोने के ही वास्तविक दाम लेना होता है। जबकि वह कच्चे बिल में उपरोक्त तमाम मिलावट सहित वजन का मूल्य सोने के दाम पर वसूल करता है। हॉलमार्क में भी सोने की पूर्ण शुद्धता की गारंटी होती है। चूंकि हॉलमार्क पर 6 डिजिट वाला नंबर दर्ज होता है। जिसके आधार पर कोई भी उपभोक्ता भारत सरकार द्वारा सोने की शुद्धता जांचने वाले आईएसएफ एप के माध्यम से हॉलमार्क पर दर्ज संख्या डालकर अपने मोबाईल से भी उस सोने की वास्तविकता का पता लगा सकता है। यहां उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता अक्सर स्वर्ण आभूषणों की खरीदी इसलिए भी करता है कि वह विषम परिस्थिति में अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तत्काल यह स्वर्ण आभूषण बैंकों में गिरवी रखकर या बिक्री करके नगद राशि प्राप्त कर सकता है। परंतु ऐसे निवेशकर्ताओं को तब भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है, जब वह उन आभूषणों को बेचने के लिए जाता है तो सराफा व्यापारी उसके आभूषणों में 70 या 75 प्रतिशत ही शुद्ध सोना होना बताता है। महज 3 प्रतिशत टैक्स के कारण उपभोक्ता 30 प्रतिशत तक शुद्ध सोने का नुकसान करते हुए ठगा महसूस करता है। इतना ही नहीं,

बल्कि उसकी बगैर बिल से खरीददारी पर सरकार से भी टैक्स के रूप में यह व्यापारी धोखाधड़ी करते हैं। कहने का आशय यह है कि हरदा में सराफा व्यापारी बिना बिल के कारोबार से जहां सरकार को चूना लगा रहे हैं, वहीं उपभोक्ताओं के साथ भी ठगी का कारोबार कर रहे हैं।

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