प्रहलाद शर्मा
मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान एक एसा चेहरा उभरकर आए जो न केवल आम जनता की पसंद बन गए, बल्कि विपक्ष के पास भी उनका कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा है। प्रदेश में लंबे समय मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड जहां उन्होंने अपने नाम दर्ज कर लिया है, वहीं अपनी नीतियों के बलबूते पर निरंतर दो बार भाजपा की सरकार पूरे बहुमत से वापस लाने का करिश्मा भी उन्होंने कर दिखाया है। यही कारण था कि कांग्रेस में असंतोष का अलावा फूटने के बाद पुन: सत्ता में आई भाजपा के लिए शिवराज सिंह चौहान ही ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की पहली पसंद बनकर उभरे। बतौर पत्रकार मैंने मध्यप्रदेश में स्व.अर्जुन सिंह, स्व.मोतीलाल बोहरा, स्व.सुंदरलाल पटवा, दिग्विजय सिंह, उमा भारती, स्व. बाबूलाल गौर, शिवराजसिंह चौहान तथा कमलनाथ और फिर शिवराजसिंह चौहान का मुख्यमंत्री काल देखा और देख रहा हूं।
शिवराजसिंह चौहान से पहले अगर जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच सीधे संवाद रखने वाला कोई मुख्यमंत्री देखा था तो वह है दिग्विजय सिंह थे। अपने दस साल के मुख्यमंत्री कार्यकाल में दिग्विजय सिंह ही पूर्व के भाजपा और कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों में एक एसा नाम रहा है जो सीधे आम जनता के बीच पहुंचकर उनसे संवाद करते थे। आज भी पूरे प्रदेश में दिग्विजय सिंह के चाहने वालों की एक लंबी सूची है। दिग्विजय सिंह ने सत्ता में रहते हुए सत्ता का विकेंद्रीकरण और कई प्रकार के प्रयोग भी करके देखा था। यह अलग बात है कि तमाम प्रकार के प्रयोगों और जनता के बीच लोकप्रियता के बावजूद दिग्विजय सिंह बिजली और सडक़ के मामले में असफल साबित होते हुए जनता का विश्वास खो चुके थे। इन्हीं दो मुद्दों को लेकर भाजपा ने उन्हें मिस्टर बंटाढाल की संज्ञा दी। शिवराज सिंह चौहान ने दिग्विजय सिंह शासनकाल के उन मुद्दों का सबसे पहले आंकलन किया जिसके चलते जनता उनसे विमुख हुई थी। वहीं नवाचारों के माध्यम से आम जनता के बीच जो पैट शिवराजसिंह चौहान ने बनाई वह इससे पहले प्रदेश का कोई मुख्यमंत्री नहीं बना पाया। विचार, वाणी और आव-भाव से शिवराज सिंह चौहान जैसे मुख्यमंत्री बनने से पहले थे वैसे ही आज भी नजर आते हैं।
ग्रामीण अंचल और कृषक परिवेश में पले बढ़े शिवराजसिंह चौहान के रक्त में कृषि, किसान, गरीब, धरती, कर्मकला और विस्तार की कामनाएं हमेशा ही नजर आती रही है। वह पंच तत्वों को अक्षुण्य रखते हुए धरती, जल, अग्रि, आकाश और पवन को साक्षी मानकर जैसे अपने कर्मों को अंजाम देते हैं। अक्सर लिखा पढ़ा जाता रहा है कि शिवराज ने गरीबों के दुख दर्द में जैसे पीएचडी कर रखी है। तो इसका उदाहरण भी उनके कार्य और व्यवहार से देखने को मिलता रहा है। मध्यप्रदेश देश का ऐसा इकलोता राज्य है, जहां बीमारी के दौरान इलाज के लिए सर्वाधिक आर्थिक सहायता मुख्यमंत्री सहायता कोष से लोगों को दी जाती है। जच्चा बच्चा से लेकर अंतिम संस्कार तक की चिंता करते हुए उन्होंने अपनी योजनाओं को मूर्तरूप दिया है। किसानों और गरीबों के हितार्थ चलाई जाने वाली जनकल्याणकारी योजनाओं का ही परिणाम था कि पंद्रह माह के कांग्रेस शासनकाल में हमने लोगों को शिवराजसिंह की कमी की चर्चा करते सुना है। यही कारण भी रहा है कि सत्ता परिवर्तन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के तमाम आरोप प्रत्यारोप के बावजूद दल बदल कर आने वाले नवागत भाजपाईयों ने शिवराज के सहारे ही चुनावी समर में अपनी नैया पार लगाई थी। आज चाहे विधानसभा चुनाव को एक वर्ष का समय शेष है, लेकिन शिवराजसिंह चौहान हमेशा ही चुनावी मोड में नजर आते हैं।
पिछले पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में जिस प्रकार उन्होंने सीधे जनता के बीच पहुंचकर जनमत खंगालने का प्रयास किया, उसी के परिणामस्वरूप वह सरकारी मशीनरी के प्रति सख्त नजर आने लगे। जन कल्याणकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत से बाकिफ होने के बाद शिवराजसिंह ने अब सख्त लहजे में कहना शुरु कर दिया है कि सफलता सरकारी चश्मे से नहीं, बल्कि जनता की नजरों से नजर आना चाहिए। आज चुनावी मोड में आ चुकी राजनीतिक पार्टियों के सामने जनता को रिझाने के लिए मुद्दों के साथ-साथ शिवराजसिंह का विकल्प भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। सच कहा जाए तो जनता के बीच अपनी उपस्थिति का एहसास कराने के लिए राजनीति आरोप-प्रत्यारोप चाहे कोई भी पार्टी लगाती रहे, लेकिन सच यही है कि शिवराज का तोड़ किसी को नजर नहीं आ रहा है।
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