बहुत व्यथित है मन
कैप्टन निर्मल शिवरंजन तुम्हारा जीवन बहुत महत्वपूर्ण था देश के लिए, लेकिन यह क्या हो गया? सुना है आप बहुत बड़े तैराक थे।समुद्रतल तक चले जाते थे लेकिन बरसात की एक नदी निगल गई कैप्टन को। मैंने न तो पहले कभी देखा था, न कभी मिला कैप्टन से। लेकिन पिछले 68 घण्टे की मशक्कत के बाद मिली भी तो उनकी निष्प्राण देह।
ये 68 घण्टे हमारे लिए कठिन परीक्षा की घड़ी थे। मेरा मस्तिष्क इस दौरान कई प्रश्न खड़े कर रहा था। क्या मौत का जबड़ा सोचने समझने की शक्ति को शून्य कर देता है? क्या कैप्टन के लिए यह जबड़ा इस अनजान जगह पर उन्हें खींच कर ले आया था? हम सब जानते हैं, समझते हैं, सुनते हैं, देखते हैं, फिर आखिर उस वक्त क्या हो जाता है जब हम स्वयं अपने जीवन के लिए इसे समझने की जरूरत होती है? कैप्टन भी बस यहीं चूक गए। अभी तो बहुत कुछ करना था देश के लिए कैप्टन को। लेकिन पल भर में सब समाप्त हो गया।
विगत 20 दिन से स्वास्थ्य कहीं न कहीं दुर्बलता दे रहा था मुझे,बहुत कुछ छूट भी रहा था इस कारण। लेकिन यह ऐसी घटना थी कि पिछले 68 घण्टे शरीर को याद ही न रख सका मैं।
सेना के अधिकारी बता रहे थे कि समय का पाबंद यह कैप्टन समय की बलि चढ़ गया। खतरों के खिलाड़ी निर्मल शिवरंजन मौत के जबड़े को नहीं भेद सके। उफ्फ..
देश ने एक युवा योद्धा खो दिया।
कैप्टन एक प्रशिक्षण हेतु पचमढ़ी में थे। तीन माह पहले विवाह हुआ था। पत्नि भी लेफ्टिनेंट। रक्षाबंधन पर जबलपुर गए थे। लौट कर वापस आ रहे थे तो मृत्यु ने पीछा करना शुरू कर दिया। जिस मार्ग से जाना था वहां नदी का पानी पुल पर था। समय की पाबंदी थी सुबह 6 बजे तक उपस्थिति दर्ज कराना थी। किसी ने सलाह दे दी वैकल्पिक रास्ते की। बरेली से पिपरिया के सीधे रास्ते के बजाए बाड़ी से नसीराबाद नर्मदा पार कर आगे बढ़े। रात 8.30 बजे रात के अंधेरे में अम्बोर नदी पर विकराल जलराशि को समझ ही न सके। फिर क्या हुआ होगा? जल की शक्ति सैनिक के विश्वास पर भारी पड़ गई,कैप्टन वही कर बैठे जो नहीं करना चाहिए था। पत्नी के साथ साझा की गई लाइव लोकेशन बन्द हो गई सम्पर्क समाप्त हो गया। अंतिम लोकेशन उफनती हुई अम्बोर नदी के पुल पर थी जिस पर उस समय 15 फिट से ज्यादा पानी था। सुबह परिजनों ने चिंता जताई। हम सब सक्रिय हुए लेकिन 14,15,16 अगस्त को हो रही बरसात व अम्बोर नदी के आगे नर्मदा का अवरोध, केवल जल ही जल था बाकी कुछ नहीं। बड़े-बड़े वृक्ष जलमग्न थे। विशाल जलराशि में हम केवल चिड़िया की तरह उड़-उड़ कर पंख फड़फड़ा रहे थे। राज्य डिजास्टर मैनेजमेंट के डीसी श्री राजेश जैन, माखननगर के टीआई हेमन्त श्रीवास्तव सहित पूरी टीम 60 घण्टे का समय बीत चुका था न पानी कम हो रहा था न हौंसले, हमने नर्मदा पर से सहायता ली रायसेन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री अमृत मीणा साहब और बुदनी एसडीओपी श्री शशांक गर्ग से, सेना के मेजर रमेश और उनके साथी सभी तो प्रयासरत थे। अंततः नर्मदा का रौद्ररूप कम होना शुरू हुआ तो अम्बोर आगे बढ़ी। पानी उतरा तो, लेकिन फिट में अभी भी नापना सम्भव नहीं था। आखिर नदी के गहरे पानी मे डिजास्टर टीम के आंकड़े से कुछ टकराया। यह कैप्टन की होंडा कार थी। निकाली तो ड्राइवर साइड का कांच खुला था, मगर कैप्टन नहीं थे। वे भी आखिर जांबाज सैनिक थे, लड़े तो होंगे ही मृत्यु से सामना करते हुए।कार मिल चुकी थी। दुर्घटना हुई है यह पुष्टि हो चुकी थी।
कैप्टन की देह कहाँ है? अब तलाश शुरू हुई। आगे वेग से बहती नर्मदा थी। विशाल जनसमूह एक्टर हो गया था।यहां देखो, वहां देखो का शोर शुरू हो चुका था। जाल डालकर नदी के तल में खोज शुरू हुई। लेकिन अनुभव के आधार पर मेरा मन कुछ और ही कह रहा था। 36 वर्ष में अनेक बार ऐसे दुर्योग बने थे। बस वही अनुभव था। अचानक मैंने होमगार्ड की बोट ऑपरेटर रामनाथ वर्मा से कहा चलो मेरे साथ। साथ में डिजास्टर के स्वयंसेवक उमेश कहार, राकेश कहार, उमेश पिता भभूति कहार, और होमगार्ड सैनिक प्रदीप को साथ ले मैं बाकी लोगों को उनका काम करता छोड़ एक संभावना लिए अनुमानित मिशन पर चल दिया। सामने चुनौती थी और साथ में विश्वास था। नदी के हर मोड़ पर पचास-पचास मीटर के ब्लॉक इमेज किये और सर्चिंग में जुट गए। एक जगह सियारों का झुंड दिखा। आशंका हुई तो वहां देखा लेकिन कोई चिन्ह नहीं था कैप्टन का। तीन-चार किलोमीटर तक चप्पा-चप्पा छाना। आगे नर्मदा थी। अब दूसरे तट को देखना था। तीन घण्टे बीत चुके थे। नदी में बबूलों के झुरमुट आये। न मालूम मुझे क्यों लगा यहां कुछ होना चाहिए। एक-एक बबूल को देखना था। बस आगे बढ़ रहे थे तलाश करते हुए। तभी मैं ठिठका, एक दुर्गंध का झौंका मेरी नाक को महसूस हुआ। रुको…। बोलते ही साथी मेरी ओर देखने लगे। सर क्या हुआ…। महसूस करो यह गंध कैसी है? जी सर गंध तो है।तभी राकेश जो मछुआरा है ने इधर-उधर देखा और किसी विशेष प्रकार की मछलियों की उछाल पर उसकी दृष्टि गई। सर ये मछलियां भी उछल रही हैं जरूर यहीं कुछ है। हम सतर्क हुए। बारीकी से सारे बबूल देख रहे थे। इस बीच उमेश की नज़र किनारे तरफ पड़ी। सर देखिए वह क्या है…एक अस्पष्ट सी वस्तु को देख उसने कहा। हमने बोट उधर बढ़ा दी। एक बड़े से बबूल की घनी शाखाओं के पीछे जल को छूता हुआ मानव शव था वह। नजदीक गए। हमने देखा वह कैप्टन निर्मल शिवरंजन की निष्प्राण देह थी।अत्यंत फूली हुई। बाकी वर्णन मैं नहीं लिख सकता। नाव में किसी ने कहा सर सफलता मिल गई। मैं खामोश था कैप्टन को देखते हुए। कार्य पूर्ण हुआ था लेकिन सफलता कैसे कहूँ इसे।बस यंत्रवत मैंने एसपी साहब को सूचित किया। पुल से एक बोट और बुलवा कर कुछ लोगों को भेजने हेतु निर्देशित किया। ताकि उस देह को उठा सकें।
कैप्टन तो जा चुके थे अनन्त यात्रा पर। देह लेकर जब हम बाहर आये हजारों की भीड़ में केवल सन्नाटा था।हमारी आंखे नम थी। उन्हें वाहन पर चढ़ा रहे थे तभी एक नारा गूंजा जो किसी ग्रामीण ने लगाया था – भारत माता की जय। मैने सैल्यूट किया हाथ जोड़े। कैप्टन की अंतिम यात्रा में एक कांधा मेरा भी ऐसे लगेगा कभी नहीं सोचा था मैंने।
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