सम्मानीयजनो/ मित्रो, आज मैं आप लोगो से अपनी व्यक्तिगत जीवन यात्रा की कुछ जानकारी साझा करने जा रहा हूं । हो सकता है यह आपको रास नही भी आये। चूंकि यह मेरी व्यक्तिगत जानकारी है। मेरा जन्म अविभाजित होशंगाबाद जिले वर्तमान हरदा जिले के ग्राम डोमनमऊ में हुआ था। तीसरी कक्षा तक की शिक्षा इसी गांव में हुई । चूंकि इससे अधिक की व्यवस्था यहा नही थी तो मसनगांव और फिर पिडगांव, कमताडा के बाद कक्षा 8 से कालेज तक हरदा में ही अध्ययन किया। मेरे पिता स्वर्गीय गेंदलालजी दोनो आखों से निरंजन थे। मां स्वर्गीय श्रीमती कमला बाई वास्तव में त्याग तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ती थी। मै अपने परिवार का सबसे बड़ा पुत्र था। कक्षा आठवी में पढ़ाई के दौरान ही मैंने सुबह समाचारपत्र वितरण का कार्य हाकर के रूप में शुरू कर दिया था। कक्षा 9 वीं में पढ़ाई दौरान आपके पत्र कालम के लिए स्थानीय समस्याए लिखकर अखबारो में भेजने लगा। कभी प्रकाशित होती कभी नही होती। इसी के चलते लेख और लघु कथा लिखकर भेजना शुरू किया। हिन्दुस्तान प्रकाशन की बालको की पत्रिका सुमन सौरभ में मेरी एक कहानी चयन हुई। जिसकी जानकारी प्रेस ने पत्र के माध्यम से देते हुए मनीआर्डर द्वारा 60/- प्रोत्साहन पुरस्कार भेजना भी लिखा था। 60/- महीने में अखबार बांटने वाले बालक के लिए एक कहानी के 60/- मिलना 1981 में बहुत बड़ी बात थी। अपने सहपाठियो को बड़े उत्साह से यह पत्र दिखाते हुए फूला फूला फिर रहा था। इसी दौरान अखबार के अधबीच कालम के लिए भी एक लेख स्वीकृत हो गया। अखबार ने भी प्रोत्साहन पुरस्कार भेजा। पहले वाले 60 रूपए को लेकर दोस्तो की कार्य योजना बनने लगी कि किस प्रकार खर्च किए जायगे और क्या क्या किया जाना चाहिए। शायद इतनी मंत्रणा तो आजकल देश और प्रदेश के वार्षिक बजट को लेकर नही होती होगी। इतनी उन 60/- को लेकर की गई । समोचा, पोहा, जलेबी सब 30 पैसे नग मिलते थे। टाकीज की टिकट 1 रूपया 35 पैसे थी। खेर इन 60/- रूपयो ने मेरे अंदर ही नही बल्कि मेरे सभी साथियो को इतना उत्साहित कर दिया की सब मुझे कुछ न कुछ लिखने के लिए प्रेरित करने लगे। स्कूल में छात्र और शिक्षक सब पता नही मुझे वास्तविक नाम के बजाय शास्त्री बोलते थे। मुझे आज तक पता नही कि मेरा यह नामकरण कब कैसे और किसने किया था। लेकिन कालेज तक यही उप नाम चलता रहा। इसी दौरान हरदा के ही वरिष्ठ पत्रकार डाक्टर चन्द्रमोहन बिर्ला से मुलाकात हुई। उन्होंन मुझे भोपाल से प्रकाशित साप्ताहिक मध्य भूमि अखबार के लिए खबरें लिखने की बोला। 1985 में इस अखबार के लिए समाचार लिखने का कार्य करने लगा। सन् 1986 में हरदा के विधायक व प्रदेश सरकार के मंत्री विष्णु राजौरिया जी हरदा प्रवास पर आये। डाक्टर चन्द्रमोहन बिर्ला साहब के घर पर ही पहली बार श्री राजौरिया जी से सीधे तौर पर मुलाकात हुई। उनके साथ आये वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया जी से उन्होंने परिचय कराया। डाक्टर बिर्ला ने बताया कि यही लड़का अपने अखबार के लिए समाचार भेजता है। हरदेनिया जी मध्य भूमि अखबार के सम्पादक थे। उन्होने कहा बेटा तुम्हारे समाचारो में व्यंग्य का पुट होता है। तुम कोई स्थानीय पात्र चुनकर व्यंग्य कालम लिखो। मै तुम्हारे नाम से प्रकाशित करूंगा। बस फिर यही से शुरू हुई मेरी पत्रकारिता की अधिकृत यात्रा। उसी दिन शाम को हरदा के घंटाघर चौक पर मंत्री विष्णु राजौरिया की एक जनसभा हुई थी। जिसकी अध्यक्षता सम्पादक श्री लज्जाशंकर हरदेनिया जी द्वारा की गई थी। मैंने अपने जीवन का पहला व्यंग्य लेख इसी जनसभा पर केंद्रित करते हुए लिखा था। बड़ा जोखिमपूर्ण काम था यह। जिस मंत्री ने मुलाकात कराई, जिस सम्पादक ने अपने अखबार में कालम शुरू करने के साथ लेखन का अवसर दिया, उन्ही के कार्यक्रम को लेकर व्यंग्य लिखना। मतलब सीधे तौर पर आयोजन की खामियो पर कटाक्ष करते हुए खुद के लिए आ बेल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ करना था। लेकिन धन्य है उस समय के नेता और सम्पादक। जिन्होंने मेरे लेख की सराहना भी की और अखबार में मेरे नाम से प्रकाशित किया। हरदा के पाठो के लिए प्रहलाद शर्मा का व्यंग्य कालम – काका भतीजा। हा इसी नाम से शुरू हुआ था मेरा यह कलाम। इसे प्रकाशन के साथ श्री हरदेनिया जी ने एक पत्र लिखकर मेरा उत्साह वर्धन भी किया था। समाचार और इस व्यंग्य कालम के चलते ही एक दिन मैं भोपाल हरदेनिया जी के पास पहुंच गया। ई 4 नार्थ टीटी नगर भोपाल। आज भी मुझे भोपाल का यही एकमात्र पता मौखिक रूप से याद है। सुबह का समय था। हरदेनिया जी के घर पर बाहर लान में दो कुर्सी रखी थी। एक पर स्वयं हरदेनिया जी और दूसरी पर एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठे थे। मैने दोनो के चरण स्पर्श किए और पास ही लान की दुबा पर जाकर बैठ गया। हरदेनिया जी ने मेरे बारे में बताते हुए मुझसे पूछा इन्हें पहचानते हो। मैने ना में गर्दन हीला दी। तब उन्होने बताया कि यह दैनिक जागरण के मालिक गुरूदेव गुप्त जी है। इसी के साथ उन्होंने कहा इस बच्चे को अपने अखबार से जोड़ों, अच्छा लिखता है। तभी गुरूदेव गुप्त जी ने वही रखे जनसत्ता अखबार के पन्ने के उपर की एक चिन्दी फाड़कर उस पर सदन के नाम मुझे अखबार से जोड़ने की लिखकर मुझे थमा दी। फिर पूछा जागरण प्रेस देखी है? मैंने फिर मना में गर्दन हीला दी। कैसे आये हो यहा तक? मैने कहा पैदल। रेल्वे स्टेशन से पैदल आये हो ? जी। क्यो टैम्पो से आ जाते? वह 75 पैसे ले रहा था यहा तक के तो पूछते पूछते चला आया। दोनो ने आश्चर्य चकित होकर मेरी तरफ देखा और फिर कहा ठीक है बैठ जाओ। कुछ समय पश्चात गुरूदेव जी गुप्त ने कहा चलो, और मैं उनके साथ चल दिया। बाहर एक कार खड़ी थी जिसमे उन्होंने मुझे भी अपने पास बैठा लिया। रास्ते में मेरे परिवार और हरदा के बारे में पूछताछ करते रहे। प्रेस पहुंच कर उन्होंने चपरासी के साथ मुझे भेजते हुए कहा इसको सदन बाबू से मिलवा दो। बस यहा से फिर मेरी दैनिक जागरण में शुरूआत हो गई। आंचलिक पत्रकार के तौर पर मुझे कागज, पेन और लिफाफे के लिए 150/- मिलने लगे। इसी के चलते मेरा जलोदा की तोप से व्यंग्य कालम दैनिक जागरण में भी चलने लगा। वही सन् 1993 मैं इन्दौर का साध्य दैनिक अपनी दुनिया से भी जुड़ गया। इस अखबार में बेखौफ खबरो के प्रकाशन और काका भतीजा कालम के माध्यम से मालवा और नीमाड क्षेत्र में मेरा लेखन सराहा जाने लगा। नर्मादचलं में क्षेत्रीय भाषा में खबरे लिखने और व्यंग्यात्मक शैली में समाचारो के कारण पाठको के बीच पहचान कायम हुई। सन् 1995 में साप्ताहिक दैनिक अनोखा तीर समाचार पत्र की शुरुआत की। हरदा और आसपास के गांव शहर में लोगो का एक पठनीय अखबार बन चुके अनोखा तीर को 1998 में एक राजनैतिक घटनाक्रम में चुनानी सर्वे प्रकाशन के बाद बंद कर दिया। इसी दौरान हरदा स्वतंत्र जिला बन गया। दैनिक जागरण का ब्यूरो का दायित्व निभाते हुए बैतूल, इटारसी और खंडवा जिले के समाचारो के संपादन का कार्य किया। 2002 सर्वश्रेष्ठ ब्यूरो के रूप में मुझे सम्मानित भी किया गया। सन् 2005 में दैनिक जागरण ने मध्यप्रदेश का प्रबंधक बनाकर भोपाल में बैठा दिया। सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के जिलो का भ्रमण वहा की पत्रकारिता से सीधे साक्षात्कार और व्यापक तौर पर अखबार के प्रबंधन का अनुभव हासिल हुआ। 2010 में दैनिक जागरण से स्वैच्छिक सेवानिवृत होकर वापस हरदा आ गया। किन्तु भोपाल में ही अपने एक साथी के कहने पर एल एन स्टार समाचार-पत्र की शुरुआत कराने का दायित्व फिर वहन कर लिया। 40 पृष्ठ के इस अखबार का लोकार्पण कराने और एक वर्ष की सेवाये देने के बाद वापस हरदा लौट आया। अब समाचार-पत्र में कार्य करने या पत्रकारिता करने की कोई इच्छा नही थी। लेकिन वर्षो पुराने वरिष्ठ साथी यहां यह शब्द इसलिए प्रयोग कर रहा हूं कि वह हमेशा अच्छे मित्र के तौर पर ही व्यवहार करते आये ऐसे मित्र सुरेश लोहाना, वरिष्ठ पत्रकार महेश कौशिकजी, वरिष्ठ चिंतक गौरीशंकर मुकातीजी की प्रेरणा और सहयोग से दैनिक अनोखा तीर अखबार की शुरुआत की गई। 5 जून 2011 को लोकार्पित अनोखा तीर आज भारत सरकार और प्रदेश सरकार की सूची में शामिल होने के साथ ही पाठको की पसंद बन चुका है । इसी के साथ मेरी पत्रकारिता का यह सफर बीते 32 वर्षो से चलता आया। आपका स्नेह, प्रेम, सहयोग मिलता गया और मेरी जीवन गाड़ी चलती रही। उम्मीद करता हूं कि जीवन का शेष समय भी आपके इसी प्रेम के वशीभूत होकर कट जायेगा। धन्यवाद । जय हिंद ।
आपका स्नेह पात्र – प्रहलाद शर्मा