सर्वदमन पाठकजी
दैनिक अनोखा तीर परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि
प्रहलाद शर्मा
कल देर रात वरिष्ठ पत्रकार साथी केडी शर्मा जी और जगदीश द्विवेदी जी की सोशल मीडिया पर पोस्ट के माध्यम से दुखद समाचार मिला कि आदरणीय सर्वदमन पाठक जी अपने नश्वर शरीर को त्याग कर देवलोक की यात्रा पर चले गए। इस खबर ने हृदय को गहरा आघात पहुंचाया। लंबे समय तक उनके सानिध्य में काम करने का अवसर मिला। हमेशा ही निष्कपट भाव से चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान के साथ वह मुझे प्रह्लाद जी कह कर ही संबोधित किया करते थे, जबकि वह मेरे पिता तुल्य थे। दैनिक जागरण मैं बतौर ब्यूरो कार्य करने दौरान या फिर भोपाल में पदस्थापना दौरान वह हमेशा मेरे लेखन और प्रांतीय व्यवस्था के संचालन में कार्य करने की सराहना करते हुए हौसला अफजाई करते थे। बेहद शालीन लेखन शैली के धनी पाठक जी को वैसे तो मैंने कभी भी आक्रोशित होते नहीं देखा था, लेकिन निष्कपट भाव से कार्य करने वाले व्यक्ति पर जब अकारण कोई आक्षेप लगाता है तो निश्चित ही वह उद्वेलित ओर दुखी हो जाता है। कल उनके स्वर्ग लोक गमन की खबर के बाद मस्तिक पटल पर उनके साथ की अमिट यादें किसी चलचित्र की भांति एक-एक करा आती गई। वह शाम को ऑफिस के बाहर लगे ठेले पर खड़े होकर उनके साथ पोहे खाना, चाय पीना और दफ्तर में बैठकर स्थानी स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की खबरों पर चर्चाएं करना सब कुछ याद आता जा रहा था। इसी दौरान उनके दुखी और द्रवित होकर अचानक घर चले जाने का वह वाक्या भी याद आ गया। कुछ ब्यूरो कार्यालयों में रिपोर्टरों की नियुक्ति की जाना थी, वही भोपाल प्रांतीय संपादकीय विभाग में भी नियुक्ति करना था। आदरणीय राजीव मोहन गुप्त जी ने मेरे इस प्रस्ताव पर सहमति देते हुए इसके लिए एक चयन समिति बनाकर नियुक्ति करने की बात कहीं। उस समय दिनेश दीनू जी संपादक हुआ करते थे, तो हमने दीनू जी, पाठक जी, राजकुमार अवस्थी जी और मैं इस तरह चार लोगों की चयन समिति बनाकर विज्ञापन के माध्यम से बायोडाटा आमंत्रित किए थे। जो बायोडाटा आए थे उनके अनुसार राजकुमार अवस्थी जी ने सभी को प्रत्यक्ष चर्चा के लिए बुलाया था। हम चारों लोग संपादकीय विभाग में आमंत्रित उम्मीदवारों से चर्चा के लिए बैठे थे। यह महज संयोग था कि आमंत्रित उम्मीदवारों में बहुतायात ब्राह्मण वर्ग के युवाओं की थी। जिस पर दिनेश दीनू जी ने कमेंट करते हुए कहा प्रह्लाद जी आपको सारे जनेऊ ही मिलते हैं क्या? चूंकि पाठक जी मौजूद थे और वह जानते थे कि इसमें प्रहलाद की कोई भूमिका नहीं है, तो उन्होंने पूरी गंभीरता से कहा भाई साहब प्रहलाद जी को तो पता भी नहीं था कि किस-किस के बायोडाटा आए हैं, अवस्थी जी ने जो बायोडाटा आए हैं उन्हें देखकर आज सभी को बुलाया है। इस पर दीनू जी ने उल्टे पाठक जी को ही बोल दिया था कि आप भी तो जनेऊ धारी ही हो। इस बात का पाठक जी को गहरा आघात पहुंचा और वह चुपचाप उठकर कमरे से बाहर आ गए। अपने डेक्स पर जाकर कुछ लिखकर चपरासी के हाथ राजीव जी को भेजते हुए वह घर चले गए थे। जब राजीव जी ने मुझे बुलाया तो मैंने सारा वाक्य बताया। इस विषय पर राजीव जी ने दिनेश दीनू जी को खूब खरी-खोटी भी सुनाई थी। स्वयं राजीव जी ने पाठक जी को फोन करके वापस बुलाया। एक निष्कपट कलमकार के दिल को लगे इस आघात को राजीव जी ने चर्चा कर दूर करने का प्रयास किया। मैंने भी अपनी और से पूरे प्रयास किए जिससे पाठक जी इस अकारण की बेतुकी बात के आघात से बाहर आते। उन्होंने उस दिन आफिस से छुट्टी रखते हुए दूसरे दिन आने का बोलकर वापस घर चले गए थे। मुझे उस दिन की यह घटना न जाने क्यों आज याद आ गई। राजधानी की ग्लैमर वाली पत्रकारिता से दूर वास्तविक रूप से हर विषय पर गहरी पकड़ रखने वाले ऐसे कलमकार की कमी निश्चित ही हमें खलेगी। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि सब के प्रति समान भाव रखते हुए सात्विक जीवन यापन करने वाले हमारे आदरणीय सर्वदमन पाठक जी की आत्मा को देवलोक में वास दे। मैं अपनी और से तथा संपूर्ण दैनिक अनोखा तीर परिवार की ओर से विनम्र भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
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