129 यूनिट रक्तदान कर स्वामी राजेंद्रानंद महाराज को दी श्रद्धांजलि

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-ओनली 29 गु्रप ने नीमगांव स्थित श्रीगुरु जम्भेश्वर मंदिर में आयोजित किया शिविर

अनोखा तीर, हरदा। मध्यक्षेत्र विश्नोई सभा के तत्वावधान में ओनली 29 गु्रप द्वारा ब्रह्मलीन गोभक्त श्रद्धेय स्वामी राजेन्द्रानंद महाराज की स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप रक्तदान शिविर का आयोजन शनिवार को श्रीगुरुजम्भेश्वर मंदिर नीमगांव में किया गया। इसमें 129 यूनिट रक्तदान किया गया। गु्रप के सदस्यों द्वारा शाम को हरदा वृद्धाश्रम में भोजन करवाया गया। इस उपलक्ष्य में समाज के वरिष्ठजनों का सहयोग मिला एवं युवाओं ने बढ़ चढ़कर रक्तदान किया। कोशिश पर्यावरण संस्थान के शांतिलाल विश्नोई एवं देवीलाल बिश्नोई द्वारा सेवा की गई। रक्तदान में समाज युवाओं के साथ में राजपूत समाज से करणी सेना, ब्राह्मण समाज से परशुराम सेना के सदस्यों एवं गुर्जर समाज से भी रक्तदान किया। ओनली 29 गु्रप के रक्तदान शिविर में एसडीएम भी उपस्थित रहे। ओनली 29 गु्रप 2019 से लगातार समाजसेवा में अपनी अग्रणी भूमिका निभाता आया है। गु्रप के सदस्य शरद कांवा, ऋषि खोखर, अलकेश सांई ने बताया कि जरूरतमंद गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग, गरीबों के स्वास्थ्य के लिए आर्थिक सहयोग एवं अन्य सेवा समाजहित में की जाती है। रक्तदान शिविर में समाज के विभिन्न इंटरनेट मीडिया व्हाट्सएप गु्रप के सदस्यों सहित अनेक युवाओं ने रक्तदान स्वरूप श्रद्धांजलि अर्पित की।


गौसेवा के लिए समर्पित थे राजेंद्रानंद महाराज  
गौरतलब है कि विश्नोई समाज के संत व जाम्भाणी साहित्य अकादमी के संरक्षक गोभक्त, प्रसिद्ध कथा वाचक ब्रह्मलीन स्वामी राजेंद्रानंद महाराज हरिद्वार का पूरा जीवन धर्म के प्रचार और गोसेवा के लिए समर्पित था। अपने चार दशकों के धर्म-प्रचार के जीवन में उन्होंने कभी विश्राम नहीं लिया। उनकी कथाएं जाम्भाणी साहित्य को आधार बनाकर ही होती थी। गुरु जाम्भोजी की वेदमयी सबदवाणी की वे अपनी विलक्षण शैली में उत्कृष्ट व्याख्या करते थे। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले की धामपुर तहसील के गांव रैणी भगवानपुर में चून्नूसिंह पूनिया के घर हुआ था। उनकी माताजी का नाम कांतिदेवी था। वे 12 वर्ष की अवस्था में साधु बन गए थे। जीवन के अंतिम समय 58 वर्ष की अवस्था तक कथा करते हुए गोसेवा और धर्म जागरण करते रहे। उनके धर्म प्रचार का क्षेत्र बहुत व्यापक था। वे उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में कथाएं करते थे।

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