8 साल बाद फिर हरदौल बाबा स्थान पर ही बनी प्रतिमा

1947 से महाकाली की प्रतिमां को कर रहे विराजित, अब युवाओं ने संभाली परंम्परा

-जेल में सीखा था मूर्ति बनाना

-पहली बार की थी मां काली की स्थापना, स्वयं तैयार करते थे प्रतिमां

अनोखा तीर, हरदा। जिला मुख्यालय स्थित हरदौल बाबा मंदिर परिसर में काली देवी की मूर्ति की स्थापना की शुरुआत करीब 77 साल पहले हुई थी। खास बात यह है कि इसकी स्थापना उस समय होशंगाबाद से यहां आए छोटे उस्ताद उर्फ बृज बिहारी ने की थी। लगभग 45 साल उन्होंने खुद मूर्ति बनाकर आसपास के देवी भक्तों व सहयोगियों की मदद से स्थापना की। शहर छोड़ने से पहले उन्होंने जिन लोगों को मूर्ति बनाना सिखाया, कुछ समय तक वे ही मूर्ति तैयार करते थे। किसी कारण वश 8 साल से यहां की तीसरी पीढ़ी उड़ा से मूर्ति बनवा रही थी। इस बार हरदौल बाबा स्थान पर ही मुर्ति बनाई गई है। माता भक्त शिवकुमार केवट और विनोद पचौरी बताया कि शहर में सबसे पहले काली देवी की मूर्ति की स्थापना की शुरुआत हरदौल बाबा मंदिर से ही हुई। 1947 के आसपास होशंगाबाद से छोटे उस्ताद यहां आए थे। वे यहीं रुक गए। पेशे से वे ड्राइवर थे। किसी मामले में एक बार जेल चले गए। छूटे तो उन्होंने मंदिर में देवी मूर्ति की स्थापना की शुरुआत की। छोटे उस्ताद ने मूर्ति बनाना जेल में सीखा। यहां स्थापित की जाने वाली मूर्ति वे खुद बनाते थे। आसपास के अन्य लोग भी निर्माण में सहयोग करते थे। उस्ताद चाहते थे कि अन्य लोग भी इस कला को सीख लें, जिसके लिए वे भरपूर अवसर देते थे। यहां 40 साल उन्हीं के हाथों से बनी मूर्ति विराजित की जाती रही। इस बार प्रतिमा निर्माण का कार्य पूर्व की भांती इसी स्थान पर किया गया है। करीब 15 सालों से पूजारी गजानंद पारासर द्वारा माता का पूजन किया जा रहा है। सभी के सहयोग और युवाओं के उत्साह से यह परंपरा आगे भी चलती रहेगी। 40 साल बाद उस्ताद बाहर चले गएसन 1988 तक मंदिर से जुड़े अन्य लोग मूर्ति बनाना सीख चुके थे। इसके बाद शिवकुमार, गणेश ड्राइवर, मुन्ना पहलवान, अनिल श्रोती, बबलू, रमेश, भीम, अर्जुन, लखनलाल सैनी, अनोखीलाल हलवाई, नर्मदाप्रसाद आदि की टीम ने इस जिम्मेदारी को निभाते हुए आगे बढ़ाया। इस टीम ने करीब 27 साल तक मूर्ति तैयार कर विराजित की। शिवकुमार बताते हैं उस्ताद ने यह कहा था कि किसी भी स्थिति में मूर्ति स्थापना की प्रथा बंद न हो। वे सभी इसका हर संभव प्रयास करें। यही कारण रहा कि आज भी तीसरी पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है। वे बताते हैं कि पूर्व में मंदिर में टीन शेड था। देवी विराजित की जाने वाली मढ़िया थी। गुजराती समाज के प्रेमजी भाई पटेल, जेएल सोनकर व अन्य सहयोगी परिवारों की मदद से धीरे-धीरे मंदिर बना व समय-समय पर दुरुस्त किया गया।कभी 9 दिन पहले नहीं किया देवी प्रतिमा का विसर्जनदेवी भक्त बताते हैं कि कलेण्डर में तिथि की घट-बढ़ का भले ही कोई भी मामला हो, यहां हमेशा 9 दिन पूरे होने पर ही देवी का विसर्जन किया जाता है। देवी मूर्ति के दर्शनों के लिए पूरे शहर से लोग परिवार के साथ आकर माथा टेकते हैं। युवा टीम में नीलू सैनी, अभिषेक सैनी, अजय केवट, जय केवट, श्याम रघुवंशी, शिवराम राजपूत, राहुल सोलंकी, लालू त्रिपाठी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। नीरज सैनी ने बताया शिवकुमार मामा की फॉरेस्ट में नौकरी लगने के कारण अब 5-7 साल से करीब 30 हजार रुपए खर्च कर मूर्ति उड़ा से बनवाकर ला रहे थे। इस बार प्रतिमां को यही बनाया गया है। यहां शहर सहित देश के दूर-दराज के शहरों तक से भक्त पहुंचते है और मां का आशिर्वाद प्राप्त करते है। कई वर्ष पुराना है हरदौल बाबा मंदिर

भक्त शिव कुमार और विनोद पचौरी ने बताया कि हमें हमारे बुर्जुगों द्वारा बताया गया जाता था कि हरदौल बाबा मंदिर कई वर्ष पुराना है। इनके साथ ही शीतलामाता और गाडेवान बाबा की प्रतिमा एक खुदाई के दौरान निकली थी। समय के साथ-साथ भक्तों ने मंदिर में निर्माण कराना शुरू किया। पहले यहां केवल टीन शेड थे करीब 20 साल पहले यहां भक्तों ने पक्के निमार्ण का शुरू करवाया था। अब निरंतर मंदिर परिसर में विकास कार्य हो रहा है। जिसका पूरा श्रेय अब युवाओं का है, यह ही मंदिर की देख-रेख करते है। अब मूर्ति स्थापना की कार्य भी यही संभाले हुए है।

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