सादिक खान, रहटगांव। रहटगांव तहसील क्षेत्र में आदिवासियों के पुराने पहनावे के साथ रहन-सहन सहित त्योहारों में भी परिवर्तन नहीं हुआ। वर्षों पुराने रीति रिवाज के अनुसार आज भी त्योहार मनाए जा रहे हैं।आदिवासियों के बड़े त्योहारों में से एक पोला पर्व पर यह नजारा यहां देखने को मिला। ग्राम के मनीराम कोरकू ने बताया कि पोला अमावस्या से एक माह पहले जिरोती अमावस्या से डुलार बनाते हैं जिसे माता का रूप मानते हैं। एक माह तक उसकी सेवा करते हैं। चुन्नी, चूडी, टीका, कुमकुम आदि से श्रृंगार करते हैं। एक वर्ष जो डुलार बैठाता है उसे तीन या पांच साल तक डुलार बैठाना होता है। पूरे माह तक शाम को उस स्थान पर आकर ग्रामीण महिला-पुरुष गीत-भजन गाते हैं और झूला झूलते हैं। पोला अमावस्या पर धूमधाम से ग्राम की महिलाएं डुलार को गांव में घुमाते हैं। डुलार के नीचे से समाज के लोग निकलते हैं। इस जुलूस में पुरुष भी आगे-आगे चलते हैं। ग्राम की नदी में डुलार का विसर्जन किया जाता है। इसके बाद दीपावली तक नाच-गाना आदि कार्यक्रम नहीं किए जाते। वहीं आदिवासियों के बड़े त्योहारों में से एक होता है। रातामाटी के विश्राम चौहान, श्यामलाल, राहुल, जयराम, नंदकिशोर मुकेश, नंदराम ने बताया कि आदिवासी अपना सबसे बड़ा धन बैलों को मानते हैं। इस दिन गांव में मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों की पूजा की जाती है। बैलों की पीठ पर चादर ढांककर आटे, बेसन से बने खुरमे रखकर दीपक से पूजा करते हैं। डोलार त्यौहार रक्षाबंधन के पर्व के साथ शुरू होता है। इस पर्व में कोरकू और भील जाती के लोग मनाते है। राहुल पांसे ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि शादी होने वाली युवतियों को डुलार पर झूला झूलाया जाता है। वहीं शाम के समय महिलाओं द्वारा गीत गाकर पूजा अर्चना की जाती है। इस पोला पर्व पर समस्त ग्रामवासियों उपस्थित होकर पोला पर्व धूम-धाम से मनाया गया।

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